Book Title: Pratishtha Pujanjali
Author(s): Abhaykumar Shastri
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 233
________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि LL जिनपथ में रुचि विरति अन्य से जिनगण स्तवन मैं अति लीन।। निष्कलंक निर्दोष भावना हो मेरी भव-भव में पीन ।।3 ।। गुरु-चरणों में यति समूह में जिनशासन का हो जय घोष। भव-भव में हो प्राप्त मुझे संन्यास पूर्वक देह वियोग ।।4।। जन्म-जन्म में किये पाप जो कोटि जन्म से संचित हैं। जन्म-मृत्यु अरु जरा मूल जो, जिन वन्दन से शीघ्र नशें।।5।। सेवार्पित भक्तों को है जो, कल्पबेलि तव चरण-कमल। उनकी सेवा में बीता है, बचपन से अब तक का काल।। हे प्रभु! प्राण-प्रयाण क्षणों में मेरा कण्ठ न हो असफल। नाथ! आपके नाम कथन में चाहूँ आराधन का फल ।।6।। तेरे चरण-युग, मम उर में, मम उर भी तव चरणों में। सदा बसे हे जिनवर ! जब तक मुक्ति लक्ष्मी प्राप्त हमें।।7।। जिन-भक्तों की भक्ति मात्र ही कुगति निवारण में पर्याप्त। भरे पुण्य भण्डार और शिवपद प्रदान में पूर्ण समर्थ ।। ।। पञ्चमेरु संबंधी पाँच अरिंजय जिन मतिसागर पाँच। पाँच यशोधर जिनवर वन्दूँ, वन्दूँ जिन सीमन्धर पाँच।। ।। रत्नत्रय को नमन करूँ, चौबीस जिनेश्वर को वन्दूँ। पञ्च परमगुरु को वन्दूँ मुनि चारण-चरण सदा वन्दूँ।।10।।

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