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प्रतिष्ठा पूनाम्नलि
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शान्तचित्त हो शान्ति चाहनेवाले भूतलवासी जीव । तव चरणों में शान्ति प्राप्त करते हैं निश्चित शान्ति जिनेन्द्र ।। चरण-युगल आराध्य हमारे, पढ़ें शान्ति अष्टक हे नाथ! करुणा कर अब मेरी दृष्टि निर्मल करो जिनेश्वर आज ।।8।।
शशि - सम निर्मल वदन, शील-गुण- व्रतधारी हे शान्ति जिनेन्द्र | शत-अठ लक्षण से शोभित तन, नमूँ जिनोत्तम कमल नयन । 19 ।।
मन वाञ्छित पञ्चम चक्री हो, पूजित इन्द्र नरेन्द्रों से । शान्ति प्रदायक, शान्ति हेतु मैं सोलहवें जिननाथ नमूँ ।।10।।
तरु-अशोक, सुरपुष्पवृष्टि दुन्दुभि सिंहासन दिव्यवचन । छत्रत्रय, भामण्डल, चौंसठ चंवर, प्रातिहार्य अनुपम ।।11।।
जगत्-पूज्य हे शांति प्रदायक, शीश झुकाऊँ शान्ति जिनेन्द्र । सर्व गणों को शान्ति करो, मुझ पाठक को दो शान्ति परम ।।12।।
कुन्डल, मुकुट हार रत्नोंयुत, इन्द्रों द्वारा पूज्य हुए। उत्तम वंश, प्रदीप जगत के सतत शान्ति दो प्रभो मुझे ।।13।।
सम्यक् पूजक, प्रतिपालक, सामान्य तपोधन यतियों को देश, राष्ट्र अरु नगर भूप को, हे जिन ! शान्ति प्रदान करो ।।14।।
(ग्रन्धरा)
राजा हो बलवान, धार्मिक, सर्वजनों का हो कल्याण । बरसें मेघ समय पर होवें सर्व व्याधियाँ क्षय को प्राप्त ।।
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जीवों को पलभर भी चोरी मारी अरु दुर्भिक्ष न हो ।
सबको सुखदायी जिनवर का धर्मचक्र जयवन्त रहो |115J4
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