Book Title: Pratishtha Pujanjali
Author(s): Abhaykumar Shastri
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 214
________________ 214 प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि गयणमिव णिरुवलेवा अक्खोहा सायरुव्व मुनिवसहा। एरिसगुणणिलयाणं पायं पणमामि सुद्धमणो।।6।। संसारकाणणे पुण वंभममाणेहिं भव्वजीवहिं। णिव्वाणस्स दु मग्गो लद्धो तुम्हें पसाएण।।7।। अविसुद्धलेसरहिया विसुद्धलेसेहिं परिणदा सुद्धा। रुद्दड्ढे पुणचत्ता धम्मे सुक्के य संजुत्ता।।।। ओग्गहईहावायाधारणगुणसम्पएहिं संजुत्ता। सुत्तत्थभावणाए भावियमाणेहि वंदामि।।9।। तुम्हे गुणगणसंथुदि अयाणमाणेण जं मए वुत्ता। दिंतु मम बोहिलाहं गुरुभत्तिजुदत्थओ णिच्वं ।।10।। (कार्योत्सर्ग करें) इच्छामि भंते आइरियभत्ति काओसग्गो कओ तस्सालोचेओ सम्मणाण-सम्मदसण-सम्मचरित्तजुत्ताणं पंचविहायाराणं आयरियाणं आयारादिसुदणाणो-वदेसणाणंउवज्झायाणं तिरयणगुणपालणरयाणं सव्वसाहूणं णिच्चकालं अच्चमि पूजेमि वंदामि णमस्सामि दुक्खक्खओ कम्मक्खओ बोहिलाओ सुगइगमणं समाहिमरणं जिणगुण-सम्पत्ति होउ मज्झं। 5. योगभक्ति (आर्या) थोसामि गणधराणं अणयाराणं गुणेहि तच्चेहि। अंजुलिमउलियहत्थो अहिबंदंतो सविभवेण।।1।। सम्मं चेव य भावे मिच्छाभावे तहे व बोद्धव्वा। चइऊण मिच्छभावे सम्ममि उवविदे वंदे।।2।। दोदोसविप्पमुक्के तिदंडविरदे तिसल्लपरिसुद्धे। | तिण्णियगारवरहिए तियरणसुद्धे णमस्सामि।।317

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