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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
। 'चिदानंद चैतन्य आनन्द धाम, ज्ञानस्वभावी निजातम राम।।
स्वाश्रय से मुक्ति बखानी, अमर तेरी जग में कहानी।।४।।
सुनकर वाणी जिनवर... सुनकर वाणी जिनवर की, म्हारे हर्ष हिये न समाय जी ।।टेक ।। काल अनादि की तपन बुझानी, निज निधि मिली अथाह जी ॥१॥ संशय, भ्रम और विपर्यय नाशा, सम्यक् बुद्धि उपजाय जी ।।२।। नर-भव सफल भयो अब मेरो, 'बुधजन' भेटत पाय जी ।।३।।
शान्ति सुधा बरसाये जिनवाणी... शान्ति सुधा बरसाये जिनवाणी, वस्तुस्वरूप बताये जिनवाणी ।।टेक ।। पूर्वापर सब दोष रहित है, पापक्रिया से शून्य शुद्ध है। परमागम कहलाये जिनवाणी ।।१।। परमागम भव्यों को अर्पण, मुक्तिवधू के मुख का दर्पण । भवसागर से तारे जिनवाणी ।।२।। राग रूप अंगारों द्वारा, महा क्लेश पाता जग सारा । सजल मेघ बरसाये जिनवाणी ॥३॥