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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
करैं सु केशलोंच मुष्टि-मुष्टि धैर्य भावते, लखाय जन्म जन्तु का स्वकेश ना बढावते । ममत्व देह से नहीं न शस्त्र से नुचावते, जजूँ यती स्वतंत्रता विचार चिर रमावते ।। २५ । ।
ॐ ह्रीं श्री कृतकेशलोचननियमधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं नि. स्वाहा ।।१९५ ।। करैं न दन्तवन कभी तजा सिंगार अङ्ग का,
लहें स्व खान-पान एकबार साध्य अङ्ग का ।
तथापि दंत कर्णिका महा न ज्योति त्यागती,
जूँ यतीश शुद्धता अशुद्धता निवारती ।। २६ ।।
ॐ ह्रीं श्री दन्तधोवनवर्जननियमधारकसाधुपरमेष्ठिभ्यो ऽर्घ्यं नि. स्वाहा । । १९६ ।।
धरें न चाह भोग रोग के समान जानते,
शरीर रक्ष काज एक बार भुक्ति ठानते । सकल दिवस सुध्यान शस्त्रपाठ में बितावते, जजूँ यती अलाभ अन्न लाभ सा निभावते ।।२७।।
ॐ ह्रीं श्री एकभुक्तिनियमधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१९७।।
खड़े रहे सुलेय अन्न देहशक्ति देखते,
न होय बल विहार तब मरण समाधि पेखते ।
करें सु आत्मध्यान भी खड़े-खड़े पहाड़ पर,
जूँ यती विराजते निजानुभव चटान पर ।। २८ ।। ॐ ह्रीं श्री अस्थितभोजननियमधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं नि. स्वाहा ।। १९८ ।।
(दोहा)
अठविंशति गुण धर यती, शील कवच सरदार । रत्नत्रय भूषण धरें, टारें कर्म प्रहार ।।
ॐ ह्रीं श्री अस्मिन् बिम्बप्रतिष्ठोत्सवे मुख्यपूजार्ह - अष्टमवलयोन्मुद्रितसाधुपरमेष्ठिभ्यस्तन्मूलगुणग्रामेभ्यश्च पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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