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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
मोक्षकल्याणक स्तुति जय ऋषभदेव गुणनिधि अपार । पहुँचे शिव को निज शक्ति द्वार ।। वन्दूँ श्री सिद्ध महंत आज। सुधरें जासें मम सर्व काज॥१॥ निर्वाण थान यह पूज्य धाम । यह अग्नि पूज्य हे रमणराम ।। मन वच तन वन्दूं बार-बार। जिन कर्मवंश डालूँ उजाड़ ।।२।। कैलाश महा तीरथ पुनीत । जहं मुक्ति लही सब कर्म जीत ।। नहिं तैजस तन नहिं कारमाण । नहिं औदारिक कोई प्रमाण ।।३।। है पुरुषाकार सुध्यानरूप। जिम तन में था तिम है स्वरूप ।। तनु वातवलय में क्षेत्र जान । पीवत स्वातम रस अप्रमाण ।।४।। हो शुद्ध चिदातम सुख निधान । हो बल अनन्त धारी सुज्ञान ।। वन्दूँ मैं तुमको बार-बार। भवसागर पार लहुँ अबार ।।५।।
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