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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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शुभ कृष्ण फाल्गुन सप्तमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। ।। श्री जिन सुपार्श्वस्व स्थान लीयो, स्वकृत आनंद पाय के।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णसप्तम्यां श्रीसुपार्श्वजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।७।।
शुभ शुक्ल फाल्गुन सप्तमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री चन्द्रप्रभ निर्वाण पहुँचे, शुद्ध ज्योति जगाय के।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ॐ हीं फाल्गुनशुक्लसप्तम्यां श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।८।।
शुभ भाद्र शुक्ला अष्टमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री पुष्पदंत स्वधाम पायो, स्वात्म गुण झलकाय के।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ॐ ह्रीं भाद्रशुक्ल-अष्टम्यां श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।९।।
दिन अष्टमी शुभ क्वॉर सुद, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्रीनाथशीतल मोक्ष पाए, गुण अनन्त लखाय के।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शद्धात्म मन में भाय के।। ॐ ह्रीं आश्विनशुक्ल-अष्टम्यां श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।१०।।
दिन पूर्णमासी श्रावणी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। जिन श्रेयनाथ स्वधाम पहुँचे, आत्मलक्ष्मी पाय के।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शद्धात्म मन में भाय के।। ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लपूर्णिमायां श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्य निर्वामीति स्वाहा ।।११।।