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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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_पूजूं सदा चतुर्विंशति सिद्ध कालं,
पाऊँ महान शिवमंगल नाथ कालं ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
मीठे रसाल बादाम पवित्र लाए, जासे महान फल मोक्ष सु आप पाए। पूजूं सदा चतुर्विंशति सिद्ध कालं,
पाऊँ महान शिवमंगल नाथ कालं ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
आठों सु द्रव्य ले हाथ अरघ बनाऊँ, संसार वास हरके निज सुक्ख पाऊँ। पूर्णां सदा चतुर्विंशति सिद्ध कालं,
पाऊँ महान शिवमंगल नाथ कालं ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्य:अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। मोक्षकल्याणक मण्डित चौबीस तीर्थंकरों के लिए अर्घ्य
(गीता) चौदश वदी शुभ माघ की, कैलाशगिरि निजध्याय के। वृषभेश सिद्ध हुए शचीपति, पूजते हित पाय के ।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ॐ ह्रीं माघकृष्णचतुर्दश्यां श्रीवृषभनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।।१।।।
शुभ चैत सुदि पांचम दिना, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। , अजितेश सिद्ध हुए भविकगण, पूजते हित पाय के।। ,