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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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देव - शास्त्र - गुरु मेरे, हैं सच्चे हितकारी ।
सहज शुद्ध चैतन्यराज की महिमा, जग से न्यारी ॥ रोम-रोम से निकले प्रभुवर नाम तुम्हारा, हाँ! तुम्हारा ॥४॥
धन्य-धन्य मुनिवर का जीवन...
धन्य-धन्य मुनिवर का जीवन, होवे प्रचुर आत्म संवेदन । धन्य-धन्य जग में शुद्धातम, धन्य अहो आतम आराधन ।। १ ।। होय विरागी सब परिग्रह तज, शुद्धोपयोग धर्म का धारन । तीन कषाय चौकड़ी विनशी, सकल चारित्र सहज प्रगटावन ।। २ ।। अप्रमत्त होवें क्षण-क्षण में, परिणति निज स्वभाव में पावन । क्षण में होय प्रमत्तदशा फिर, मूल अट्ठाईस गुण का पालन ।। ३ ।। पञ्चमहाव्रत पञ्चसमिति धर, पञ्चेन्द्रिय जय जिनके पावन । षट् आवश्यक शेष सात गुण, बाहर दीखे जिनका लक्षण ।। ४ ।। विषय - कषायारंभ रहित हैं, ज्ञान-ध्यान- तप लीन साधुजन । करुणा बुद्धि होय भव्यों प्रति, करते मुक्तिमार्ग सम्बोधन ।। ५ ।। रचना शुभशास्त्रों की करते, निरभिमान निस्पृह जिनका मन । आत्मध्यान में सावधान हैं, अद्भुत समतामय है जीवन ।। ६ ।। घोर परिषह उपसर्गों में, चलित न होवे जिनका आसन । अल्पकाल में वे पावेंगे, अक्षय, अचल, सिद्ध पद पावन ।। ७ ।। ऐसी दशा होय कब 'आत्मन्' चरणों में हो शत-शत वंदन । मैं भी निज में ही रम जाऊँ, गुरुवर समतामय हो जीवन ॥८ ॥
धन्य मुनिराज की समता...
धन्य मुनिराज की समता, धन्य मुनिराज का जीवन ।
धन्य मुनिराज की थिरता, प्रचुर वर्ते स्वसंवेदन । । टेक
॥टेक॥