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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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पञ्चकल्याणक पूजन खण्ड
गर्भकल्याणक स्तुति जय तीर्थंकर जय जगतनाथ, अवतरे आज हम हैं सनाथ । धन भाग महारानी सुहाग, जो उर आए जिन सुरग त्याग ।।१।। हम भक्ति करन उमगे अपार, आए आनन्द धर राजद्वार । हम अंग सफल अपना करेंय, जिन मात पिता सेवा करेंय ।।२।। यह जगत तात यह जगत मात, यह मंगलकारी जग विख्यात। इनकी महिमा नहिं कही जाय, इन आतम निश्चय मोक्ष पाय ।।३।।
जिनराज जगत उद्धार कार, त्रय जगत पूज्य अघ चूरकार। तिनके प्रगटावनहार नाथ, हम आए तुम घर नाय माथ ।।४।।
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तुम देखे दरश सुख पाये नयना ।।टेक॥ तुम जग ताता तुम जग माता, तुम वन्दन से भव भय ना ।।१।। तुम गृह तीर्थंकर प्रभु आए, तुम देखे सोलह सुपना ।।२।। तुम भव त्यागी मन वैरागी, सम्यकदृष्टि शचि वयना ।।३।। तुम सुत अनुपम ज्ञान विराजे, तीन ज्ञानधारी सुजना ।।४।। तुम सुत राज्य करें सुरनर पे, नीति निपुण दुःख उद्धरना ।।५।। तुम सुत साधु होय वन विहरे, तप साधत कर्मन हरना ।।६।। तुम सुत केवलज्ञान प्रकाशे, जग मिथ्यातम सब हरना ।।७।। तुम सुत धर्मतत्त्व सब भाषे, भविक अनेक भव से तरना ।।८।। कर्मबन्ध हर शिवपुर पहुँचे, फिर कबहूँ नहिं अवतरना ।।९।। हम सब आज जन्म फल मानो, गर्भोत्सव कर अघ दहना ।।१०।।