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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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गर्भ धारण किये दुःख सब टालतीं, रूप को ज्ञान को वृद्धि कर डालतीं ।।४।। मात चौबिस महा मोक्ष अधिकारणी, पुत्र जनतीं जिन्हें मोक्ष में धारिणी । गर्भकल्याण में पूजते आप को, हो सफल यज्ञ यह छांड सन्ताप को ॥५॥ ( घत्ता त्रिभंगी )
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जय मंगलकारी मात हमारी बाधाहारी कर्म हरो, तुम गुण शुचिधारी हो अविकारी, सम-दम - यम निज मांहि धरो । हम पूजें ध्यावें मंगल पावें शक्ति बढावें वृष पाके, जिन यज्ञ मनोहर शांत सुधाकर, सफल करें तव गुण गाके ।। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यो गर्भकल्याणकप्राप्तेभ्यो महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
आनन्द अवसर आज...
आनन्द अवसर आज, सुरगण आये नगर में । तीर्थंकर युवराज, आनंद छाया नगर में ।। स्वर्गपुरी से सुरपति आए, सुन्दर स्वर्णकलश ले आए। निर्मल जल से तीर्थंकर का मंगलमय शुभन्हवन कराए । परिणति शुद्ध बनाय भविजन ।। १ ।। प्रभुजी वस्त्राभूषण धारें, चेतन को निर्वस्त्र निहारें । एक अखंड अभेद त्रिकाली चेतन तन से भिन्न निहारें ।। आनन्द रस बरसाय भविजन || २ || पुण्य उदय है आज हमारे नगरी में जिनराज पधारे। निशदिन प्रभु की सेवा करने भक्ति सहित सुरराज पधारे ।। जीवन सफल बनाय सुरगण ||३|| सुरपति स्वर्गपुरी को जावें भोगों में नहिं चित्त ललचावें । आनंदघन निज शुद्धातम का रस ही परिणति में नित भावें ॥। भेद - विज्ञान सुहाय भविजन ||४||