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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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अड़तालीस ऋद्धिधारी मुनीश्वरों के लिए अर्घ्य
(दोहा) लोकालोक प्रकाश कर, केवलज्ञान विशाल ।
जो धारें तिन चरण को, पूर्टो न निज भाल ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री सकललोकालोकप्रकाशकनिरावरणकैवल्यलब्धिधारकेभ्योऽयं।।१९९।।
वक्र सरल पर चित्तगत, मनपर्यय जानेय । ऋजु विपुलमति भेद धर, पूजूं साधु सुध्येय ।।२।। ॐ ह्रीं श्री ऋजुमतिविपुलमतिमन:पर्ययधारकेभ्योऽयं।।२००।। देश परम सर्वावधि, क्षेत्र काल मर्याद। द्रव्य भाव को जानता, धारक पूजू साध ।।३।। ॐ ह्रीं श्री अवधिधारकेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।।२०१।। कोष्ठ धरे बीजानिको, जानत जिम क्रमवार । तिम जानत ग्रन्थार्थ को, पूनँ ऋषिगण सार ।।४।। ॐ ह्रीं श्री कोष्ठबुद्धि-ऋद्धिप्राप्तेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।२०२।।
ग्रन्थ एक पद ग्रह कही, जानत सब पद भाव ।
बुद्धि पाद अनुसारि धर, सार जनँ धर भाव ।।५।। ॐ ह्रीं श्री पादानुसारीबुद्धि-ऋद्धिप्राप्तेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।२०३।।
एक बीज पद जानके, कोटिक पद जानेय।
बीज बुद्धि धारी मुनी, पूनँ द्रव्य सुलेय ।।६।। ॐ ह्रीं श्री बीजबुद्धि-ऋद्धिप्राप्तेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।२०४।। * यद्यपि ऋद्धियाँ ६४ होती हैं, लेकिन यहाँ चारणऋद्धि के ९ भेदों को सामूहिकरूप से २ छन्दों में तथा विक्रियाऋद्धि के११ भेदों को भी २ छन्दों में संग्रहित करने से ४८ कहा