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[ १३ ] इसीलिये सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रकी प्राप्ति नहीं होती और इनका पाना ही बोधि है, उस बोधिका जो निविषयपनेसे धारण वही समाधि है। इस तरह बोधि समाधिका लक्षण सब जगह जानना चाहिये। इस बोधि समाधिका मुझमें अभाव है, इसीलिये संसार समुद्र में भटकते हुए मैंने वीतराग परमानन्द सुख नहीं पाया, किन्तु उस सुखसे विपरीत (उल्टा) आकुलताके उत्पन्न करनेवाला नाना प्रकारका शरीरका तथा मनका दुःखही चारों गतियोंमें भ्रमण करते हुए पाया । इस संसार-सागरमें भ्रमण करते मनुष्य-देह आदिका पाना बहुत दुर्लभ है, परन्तु उसको पाकर कभी प्रमादी “(आलसी) नहीं होना चाहिये । जो प्रमादी हो जाते हैं, वे संसाररूपी वनमें अनन्तकाल भटकते हैं। ऐसा ही दूसरे ग्रन्थोंमें भी कहा है-'इत्यतिदुर्लभरूपां" इत्यादि । इसका अभिप्राय ऐसा है, कि यह महान् दुर्लभ जो जैनशास्त्रका ज्ञान है, उसको पाके जो जीव प्रमादी हो जाता है, वह रंक पुरुष बहुत कालतक संसाररूपी भयानक वनमें भटकता है। सारांश यह हुआ, कि वीतराग परमानन्द सुखके न मिलनेसे यह जीव
--- वीतराग परमानन्दसुख ही आदर करने
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लाभमें यह जीव अनादि कालसे भटक रहा bah-in-e-RE- करभट सुनना चाहता है- (चतुर्गति1
.तियंचगतियोंके दुःखोंसे . (तप्तानां) ... I UDIEEE "
तिदःखविनाशकरः ) चार गतियों के b . .
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