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[ ६३ ] परमात्मा है, और सिद्ध-अवस्थामें व्यक्तिरूप है । यही आत्मा परब्रह्म परमविष्णु परमशिव शक्तिरूप है, और प्रगटरूपसे भगवान् अरहन्त अथवा मुक्तिको प्राप्त हुए सिद्धात्मा हो परमब्रह्मा परमविष्णु परमशिव कहे जाते हैं । यह निश्चयसे जानो।
ऐसा कहनेसे अन्य कोई भी कल्पना किया हुआ जगत्में व्यापक परमब्रह्म परमविष्णु परमशिव नहीं । सारांश यह है कि जिस लोकके शिखरपर अनन्तसिद्ध विराज रहे हैं, वही लोकका शिखर परमधाम ब्रह्मलोक वही विष्णुलोक और वही शिवलोक है, अन्य कोई भी ब्रह्मलोक विष्णुलोक शिवलोक नहीं है। ये सब निर्वाण क्षेत्रके नाम हैं, और ब्रह्मा विष्णु शिव ये सब सिद्ध परमेष्ठीके नाम हैं। भगवान तो व्यक्तिरूप परमात्मा हैं, तथा यह जीव शक्तिरूप परात्मामा है । इसमें सन्देह नहीं है। जितने भगवान के नाम हैं, उतने सब शक्तिरूप इस जीवके नाम हैं। यह जीव ही शुद्ध नयकर भगवान् है ।।१०।।
अथमुणि-वर-विंदहं हरि-हरहं जो मणि णिवसइ देउ । परहं जि परतरु णाणमउ सो वुच्चइ पर-लोउ ॥११०॥ मुनिवरवृन्दानां हरिहराणां यः मनसि निवसति देवः ।
परस्माद् अपि परतरः ज्ञानमयः स उच्यते परलोकः ।।११०।।
आगे ऐसा कहते हैं कि भगवान्का ही नाम परलोक है-(यः) जो आत्मदेव (मुनिवरवृन्दानां हरिहराणां) मुनिश्वरोंके समूहके तथा इन्द्र वा वासुदेव रुद्रोंके (मनसि) चित्तमें (निवसति) वस रहा है, (सः) वह (परस्माद् अपि परतरः) उत्कृष्ट से भी उत्कृष्ट (ज्ञानमयः) ज्ञानमयो (परलोकः) परलोक (उच्यते) कहा जाता है ।
भावार्थ-परलोक ‘शब्दका अर्थ ऐसा है कि पर अर्थात् उत्कृष्ट वीतराग चिदानन्द शुद्धस्वभाव आत्मा उसका लोक अर्थात् अवलोकन निर्विकल्पसमाधिमें अनुभवना वह परलोक है। अथवा जिसके परमात्मस्वरूपमें या केवलज्ञान में जीवादि पदार्थ देखें जावें, इसलिये उस परमात्माका नाम परलोक है । अथवा व्यवहारनयकर स्वर्ग मोक्षको परलोक कहते हैं। स्वर्ग और मोक्षका कारण भगवान्का धर्म है, इसलिये केवली भगवान्को परलोक कहते हैं। परमात्माके समान अपना निज आत्मा है, वही परलोक है, वही उपादेय है ॥११०॥