Book Title: Parmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Author(s): Yogindudev, Samantbhadracharya, Vidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 465
________________ CURIODIORAccore __ श्री कुथुनाथ स्तुति १५३ भक्त पर प्रसन्न नहीं होते परन्तु परिणामों के भीतर से रागादि मैल हटाने के लिये व वैराग्य भाव जागृत करने के लिए आपका गुरग स्मरण व नाम जपने व प्रापकी शांत मुद्रा का दर्शन ये सब निमित्त कारण हैं। जैसे शीतल समुद्र के स्वयं विना चाहे भी जो उस समुद्र के तट पर जाता है उसको शान्ति मिल जाती है। उसी तरह आपके बिना चाहे हुए भी सच्चे भक्तों को स्वयं सुख शान्ति मिल जाती है। मैं भी चाहता हूँ कि आपका गुरण स्तवन करनेसे मेरायह रागढष मोहरूप संसारका अन्त होजावे । तब उनके निमित्त से जो कर्मों का बन्ध होता था सो न होवे तथा कर्मों के उदय से जो जन्म मरण रोग शोक इष्ट वियोग अनिष्ट संयोगादि के क्लेश होते हैं सो न होवें व मेरा भय भी सर्व चला जावे, मुझे अपने अविनाशी प्रात्मा की पक्की पहचान हो जावे । मैं उसी में विश्रान्ति लू जिस आत्मा को कोई भी भय नहीं है जो कि किसी के द्वारा भी स्वभाव का त्याग नहीं कर सकता है । प्रात्मा में विश्रान्ति पाकर परम सुखी रहूँ यही भावना श्री समन्तभद्राचार्य ने की है।। ज्ञानलोचनस्तोत्र में श्री वादिराजजी कहते हैं हिसाऽक्षमादिव्यसनप्रमादकषायमिथ्यात्त्वकुबुद्धिपात्रम् । व्रतच्युतं मां गुणदर्शनोगं पातु क्षमः को भुवने विना त्वाम् ।। ३२॥ भावार्थ- हे प्रभु ! मैं हिंसा, असहनशीलता,द्यूतादि ध्यसन,प्रमाद,क्रोधादि कषाय, मिथ्यात्व व कुबुद्धि का पात्र हूँ। सम्यग्दर्शन गुण से भी शून्य हूं, ऐसे मुझ पापी को इस लोक में आपके बिना और कौन रक्षा करने को समर्थ है। नाराच छन्द - रागद्वेष नाश प्रात्मशांति को बढ़ाईया । शरण जु लेय प्रापकी वही सु शांति पाइया । - भगवन शरण्य शांतिनाथ पाव ऐसा है सदा । दूर हों संसार क्लेश भय न हो मुझे कदा ।। || (१७) कैन्थुनाथ स्तुतिः के थुप्रभृत्यखिलसत्त्वदयकतानः कुजिनो ज्वरजरामरणोपशान्त्यं । स्वं धर्मचक्रमिह वर्तयसि स्म भूत्यै भूत्वा पूरा क्षितिपतीश्वर चक्रपाणिः ।।

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