Book Title: Parmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Author(s): Yogindudev, Samantbhadracharya, Vidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 475
________________ - श्री अरनाथ स्तुति १६७ केवलज्ञान अवस्था में आप परमौदारिक शरीर में कोटि सूर्य की दीप्ति से भी अधिक प्रकाशमान रहे । आपने आयु कर्म को जीत लिया । परभव के लिये प्रापने आयु न बांधी। प्रापफा अब किसी शरीर में जन्म न होगा। वास्तव में मरण वही है जो फिर जन्म करावे । श्राप तो शरीर त्यागने पर परम निर्वाण के भाजन परम सिद्ध होंगे। इस तरह आपने जगत विजयी यमराज के मद को भी चूर्ण कर डाला। प्राप्तस्वरूप में प्रापका स्वरूप कहा हैजन्ममृत्युजरारोगाः प्रदग्धा ध्यानवह्निना । यस्यात्मज्योतिषां एको सोऽस्तु वैश्वानरः स्फुटम् ।।४।। भावार्थ-जिसकी आत्मज्योति की राशिमई ध्यानरूपी अग्नि से जन्म मरण जरा रोग बिलकुल जला दिये गये सोही प्रभु प्रगटपने अग्निस्वरूप हैं । वास्तव में आपने यमराज व उसके मित्रों को सर्वथा नाश कर डाला इसलिए आप यमराज के विजयी परम योद्धा हैं। पद्धरी छन्द यमराज जगत को शोककार, नित जरा जन्म हूँ सखा धार । तुम यम विजयी लख हो उदास, निज कार्य करन समरथ न तास । ६३।। उत्थानिका-आगे कहते हैं कि भगवान में मोहादिक का क्षय हुमा यह बात कैसे जानी जाती है भूषावेषायुधत्यागि विद्यादमदयापरम् । रूपमेव तवाचष्टे धीर ! दोषविनिग्रहम् ।।६४॥ अन्वयार्थ - (धीर)हे परम क्षमाषान् अरनाथ भगवन् ! (तव) प्रापका (भूपावपायुद्धत्यागिः) पासूषण,वस्त्र व शस्त्रादि से रहित तथा ( विद्यादमदयापरम् ) निर्मल ज्ञान, - शांत भाव व अपूर्व दया को झलकाने वाला (रूपं एव) शरीर का रूप ही (दोपविनिग्रहम् ) प्रापने मोहादि दोषों का क्षय कर डाला है इस बात को ( प्राचष्टे ) प्रगट कर रहा है। . भावार्थ -श्री जिनेन्द्र के शरीर का रूप मोहादि धातिया कर्मों के नाश कर लेने पर पूर्ण ध्यानमय पद्मासन या कायोत्सर्ग आसन में रहता है । उस रूप में किसी विकारी वेष का संसर्ग नहीं होता है न वहां कोई वस्त्र का सम्बध होता है न किसी प्रकार का याभूषरण होता हैं, न कोई खड़ग, नरछी, लफली आदि शस्त्र का सम्बन्ध होता है। वह

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