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श्री सुमति तीर्थंकर स्तुति
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भावार्थ - यदि सर्वथा सत्रूप या नित्यरूप माना जावे तो जैसे पुरुष व श्रात्मा की उत्पत्ति नहीं होती है वैसे किसी घट पट आदि कार्य की भी उत्पत्ति न बने । नित्यं पक्ष का एकान्त मनन से प्रवस्था की पलटने की व्यवस्था बन ही नहीं सकती । और मंदि सर्वथा वस्तु सत् सानी जावे अर्थात् क्षणिक थी सो नाश होगई ऐसा माना जावे तो भी कोई कार्य नहीं होगा । जैसे प्राकाश से फूल नहीं होते वैसे घट पट श्रादि काम न बनेंगे, म यह नियम ही रहेगा कि उपादान काररण के समान कार्य होता है अर्थात् जैसी मिट्टी होगी जैसे उसके बर्तन लेंगे । सुवर्ण जैसा होगा वैसा कड़ा बनेगा और जब वस्तु क्षणिक मानी जायगी तब यह निश्चय भी नहीं बन सकेगा कि इससे अमुक कार्य हो सकेगा । जब यह निश्चय ही न होगा कि गेहूं से रोटी बन सकेगी तो कौल गेहूं को खरीदेगा । इसलिये वस्तु न तो सर्वथा नित्य है, न सर्वथा क्षणिक या असत् है । वस्तु नित्य नित्य रूप है । सामान्य द्रव्य रूप से कोई वस्तु न उपजती न विनशती है क्योंकि द्रव्य सदा बना रहता है, वह अपनी अनन्त पर्यायों में टिका रहता है । विशेष पर्याय रूप से हो द्रव्य में उत्पाद व्यय होता है । इसलिये यह सिद्ध है कि जो सत् द्रव्य है वह एक ही काल उत्पाद व्यय धन्य स्वरूप है । पिछली पर्याय का नाश, वर्तमान पर्याय का जन्म सदा ही द्रव्य में होता रहता है । तथापि द्रव्य बना रहता है । यही वस्तु का सच्चा स्वरूप है। शुद्ध द्रव्यों मैं स व स्वाभाविक पर्यायें होती हैं, यशुद्ध द्रव्यों में विसदृश व औपाधिक पर्यायें होती हैं। द्रव्य पर्याय बिना नहीं, पर्याय द्रव्य बिना नहीं हो सकती है । यही वस्तु स्वभाव है ।
नोटक छन्द |
जो नित ही हो तो नाश उदय, नहि हो न क्रिया कारक न सघय
सत् नाश न हो नहि जन्म श्रसत्, जु प्रकाश गए पुद्गल तम सत् ।। २४||
उत्थानिका -अब प्राचार्य स्पष्टपने कहते हैं कि जीव प्रजीवादि पदार्थ सब नित्य नित्य श्रादि रूप से अनेक रूप हैं---
विधिनिषेधश्च कथंचिदिष्टौ विवक्षया मुख्यगुरुध्यवस्था | इति प्ररणीतिः सुमतेस्तवेयं मतिप्रवेकः स्तुववतोsस्तु नाथ ॥ २५ ॥
अन्वयार्थ – [ विधिनिषेधश्च ] विधि अर्थात् ग्रस्तिपना, भावपना या नित्यपना तथा निषेध अर्थात् नास्तिपना, प्रभावपना या श्रनित्यपना जीवादि पदार्थों के भीतर [कथंचित्] भिन्न २ अपेक्षात्रों से, द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नयों से [ इष्टौ ] मान्य है, इष्ट है, सिद्ध है । द्रव्य की अपेक्षा वस्तु सत् या नित्य है, पर्याय की अपेक्षा वस्तु प्रसत् या