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स्वयंभू स्तोत्र टीका
होगी । जो सर्वथा नित्य ही पदार्थ को मानते हैं, उनके मत में परिणमन या बदलना नहीं हो सकेगा । जो बंधा है बंधा ही रहेगा जो मुक्त है वही मुक्त रूप ही रहेगा ।
भावार्थ - यहां प्राचार्य ने जैन सिद्धान्त की महिमा वर्णन की है कि श्री तीर्थंकर भगवान ने जगत के पदार्थों को अनेक स्वभाव वाला देखा है और वैसा ही वर्णन किया है। जगत में हरएक द्रव्य का स्वभाव उत्पाद व्यय ध्रौव्यरूप है । जो ऐसा है यही सत् रूप पदार्थ है । भाव यह है कि हरएक पदार्थ अपने स्वरूप को व अपने गुणों को प्रपने में सदा बनाये रखता है । न तो द्रव्य का नाश होता है न द्रव्य के गुरणों का नाश होता है । इसलिये हरएक द्रव्य नित्य है, चाहे चेतन हो या प्रचेतन हो, तो भी हरएक द्रव्य परिणमनशील है। प्रर्थात् उसमें पर्याय या अवस्था होती रहती हैं । द्रव्य व उसके सर्व गुण सदा अवस्था से प्रवस्थांतर हुआ करते हैं । जिस समय पुरानी अवस्था का नाश होता है उसी समय नवीन प्रवस्था का उत्पाद होता है । इसलिये हरएक द्रव्य अनित्य भी है। पर्याय को दृष्टि से द्रव्य नित्य है । गुरण व द्रव्यपने की दृष्टि से द्रव्य नित्य है । जैसे सुवर्ण अपने पीत, भारी प्रादि गुरणों को लिये बराबर बना रहता है, यह उसका नित्यपना है । तो भी उसमें अवस्था बदलती हैं । कुण्डल से कड़ा, कड़े से बाली, बाली से मुद्रिका बनती रहती है। जब कुंडल से कडा बना तो कुण्डल की दशा का नाश हुआ। कड़े की दशा का उत्पाद या जन्म हुआ। तब भी सुवर्ण वही ध्रौव्य है। एक मानव को ज्वर चढ़ा हुआ है, जिस समय ज्वर उतरा उस समय ज्वरपने की अवस्था का नाश हुआ, निरोगता का जन्म हुआ और वह जीव तो बना ही हुआ है । किसी के भाव में क्रोध होरहा है, जब शान्त भाव होता है क्रोध भाव का नाश होता है, तथा आत्मा तो बना ही हुआ है । प्रत्यक्ष पुद्गल के दृष्टान्तों से यह बात समझ में आ जायगी कि हरएक द्रव्य सदा परिणमन किया करता है तो भी सर्वथा नाश नहीं होता है। कपड़ा पुराना पडता है, मकान पुराना होता जाता है, बर्तन पुराना पडता जाता है, शरीर दिन पर दिन पुराना पड़ता जाता है तो भी जिन परमाणुत्रों से कपड़ा प्रादि बने हैं वे परमाणु जगत में नित्य हैं - उनका कभी भी विलय न होगा । इसलिये जैन सिद्धान्त पदार्थ को नित्य प्रनित्य दोनों रूप भिन्न २ अपेक्षा से मानता है और ऐसा ही प्रत्यक्ष प्रगट भी है । जो मतवादी पदार्थ को सर्वथा नित्य मानेंगे उनके मत में अवस्था का बदलना न बन सकेगा तब कोई काम ही न हो सकेगा । न गेहूं बनेंगे न रोटी बनेंगीन पेट में जाकर रस रुधिरादिक रूप बनेगा । न लकडी चिर सकेगी ने उससे कपाट व धन्नी आदि बनेगी न मकान तय्यार हो सकेगा । तथा जो मतवादी पदार्थ को सर्वथा श्रनित्य या क्षणिक