Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
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- सनातनजनप्रथमालायां
प्रत्यक्षादिनिमित्तं स्मृतिप्रत्यभिज्ञानतकोनुमानागमभेदं ॥२॥
हिंदी-वह परोक्षज्ञान प्रत्यक्ष व स्मृति आदिकी सहायतासे होता है और उसके स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम ये पांच भेद हैं ॥२॥
बंगला-परोक्षज्ञान प्रत्यक्ष ओ स्मृति प्रभृतिर साहाय्ये हइया थाके। एवं ताहा स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान एवं आगम एइ पांच भेदे विभक्त ॥ २॥
संस्कारोबोधनिबंधना तदित्याकारा स्मृतिः ॥ ३ ॥
स देवदत्तो यथा ॥४॥ हिंदी-पूर्वसंस्कारकी प्रकटतासे 'वह देवदत्त' इस प्रकारके स्मरणको स्मृतिज्ञान कहते हैं ॥ ३-४ ॥
बंगला--पूर्व संस्कारेर उद्भूति हइते ‘से देवदत्त' एरूप स्मरणके स्मृतिज्ञान बले ।। ३-४ ॥
दर्शनस्मरणकारणकं संकलनं प्रत्यभिज्ञानं तदेवेदां तत्सदृशं तद्विलक्षणं तत्पतियोगीत्यादि ॥५॥ यथा स एवायं देवदत्तः ॥ ६ ॥ गोसदृशो गवयः॥७॥ गोविलक्षणो महिषः ॥ ८॥ इदमस्मादूरं ॥ ९॥
वृक्षोयमित्यादि ॥ १०॥ हिंदी-प्रत्यभिज्ञान नामका परोक्षज्ञान प्रत्यक्ष और स्मरणकी सहायतासे होता है जो कि-यह वही है, यह उसके सदृश है, यह उससे विलक्षण है, यह इससे दूर है, और यह वृक्ष है इत्यादि प्रकारका होता है । जैसे-यह वही देवदत्त है । यह उस गौके सदृश है । यह भैंसा उस गौसे विलक्षण है। यह