Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
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( २६ )
तीरसकेओ उत्पन्न करे । यखन एरूप अवस्था तखन रसह - ते समान सामग्री अनुमान एवं समान सामग्रीर अनुमान हइते रसेर अनुमान स्वीकार करिले ताहाके कोनओ एकटी कारण लिंगकेओ अवश्य स्वीकार करते हइबे । यदि बल को - astri कारण थाकिलेओ कार्येर अनुमान हय ना । एवं ये खाने कारणेर सामर्थ्य कोनओ मणिमंत्र द्वारा अवरुद्ध हय सेखानेओ कारण हइते कार्येर अनुमान हयना । एजन्य कारणलिंग व्यभिचारी हओयाते ताहा अस्वीकार करते हइवे एरूप वला उचित नय | ये हेतु - येखाने यत कारणेर आवश्यकता, से खाने से सकल हइबे एवं येखाने कारणेर सामर्थ्येर अवरोधकारक मणिमंत्र प्रभृति हइबे ना सेखान नियमतः कारण
कार्येर अनुमान या याइबे, सेखाने कारणलिंग व्यभि - चारी होइते पारिबेना । अतएव बौद्ध येरूप स्वभावलिंग ओ कार्यलिंग स्वीकार करे सेरूप ताहाके कारणलिंगओ स्वीकार करिते इबे ॥ ६० ॥
न च पूर्वोत्तरचारिणोस्तादात्म्यं तदुत्पत्तिर्वा कालव्यवधाने तदनुपलब्धेः ।। ६१ ॥
हिंदी -- जहां तादात्म्यसंबंध होता है वहां तो स्वभावहेतु कहा जाता है और जहां तदुत्पत्तिसंबंध होता है वहां कार्यलिंग होता है तथा एककालमें रहनेवाले साध्यसाधनों का संबंध तादत्म्यसंबंध अथवा तदुत्पत्ति संबंध होता है । पूर्वचर और उत्तरचर