Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
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( ४३ ) कार्य स्थास है क्योंकि घटकी पर्याय पहले शिवक तत्पश्चात् छत्रक और उस से भी पश्चात् स्थास होती है । इस प्रकार यह कार्यकार्य रूप साधन अविरूद्धकार्योपलब्धिमें अंतर्भूत होता है ॥९१॥ ९२ ॥ क्योंकि
बंगला-एइ चाकेर उपरि शिवक (माटीर शिवाकार पिंड विशेष ) हइया छे । ये हेतु एइ समय स्थास देखा याते छ । एइ स्थल स्थास परंपरा रूपे शिवकेर कार्य । अर्थात्-शिवकेर साक्षात् कार्य छत्रक एवं छत्रकेर कार्य स्थास । ये हेतु घटेर पूर्वपर्याय शिवक तत्पश्चात् छत्रक एवं तत्पश्चात् स्थास हइया थाके । एवं प्रकार एइ कार्यकार्यरूपसाधन आवरुद्धकार्योंपलब्धिर अंतर्भूत हइते पारे ॥९१॥९२॥ केनना- .
नास्त्यत्र गुहायां मृगकीडनं मृगारिसंशब्दनात कारणविरुद्ध कार्यविरुद्ध कार्योपलब्धौ यथा ॥१३॥
हिंदी-यथा-इस गुफा मृग क्रीड़ा नहिं करते क्योंकि इसमें सिंह गरज रहा है। यहां कारणाविरुद्धकार्य विरुद्धकार्योपलब्धिमें अंतर्भूत होता है अर्थात्-यहां मृगक्रीड़ाका कारणमृग उससे विरुद्ध सिंह उसका कार्य गरजना है ॥१६॥ ___बंगला-यथा एइ गुफाय मृग क्रीड़ा करे ना । ये हेतु इहाते सिंह गर्जन करिते छे । एइ स्थल कारणावरुद्धकार्य विरुद्ध कार्योपलब्धिते अंतर्भूत हइया छ। अर्थात् एइखाने मृग क्रीडार कारण मृग, ताहार विरुद्ध सिंह ओ ताहार कार्य गर्जन हइ छे ९३