Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
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( ४२ ) यहां पर अनेकांतसे विरुद्ध पदार्थका स्वभाव एकांत है इस लिये एकांत स्वरूपके अभावसे अनेकांत स्वरूपकी सिद्धि कर ली जाती है ।। ८९॥ ___वंगला–प्रत्येकपदार्थ नित्यत्व अनित्यव्व प्रभृति अनेक धर्म विशिष्ट । ये हेतु केवल नित्यत्वप्रति एक धर्मेर अभाव विद्यमान । एइ स्थल अनेकांत हइते विरुद्ध पदार्थर स्वभाव एकांत । एइ जन्य एकांतस्वरूपेर अभावद्वारा अनेकांतस्वरूपेर सिद्धि करा हइयाछे ॥ ८९ ॥
परंपरया संभवत् साधनमत्रैवांतर्भावनीयं ॥१०॥
हिंदी-जो साक्षात् साधन तो न हों किंतु परंपरासे हों उनका अंतर्भाव उपयुक्त साधनोंमें ही करलेना चाहिये उन्है जुदे मानने की आवश्यकता नहीं है ॥९०॥ यथा
बंगला-ये सकल साक्षात् साधन नहे किंतु परंपरा साधन हइते पारे ताहादर अंतर्भाव उपर्युक्त साधनेर मध्येई करिया लइते हइवे । ताहादेर पृथक् स्वीकार करिवार आवश्यकता नाई ॥९० ॥ यथा- अभूदत्र चके शिवकः स्थासात् ॥९१॥ कार्यकार्यमविरुद्धकार्योपलब्धौ ॥११॥
हिंदी-इस चाकपर शिवक होगया क्योंकि इस समय स्थास देखनमें आ रहा है । यहां पर स्थास परंपरासे शिवकका कार्य है अर्थात् शिवकका साक्षात् कार्य छत्रक है और छत्रकका