Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ ( ४६ ) उच्चारण करनेसेही जंबूद्वीप के मध्य में स्थित सुमेरुका ज्ञान होजाता है इसी प्रकार अन्य पदार्थों का भी समझ लेना चाहिये ॥६९॥१००॥ १०१ ॥ 1 इति परीक्षामुखसूत्रार्थे तृतीयोद्देशः ॥३॥ बंगला - आप्तेरवचन प्रभृतिर द्वारा पदार्थेर ये ज्ञान हय ताहाके आगम बल । आप्तवचन प्रभृतिद्वारा पदार्थर यथार्थ ज्ञान केन हय एइ प्रकार संशय युक्त नहि । ये हेतु शब्द ओ अर मध्ये एक स्वाभाविक योग्यता वाच्य वाचक शक्ति आछे । अर्थात् शब्दे वाचक शक्ति एवं अर्थे वाच्य शक्ति ताहाते संकेत हयाते अर्थात् एइ शब्देर वाच्य एइ अर्थ एइ प्रकार भान हयाते शब्द प्रभृति द्वारा पदार्थेर ज्ञान हय । यथा मेरु प्रभृति पदार्थ अर्थात् मेरु शब्देर उच्चारण करिलेइ जंबूद्वीपमध्यस्थ सुमेरु पर्वतेर ज्ञान थाय । एइ प्रकार अन्यान्य पदार्थैर ओ बुझियो लइबे ॥९९॥१००॥१०१॥ इति परीक्षामुखसूत्रार्थे तृतीयोद्देशः ॥ ३॥ अथ चतुर्थोद्देशः सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः ॥ १ ॥ अनुत्तव्यावृत्तप्रत्ययगोचरत्वात्पूर्वोत्तराकारापरिहारावाप्तिस्थितिलक्षणपरिणामेनार्थक्रियोपपत्तेश्व ॥ २ ॥ हिंदी -- सामान्य और विशेषस्वरूप अर्थात् द्रव्य और

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90