Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 59
________________ (५०) उपेक्षा करना ये प्रमाणके फल हैं । अर्थात् प्रमाणसे ये बातें होती है यहां प्रमाणका साक्षात्फल अज्ञाननिवृत्ति है और शेष फल गौण है ॥१॥ बंगला-अज्ञानेर निवृत्ति, त्याग, ग्रहण एवं उपेक्षा कराइ प्रमाणेर फल । एस्थले अज्ञाननिवृत्ति फल प्रमाणेर प्रधान फल । एवं त्याग, ग्रहण, उपेक्षा गौण फल ॥ १॥ प्रमाणादाभिन्न भिन्नं च ॥२॥ यः प्रमिमीते स एव निवृत्ताज्ञानो जहात्यादत्त उपेक्षते चेति प्रतीतेः ॥ ३ ॥ हिंदी-फल प्रमाणसे कथंचित् अभिन्न और कथंचित् भिन्न है । क्योंकि जो प्रमाण करता है-जानता है उसीका अज्ञान दूर होता है और वही किसी पदार्थका त्याग वा ग्रहण अथवा उपेक्षा करता है इसलिये तो प्रमाण और फलका अभेद है किन्तु प्रमाण फलकी भिन्न २ भी प्रतीति होती है इसलिये भेद भी है ॥ २ ॥ ३ ॥ ___बंगला-प्रमाण हइते फलके कथंचित् भिन्न बला याय । ये हेतु-ये व्यक्ति प्रमाण करे ओ जाने ताहारइ अज्ञान दूर हय एवं सेइ व्यक्तिइ कानओ पदार्थेर त्याग, ग्रहण अथवा उपेक्षा करे एइ हेतुते प्रमाण ओ फलेर अभेद किन्तु प्रमाण ओ फलेर भिन्न भिन्न ओ प्रतीति हय एइजन्य फलके प्रमाण हइते भिन्न ओ बला याय ॥ २ ॥ ३ ॥ इति परीक्षामुखसूत्रार्थे पंचमोद्देशः ॥५॥

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