Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 69
________________ ६०. सनातनजैनग्रंथमालायां । हिंदी-अनुमानस्वरूपसे सर्वथा अनभिज्ञ किसी मूर्ख मनुष्यके सामने कहना कि यहां अग्नि है क्योंकि धूआं है यह आवद्यमाननिश्चय अर्थात् संदिग्धासिद्ध है । क्योंकि मूर्ख मनुष्य किसी समय पृथ्वी जल आदि भूत संघात ( वटलोई आदि ) में भाफ आदिको देखकर यहां अग्नि है या नहिं. ऐसा संदेह कर बैठता है ॥ २५ ॥२६॥ ____बंगला-अनुमान स्वरूपानभिज्ञ केह कोन मुर्खेर निकट यदि वले ये एखाने अग्नि आछे केननो धूम आछे तवे ताहा संदिग्धासिद्ध । केननो ऐ मूर्खेर भूत संघाते वाष्पप्रभृति देखिया एखाने अग्नि आछे ना नाइ एइ संदेह हइया थाके २५॥२६ साख्यं प्रति परिणामी शब्दः कृतकत्वात् ॥२७॥ तेनाज्ञातत्वात् ॥ २८॥ हिंदी-शब्द परिणामी है क्योंकि वह किया हुआ है यहां सांख्यके प्रति कृतकत्व हेतु संदिग्धासिद्ध है क्योंकि सांख्य मतमें पदार्थोका आविर्भाव तिरोभाव माना गया है उत्पाद और व्यय नहिं इसलिये वह कृतकताको नहिं जानता ॥२७॥२८॥ बंगला'शब्द परिणामी केनना ताही कृतक' सांये प्रति एइ अनुमान संदिग्धासिद्ध, केनना सांख्यमते पदाथेर आविर्भाव तिरोभाव स्वीकार कराहय, उत्पत्ति विनाश ताहारा मानेना सुतरां कृतकत्व ताहादेर अविज्ञेय पदार्थ २७।२८ विरुद्धहेत्वाभास

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