Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
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________________ संस्कृतप्रवेशिनी। विदित हो कि वर्तमानके समस्त विद्वानोंने निश्चय किया है कि जबतक प्राचीन संस्कृत साहित्यका पुनरुद्धार व प्रचार न होगा तबतक हमारे देशकी, समाजकी उन्नति होना दुःसाध्य है। इसलिये अनेक विद्वान संस्कृत साहित्यके प्रचारार्थ प्राचीन कठिन साधनोंकी जगह नये 2 ढंगकी पुस्तकें रच रच कर संस्कृत साहित्यकी उन्नति करनेमें लगे हैं भारतीयजैनसिद्धांत प्रकाशिनी संस्था व जैनमित्रमंडलीने भी संस्कृत विद्याकी उन्नति करनेवाले नये 2 ग्रंथ प्रकाशित करनेका प्रयत्न करना प्रारंभ किया है। अनेक महाशय प्राचीन व्याकरणोंकी पद्धतिको क्लिष्ट व रटंत विद्या समझकर संस्कृतविद्या पढनेमें पश्चात्पद हो जाते हैं इसलिये संस्कृतमें सुगमतासे प्रवेश करानेकेलिये हमने आजतक छपेहुये समस्त व्याकरण संबंधी ग्रंथोंका मंथन करके यह संस्कृतप्रवेशिनी नामकी पुस्तक नवीन पद्धतिसे बहुत ही सुगमरीतिसे बनवाकर प्रकाशित की है। इसके पढने में व्याकरणके कठिन सूत्र व नियमादि कुछ भी रटने नहिं पडते / इसमें आये हुये कुछ शब्द व धातुओंका अर्थ मनन करने मात्रसे ही संस्कृतमें अनुबाद करना, संस्कृत भाषामें वार्तालाप करना व संस्कृत काव्योंका पठनपाठन बहुत ही सुगम हो जाता है / विशेषता इसमें यह है कि क्या लड़के क्या स्त्री क्या वृद्धपुरुष सब ही बिना गुरुके इसे पढकर संस्कृत साहित्यमें प्रवेश कर सकते हैं। _जिनको संस्कृतमें वार्तालाप, संस्कृतसे भाषा व भाषासे संस्कृतमें अनुबाद करना वा संस्कृतके बडे 2 काव्य पढने हों अथवा बंगाल बिहार उडीसा आदि संस्कृत यूनिवर्सिटियोंमें व्याकरण काव्यकी मध्यमा परीक्षा देना हो तथा संस्कृतके साथ इंट्रेस एफ्. ए० बी० ए० परीक्षा देना हो, वे सबसे पहिले इस पुस्तकको पढ लें, उनके लिये संस्कृतकी ये सब परीक्षायें सुगम हो जायगी / मूल्य प्रथम भागका 1) रु. दूसरे भागका 1) रु० मिलनेका पतामैनेजर-जैन मित्रमंडली, पो० बाघबाजार, कलकत्ता।