Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

View full book text
Previous | Next

Page 88
________________ हिंदीबंगानुवादसहितं परीक्षामुखं । ७९ दिर लक्षण बला गेल, इहा हइते अतिरिक्त नय ओ नयाभासादिर स्वरूप याहा आछे ताहाओं अन्यान्य ग्रंथ हइते विचारपूर्वक जानिया लइवे ॥ ७४ ॥ . परीक्षामुखमादर्श हेयोपादेयतत्त्वयोः। संविदे मादृशो बालः परीक्षादक्षवदव्यधां ॥ १ ॥ इति परीक्षामुखं समाप्तं । हिंदी-परीक्षा प्रवीणमनुष्यकी तरह मुझ बालकने हेय ( त्यागने योग्य) उपादेय (ग्रहणकरने योग्य ) तत्त्वोंको अपने सरीखे बालकोंको उत्तमरीतिसे समझानेके लिये दर्पणके समान इस परीक्षा मुखग्रंथकी रचना की है । अर्थात् परीक्षाकुशल मनुष्यं जैसा प्रारंभ किय कामको पूर्णकरके मानता है उसीप्रकार मैंने इसे पूर्ण किया है । तथा दर्पण जैसा अच्छे बुरे सब पदार्थों का प्रकाशक है उसीप्रकार यह ग्रंथ भी हेयोपादेय बुरे पदार्थोंका बतलानेवाला है । इस प्रकार परीक्षामुखसूत्रोंका बालावबोध हिन्दी अनुवाद समाप्त हुवा ॥ बंगला- आमि परीक्षाप्रवीण मनुष्येर मत हेय (त्याज्य) ओ उपादेय (ग्राह्य) तत्त्वेर ज्ञानदान करिवार अभिप्राये मंदबुद्धिर जन्य आदर्शभूत एइ परीक्षामुख ग्रन्थेर रचना करिलाम । अर्थात् परीक्षा कुशल पंडित येमन प्रारब्ध कार्येर पूर्णता संपादन करे, सेइरूप आमिओ एइ ग्रंथ संपादन कार्य संपन्न

Loading...

Page Navigation
1 ... 86 87 88 89 90