Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
View full book text
________________
सनातनजैनग्रंथमालायां । व्यतिरेकविकलका दृष्टांत इंद्रियसुख है क्योंकि अमूर्तत्वरूप साधन का व्यतिरेक मूर्तत्व होता है और वह इंद्रियसुखमें नहिं रहता एवं उभय व्यतिरेकविकलका दृष्टांत आकाश है क्योंकि पौरुषेयत्व मूर्तत्व दोनों ही नहिं रहते । तथा जो अमूर्त नहिं है वह अपौरुषेय भी नहिं है इसप्रकार व्यतिरेक दृष्टांत भी दृष्टांताभास कहा जाता है अर्थात् व्यतिरेकमें पहले साध्या भाव और पीछे साधनाभाव कहा जाता है । यहां पर पहले साधनाभाव और पीछे साध्याभाव कहा गया है इसलिये यह व्यतिरेक दृष्टांताभास है ॥४४॥४५॥ - बंगला-व्यतिरेकदृष्टान्ताभास तीन प्रकार,-साध्यव्यतिरेकविकल, साधनव्यतिरेकविकल एवं साध्यसाधनोभय व्यतिरेकविकल । यथा शब्द अपौरुषेय केनना ताही अमूर्त एइ उदाहरणइ साध्यव्यतिरेकविकलेर दृष्टान्त, केनना अपौरुषेयत्व रूप साध्येर व्यतिरेक पौरुषेयत्व परमाणुते थाकेना । साधन व्यतिरेक विकलेर दृष्टान्त इन्द्रिय सुख, केनना अमूर्तत्व रूप साधनेर व्यतिरेक ( अभाव) मूर्तत्व इन्द्रियसुखे थाकेना एवं उभय व्यतिरेक विकलेर दृष्टान्त आकाश केनना पौरुष यत्व मूर्तत्व उभयइ आकाश थाकेना । एइ रूपे ये अद्त्तनह ताहा अपौरुषेय ओ नहे एइरूप व्यतिरके दृष्टान्त ओ दृष्टान्ता भास । केनना व्यतिरेक प्रथम साध्याभाव ओ परे साधनाभाव