Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 78
________________ हिंदीबंगानुवादसहितपरीक्षामुखं । ६९ किया गया है) क्योंकि उपर्युक्त अवयवोंसे निस्संशय साध्य का ज्ञान नहिं होता ॥४६॥४७॥५८॥४९॥ बंगला-उपयुक्त प्रतिज्ञा हेतु आदि पञ्च अवयवेर मध्ये यदि एकटी ओ कम हय तवे उहा वालप्रयोगाभास वलिया कथित हय । येमन एइ देश अग्नि आछे केनना एस्थाने धूम देखा याइछे यखाने धूम याके सेखाने निश्चितइ अग्नि थाके येमन महानस (पाकशाला) । एखाने प्रतिज्ञा हेतु उदाहरण एइ तिन अवयवेर उल्लेख करा हइयाछे एइजन्य इहाबाले प्रयोगाभास । अथवा एइ तिन अवयवेर सहित एइ स्थाने ओ धूमयुक्त एड् चतुर्थ अवयव (उपनय) संयुक्त करिले ओ उहा वालप्रयोगाभास हइवे । दृष्टान्तेर पर उपनय तत् पश्चात् निगमनेर उल्लेख करा रीतिसंगत कोनओ ताहा नाकरिया विप रीत भावे प्रथम निगमन ओ तत्पर उपनयेर उल्लेख करा हय तव ताहा ओ वालप्रयोगभास हइवे । यथा ' एजन्य इहा आग्निमति' एइ निगमन वलिया यदि पर ' इहाधूमयुक्त एइ विपरीतभावे वलाते एइ स्थाने अवयव द्वारा निःसंशयितरूप साध्येर ज्ञान हइलना ॥४६॥५९॥ . रागद्वेषमोहाकांतपुरुषवचानाज्जातमागाममागमाभासं । यथा नधास्तीरे मोदकराशयः संति धावध्वं माणवकाः । अगुल्यन हस्तियूथशतमस्ति इति चाविसंवादात् ॥५१॥५२॥५३॥५४॥ हिंदी-जो आगम रागी द्वेषी और मोहीपुरुषके वचनसे

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