Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 81
________________ ७२ सनातनजैनग्रंथमालायां । लिये प्रत्यक्ष आदिसे तर्क आदि प्रमाण जुदे ही है ॥५५।५६ ५७/५८।५६।६०॥ बंगला-'केवल एक प्रत्यक्षइ प्रमाण' इहा वला संख्या भास । केनना प्रत्यक्षज्ञान परलोक बा परकीयज्ञानके विषय का ना, और याहार ये ज्ञान विषय हयना ताहार सेज्ञानेर विधि वा निषेध करा सम्भव हयना, एइ जन्य नास्तिकमते परलोकेर निषेध हइते पारेना । और परकीय बुद्धि प्रभृतिर सिद्धि हइते पारेना, यमन प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति ओ अभाव एइ छय प्रमाणर मध्ये प्रत्यक्ष अनुमान आदिके निया एक एकटी अधिक प्रमाण स्वीकारकारी वौद्ध, सांख्य, नैयायिक, प्रभाकर ओ जैमिनीयेर मतोक्त प्रत्यक्ष आदिते अंतर्भुक्त ना हओयाय व्याप्तिज्ञानके ओ अतिरिक्त मानिते हइवे, एइरुपे व्याप्तिज्ञानके अतिरिक्त मानिते हइले "दुइटीइ प्रमाण” “तिन टीइ प्रमाण" एकरूप संख्या निर्देश करा ओ संख्याभास हइया दाडाय । यदिचार्वाक वल ये अनुमान द्वारा परलोक प्रभृतिर निषेध करिव तबे ताहार प्रत्याक्षातिरिक्त अनुमान मानिते हय एवं इहा हइले 'प्रत्यक्षइ एकमात्र प्रमाण' ताहार एइ कथाय निश्चयइ संख्याभास हइया परे । एइरुप बौद्धेर ओ व्याप्ति सिद्धिर जन्य अतिरिक्त प्रमाण तक मानित हइवे । उहा मानिले ताहार 'दुइटीइ प्रामाण' एइ कथाते संख्याभास हइल । यदि । वौद्ध प्रभृति वलेन ये तर्क मानि किन्तु उहा प्रमाण नहे तवे

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