Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
View full book text
________________
७४ सनातनजैनग्रंथमालायांरखते । यदि सामान्य आदि कार्यकरनेमें सहकारीकी अपेक्षा करेंगे तो वे परिणामी ठहरेंगे क्योंकि वे सहकारी कारणोंकी सहायता विना अकेले कार्य नहिं करते किंतु उनकी सहायता से करते हैं, यह बात बिना परिणामी माने बन नहीं सकती यदि कहोगे कि-असमर्थ होकर सामान्य आदि कार्य करते हैं तो यह ठीक नहीं । क्योंकि जो असमर्थ है वह जैसा सहकारी कारणोंके आगमनके पूर्व कुछ नहिं करसकता उसीप्रकार सहकारी कारणोंके मिलनेपर भी कुछ नहिं कर सकता, सामान्य आदि भी असमर्थ माने हैं इसलिये वे भी कुछ काम नहिं कर सकते ॥ ..
बंगला-प्रमाणेर विषय केवल सामान्यइ हय वा केवल विशेषइ हय अथवा सामान्य विशेष उभयइ स्वतंत्र प्रामाणिक विषय हय, इहा बला विषयामास । केनना पदार्थेर मध्ये केवल सामान्य प्रभृतिर भान हय ना । आर केवल सामान्य आदिर द्वारा कोन अर्थक्रियाओ हइते पारे ना । यदि वल केवल सामान्य आदि मानिलेओ अर्थक्रिया हइया याय तब से स्थले दुइटी प्रश्न-एइ ये केवल सामान्य आदि समर्थ हइया अर्थक्रिया करे, नाकि असमर्थ हइया ? यदि समर्थ हइया कार्य करे तवे सर्वदा कार्योत्पत्ति हउक । केनना केवल सामान्य आदि द्वारा कार्य कस्तेि त आर द्वितीय किछुर अपेक्षा नाइ । यदि अन्य सहकारीर अपेक्षा करे, ताहा हइले उहा परिणामी