Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 58
________________ ( ४९ ) विशेषश्च || ६ || पर्यायव्यतिरेकभेदात् ॥ ७ ॥ एकस्मिन द्रव्ये क्रमभाविनः परिणामाः पर्याया आत्मनि हर्षविषादादिवत् ॥ ८ ॥ अर्थातरगतो विसदृशपरिणामो व्यतिरेको गोमहिषादिवत् ॥ ९ ॥ -- हिंदी —- पर्याय और व्यतिरेक के भेदसे विशेषभी दो प्रकार का है । एकही द्रव्यमें क्रमसे होनेवाले परिणामों को पर्याय कहते हैं जैसे एकही आत्मामें हर्ष और विषाद । तथा भिन्न २ पदार्थों में रहने वाले विलक्षण परिणामको व्यतिरेक विशेष कहते हैं जैसे गौ और भैंस अर्थात् गौ और भैंस ये भिन्न २ पदार्थों के परिणाम हैं ॥ ६ ॥ ७ ॥ ८ ॥ ९॥ बंगला - पर्याय एवं व्यतिरेक भेदे विशेषओ दुइ प्रकार एकइ द्रव्य क्रमशः उत्पन्न परिणामके पर्याय विशेष बले । यथा एक आत्मातें हर्ष ओ विषाद क्रमशः उत्पन्न हय । एवं भिन्न २ पदार्थेस्थित परिणामकें व्यतिरेकविशेष बला हय । यथा गोमहिष अर्थात गो महिष भिन्न २ पदार्थेर परिणाम ॥ ६ ॥ ७ ॥ ८ ॥ ९ ॥ इति परीक्षामुखसुत्रार्थे चतुर्थोद्देशः ॥ ४ ॥ अथ पंचमोद्देशः । अज्ञाननिवृत्तिनोपादानोपेक्षाच फलं ॥ १ ॥ हिंदी – अज्ञानकी निवृत्ति, त्यागना, ग्रहण करना और

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