Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
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(४८) ताहार वाल्यावस्थार ( पूर्वावस्थार ) त्याग एवं युवावस्थार ( उत्तरावस्थार ) प्राप्ति ओ पुरुषत्वरूप उभयावस्थाय स्थिति थाके । अर्थात् एकइ पुरुषे पुरुषत्व एवं ब्राह्मणस्वरूप सामान्य विशेषधर्म ओ उत्पादव्यय एवं स्थितिरूप परिणाम थाके । एइ प्रकार प्रत्येक पदार्थे बुझियो लइवे ॥ १ ॥ २॥
सामान्यं द्वेधा तिर्यगूलताभेदात् ॥ ३ ॥ सदृशपरिणामस्तिर्यक् खंडमुंडादिषु गोत्ववत् ॥ ४॥ परापरविवर्तव्यापिद्रव्यमूर्खता मृदिव स्थासादिषु ॥५॥ ___ हिंदी सामान्य दो प्रकारका है एक तिर्यक्सामान्य दूसरा ऊर्ध्वता सामान्य । समान परिणामको तिर्यक् सामान्य कहते हैं जैसा गोत्व सामान्य क्योंकि खाडी मुंडी आदि गौवोंमें गोत्व सामान्य समानरीतिसे रहता है । तथा पूर्व और उत्तर पर्यायोंमें रहनेवाले द्रव्यको (सामान्यको) ऊर्ध्वता सामान्य कहते हैं जैसे मिट्टी क्योंकि स्थास कोश कुसूल आदि जितनीपर्याये हैं उन सबमें मिट्टी अनुगत रूपसे रहती है ॥ ३ ॥ ४॥५॥ ___बंगला-सामान्य दुइ प्रकार । एक तिर्यक्सामान्य अपरटि-ऊर्ध्वता सामान्य । सामान्य परिणामके तिर्यक् सामान्य बले। यथा-गोत्वसामान्य येहेतु खंड मुंडादि गोरुते गोत्वसामान्य समानभावे थाके । एवं पूर्वोत्तरपर्यायस्थ द्रव्यके (समान्यके) ऊर्ध्वतासामान्य बला हय । यथा मृत्तिका । ये हेतु स्थास कोश कुसूलप्रभृति सकल पर्यायेइ मतिका अनुगतरूपे थाके ॥३॥४॥५॥