Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 60
________________ (५१ अथ षष्ठोद्देशः ततोन्यचदाभासं ॥ १ ॥ हिंदी – पहिले कहे गये प्रमाणके स्वरूप संख्या विषय फलसे विपरीत स्वरूप संख्या आदि प्रमाण स्वरूपाभास संख्याभास विषयाभास और फलाभास कहे जाते हैं ॥ १ ॥ बंगला — पूर्वोक्त प्रमाणेर स्वरूप संख्या विषय ओ फल हइते विपरीत ( स्वरूप संख्या आदिर आभास ) प्रमाण स्वरूपाभास संख्याभास विषयाभास ओ फलाभास बला याइ - तेछे ॥ १ ॥ अस्वसंविदितगृहीतार्थदर्शनसंशयादयः प्रमाणाभासाः । स्वविषयोपदर्शकत्वाभावात् । पुरुषांतर पूर्वार्थगच्छसृणस्पर्शस्थाणुपुरुषादिज्ञानवत् ॥ २।३।४॥ हिंदी – अस्वसंविदितज्ञान, गृहीतार्थज्ञान, (धारावाहिकज्ञान ) दर्शन, संशय, एवं आदिपदसे विपर्ययज्ञान, और अनव्यवसायज्ञान, ये सब प्रमाणाभास हैं । क्योंकि ये ज्ञान वास्तविक रीतिसे अपने विषयका निश्चय नहिं कराते । जिस प्रकार दूसरे पुरुषका ज्ञान, मार्ग में जाते हुये पुरुषका तृणस्पर्श ज्ञान, यह स्थाणु है वा पुरुष है यह ज्ञान, आदि पदसे सीपमें रजतका ज्ञान, आदि । क्योंकि स्वविषयका वास्तविकरीतसे निश्चय न कराने से ये भी प्रमाणाभास कहे जाते हैं ॥ २ ॥ ३ ॥ ४ ॥ बंगला – अस्वसंविदितज्ञान गृहीतार्थज्ञान ( धारावाहिक · 1

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