Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
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लब्धि हइते शकटोदयाभावरूप उत्तरानुपलंभरूपसाध्येर सिद्धि करा हइया छे ॥ ८३ ॥ अविरुद्ध उत्तरचरानुपलब्धिका उदाहरणअविरुद्धउत्तरचरानुपलब्धिर उदाहरण--
नोदगाद्भरणिर्मुहर्तात्प्रक्तत एव ॥ ८४ ॥
हिंदी--मूहूर्तके पहिले भरणिका उदय नहिं हुआ क्योंकि इससमय कृतिकाका उदय नहिं पाया जाता । यहां पर कृतिकोदयानुपलब्धिरूप अविरुद्ध उत्तरचरानुपलब्धिसे भरण्युदयाभावरूप पूर्वचरानुपलभरूप साध्यकी सिद्धि हुई ॥८॥
बंगला-मुहूर्त्तर पूर्वे भरणिर उदय य नाइ। ये हेतु एइ समये कृतिकार उदय देखा यायना । ए स्थले कृतिकोदयानुपलब्धिरूप अविरुद्ध उत्तरचरानुलब्धि हइते भरण्युदयाभावरूप पूर्वचरानुपलंभसाध्येरसिद्धि हइया छे ॥ ८४ ॥ अविरुद्धसहचरानुपलब्धिका उदाहरणअविरुद्ध-सहचरानुपलब्धिर उदाहरण---
नास्त्यत्र समतुलायामुन्नामो नामानुपलब्धेः ॥८॥
हिदीं-इस बराबर पलड़ेवाली तराजूमें ( एक पल्लेमें) ऊंचापन नहीं क्योंकि दूसरे पलेमें नीचापन नहिं पाया जाता । यहां नामानुपलब्धिरूप अविरुद्ध सहचरानुपलब्धिसे उन्नामाभावरूप सहचरानुपलब्धिरूप साध्यकी सिद्धि की गई ।।८५॥
बंगल-एइ पाल्लाय ( एक दिकेर पारलाय ) उच्चतम
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