Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 37
________________ ( २८ ) होना कारण के व्यापारके आधीन है उपर्युक्त दृष्टांत में कार्य की उत्पत्ति तक कारणका व्यापार रहता नहिं इसलिये वहां कार्यकारणभाव नहिं वन सकता ॥ ६२ ॥ ६३ ॥ बंगला – आगामी मरण ओ अतीत जानद्बोध ( जाग्रत अवस्थारज्ञान ) अपशकुन ओ उद्बोधेर प्रति ( प्रातः काल - इया उठिबार प्रति ) कारण हइते पारेना अतएव आगामी म रण ओ अपशकुन एवं अतीत जाग्रद्बोध उद्बोधेर दृष्टांत लइया बौद्ध ये कालेर व्यवधान हइतेओ कार्यकरणभाव स्वीकार करियाछे ताहा निर्मूल हइल | ये हेतु - कारणेर सद्भावे का - र्येर अस्तित्व कारणव्यापारेर अधीन । उपर्युक्त दृष्टांत कार्योंत्पत्तिपर्यंत कारणव्यापार थाकेना एइजन्य सेखाने कार्यकारण भाव हइते पारेना ।। ६२-६३ ॥ सहचारिणोरपि परस्परपरिहारेणावस्थानात्सहोत्पादाच्च ॥ ६४॥ हिन्दी -- रूप रस आदि सहचारी पदार्थों की प्रतीति आपसमें जुदी २ होती है इसलिये तो सहचर हेतुका स्वभाव हेतु अंतर्भाव नहिं होसकता तथा सहचारी पदार्थ साथ २ उत्पन्न होते हैं इसलिये सहचर हेतु कार्यहेतु नहिं कहा जाता इसलिये स्वभाव और कार्य से सहचरलिंग जुदा ही है ॥ ६४ ॥ बंगला - रूप रस प्रभृति सहचारी पदार्थेर प्रतीति परस्पर पृथक् २ हइया थाके एइजन्य सहचर हेतुर स्वभाव हेतुर मध्ये अंतर्धान हइते पारे ना । एवं सहचारी पदार्थ एक काले '

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