Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
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( ३५ ) सूसे पीछे होता है इसलिये वह उसीको जनासकता है कि होगया भरणि आदिके उदयको नहीं ॥७६॥
बंगला-एइ मुहूर्ते पूर्वे भरणिर उदय हयनाइ । ये हेतु एइ समये भरणिर उदयेर विरुद्ध पुनर्वसुर पश्चात् याहार उदय हय सेई पुष्य नक्षत्रेर उदय विद्यमान । अर्थात् पुष्य नक्षत्रेर उदय पुनर्वसुनक्षत्रेर पश्चात् हइयाथाके एजन्य से ताहारउदय केई बोध कराय भरणी आदिर उदयेर बोध करायना ॥७६॥ विरुद्ध सहचरोपलब्धिका उदाहरणविरुद्धसहचरापलब्धिर उदाहरण
नास्त्यत्र भिचौ परभागाभावोग्भिागदर्शनात् ॥७७॥
हिंदी इसभीतिमें उसओरके भागका अभाव नहीं है क्योंकि उस ओरके भागके अभावसे विरुद्ध किंतु उस ओरके भागका साथी इस ओरका भाग साफ दीख रहा है ॥७॥ ___ बंगला-ऐइ भितिर अपर पार्धार पृष्ठभागेर अभाव नाइ । ये हेतु अपरपावॆर अभावेर विरुद्ध ताहार सहचारी एइपाधैर पृष्ठभाग स्पष्ट देखा जाइते छे ॥७७॥ प्रतिषेधरूपसाध्यको सिद्धकरने वाली अविरुद्धानुपलब्धिके भेदप्रतिषेधरूपसाध्येर सिद्धिकारक अविरुद्धानुपलब्धिर भेद
अविरुद्धानुपलब्धिःप्रतिषेधे सप्तधा स्वभावव्यापककार्यकारणपूर्वोत्तरसहचरानुपलंभभेदात् ॥७॥
हिंदी-प्रतिषेध साध्य रहनेपर अविरुद्धानुपलब्धिके सात