Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
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हिंदीवंगानुवादसहितं परीक्षामुखं । १५ विकल्पसिद्धे तस्मिन्सत्तेतरे साध्ये ॥ २८॥
अस्ति सर्वज्ञो नास्ति खरविषाणं ॥ २९ ॥ हिंदी-विकल्पसिद्ध धर्मीमें अस्तित्व एवं नास्तित्व साध्य रहते हैं । जैसें-सर्वज्ञ है और गधेके सींग नहीं है इत्यादि ।। २८-२९ ॥
बंगला--विकल्प सिद्ध धर्माते अस्तित्व नास्तित्व साध्य हइया थाके । यथा सर्वज्ञ आछे, गाधार सींग थाके ना इत्यादि ॥ २८-२९॥
प्रमाणोभयसिद्धे तु साध्यधर्मविशिष्टता ॥३०॥ अग्निमानयं देशः परिणामी शब्द इति यथा ॥३१॥ व्याप्तौ तु साध्यं धर्म एव ॥ ३२ ॥ अन्यथा तदघट
नात् ॥ ३३ ॥ हिंदी--प्रमाणसिद्धधर्मी और उभयसिद्धधर्मीमें साध्यरूप धर्मविशिष्ट धर्मी साध्य होता है । जैसें-यह देश अग्निवाला है यह प्रमाणसिद्ध धर्मीका उदाहरण है क्योंकि यहां देश, प्रत्यक्षप्रमाणसे सिद्ध है और शब्द परिणमन स्वभाववाला है यह उभयसिद्ध धर्मीका उदाहरण है क्योंकि यहांपर शब्दरूपधर्मी उभयसिद्ध है । व्याप्तिमें धर्म ही साध्य होता है यदि व्याप्तिकालमें धर्मको छोड धर्मी साध्य माना जायगा तो व्याप्ति नहिं बन सकैगी ॥ ३०-३१-३२-३३ ॥
बैंगला-प्रमाणसिद्ध धर्मी ओ उभयसिद्ध धर्मीते साध्य विशिष्ट धर्मीइ साध्य हइया थाके । यथा-ए देश अग्निविशिष्ट । एटी प्रमाणसिद्धधर्मीर उदाहरण । ये हेतु एइ देश प्रत्यक्ष