Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ हिंदीवंगानुवादसहितं परीक्षामुखं । १३ हिंदी-पूर्वचर और उत्तरचर पदार्थों में तथा कार्यकारणोंमें क्रमभाव नियम होता है । अर्थात् कृतिकाका उदय पहिले होता है उसके बाद ही रोहिणी नक्षत्रका उदय होता है तथा अमिके बाद धूआं होता है इत्यादिको क्रमभाव कहते हैं और तर्कसे इसका निर्णय होता है ॥ १८-१९ ॥ बंगला--पूर्वचर ओ उत्तरचर पदार्थे एवं कार्य ओ कारणे क्रमभावनियम हय अर्थात्-कृतिका नक्षत्रेर उदय पूर्वे हय, ताहार पश्चात् रोहिणी नक्षत्रेर उदय हइया थाके । एवं अमिर पश्चात्इ धूम्र हय इत्यादिके क्रमभाव बले । अथच तर्कद्वाराइ इहार निर्णय हइया थाके ॥ १८-१९॥ __इष्टमवाधितमसिद्धं साध्यं ॥ २० ॥ हिंदी -जो वादीको इष्ट हो प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे बाधित और सिद्ध न हो, उसे साध्य कहते हैं ॥ २० । बंगला--जे वादीर इष्ट [ अभिप्रेत ] प्रत्यक्षादि प्रमाण द्वारा बाधित एवं सिद्ध ना हय ताहाकेइ साध्य बले ॥२०॥ संदिग्धविपर्यस्ताव्युत्पन्नानां साध्यत्वं यथा स्या दित्यसिद्धपदं ॥ २१ ॥ अनिष्टाध्यक्षादिवाधितयोः साध्यत्वं माभूदितीष्टावाधितवचनं ॥ २२ ॥ न चासिद्धवदिष्टं प्रतिवादिनः ॥ २३ ॥ प्रत्यायनाय हीच्छा वक्तुरेव ॥ २४ ॥ हिंदी-संदिग्ध, विपर्यस्त और अव्युत्पन्न पदार्थ ही साध्य हों इसलिये ऊपरके सूत्रमें असिद्धपद दिया गया है और-वादी का अनिष्ट पदार्थ साध्य नहिं होता इसलिये साध्यको इष्ट

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90