Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 29
________________ २० . ...सनातमजैनग्रंथमालायां बंगला-उपनय एवं निगमनओ अनुमानेर अंग हइते पारे ना। ये हेतु साध्ययुक्त पर्वतादि धर्मीर मध्ये हेतु ओ साध्येर कथन करितेइ हेतु एवं साध्य ज्ञाने कोनओ प्रकार संशय उत्पन्न हय ना अर्थात् हेतु ओ साध्येर उल्लेख करिलेइ हेतु एवं साध्येर अस्तित्वेर निश्चय हइया जाय ॥ ४४ ॥ संमर्थनं वा वरं हेतुरूपमनुमानावयवो वास्तु साध्ये तदुपयोगात् ॥ ४५ ॥ हिंदी-साध्यकी सिद्धि समर्थन वा अनुमानके अंगभूत हेतुसे ही हो सकती है क्योंकि साध्यकी सिद्धिमें समर्थन वा हेतुकी पूरी २ आवश्यकता पडती है दृष्टांतादिककी नहीं, क्योंकि उनके विन। भी साध्यकी सिद्धि हो जाती है ॥ ४५ ॥ बंगला-साध्यसिद्धि समर्थन ओ अनुमानेर अंग हेतुद्वाराइ हइते पारे । ये हेतु साध्यसिद्धिर मध्ये समर्थन एवं हेतुर पूर्णतया आवश्यकता हय, दृष्टांतप्रभृतिर आवश्यकता हय ना । कारण-उहादेर ना हइलेओ साध्येर सिद्धि हइया जाय ॥४५॥ बालव्युत्पत्त्यर्थ तत्त्रयोपगमे शास्त्र एवासौ न वादे, __ अनुपयोगात् ॥ ४६॥ हिंदी-दृष्टांत आदिके स्वरूपसे सर्वथा अनभिज्ञ बालकोंको समझानेकेलिये यद्यपि दृष्टांत आदि कहना उपयोगी है परंतु शास्त्रमें ही उनका स्वरूप समझाना चाहिये वादमें नहीं, क्योंकि वाद व्युत्पन्नोंका ही होता है ॥ ४६॥ १ हेतुके दोषोंको दूरकर उसकी पुष्टि करनेको समर्थन कहते हैं। . १ हेतुर दोष दूर करिया ताहार पुष्टिसाधनके समर्थन बले ।

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