Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
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- हिंदीवंगानुवादसहितं परीक्षामुखं । २३ तद्वचनमपि तद्धेतुत्वात् ॥५६॥ हिंदी-परार्थानुमानका प्रतिपादक वचन, ज्ञानस्वरूपपरा. र्थानुमानका कारण है इसलिये वह भी परार्थानुमान है मुख्यरूपसे वचन परार्थानुमान नहीं ॥५६ ॥
बंगला-परार्थानुमानेर प्रतिपादक वचन ज्ञानस्वरूप परार्थानुमानेर कारण । अतएव सेटिओ परार्थानुमान । मुख्यतया वचनइ परार्थानुमान नहे ॥ १६ ॥
स हेतुधोपळब्ध्यनुपलब्धिभेदात् ॥ ५७ ॥ उपलब्धिर्विधिप्रतिषेधयोरनुपलब्धिश्च ।। ५८॥ __ हिंदी-हेतुके दो भेद हैं एक उपलब्धि दूसरा अनुपलब्धि, उपलब्धिमें विधिरूप एवं प्रतिषेधरूप दोनों प्रकारके साध्य होते हैं तथा अनुपलब्धिमें भी विधिरूप और प्रतिषेधरूप दोनों प्रकारके साध्य होते हैं किंतु उपलब्धिमें विधिरूप और अनुपलब्धिमें प्रतिषेधरूप ही साध्य हो यह वात नहीं ॥५७॥५८॥ उपलब्धिके दो भेद हैं एक अविरुद्धोपलब्धि दूसरा विरुद्धोपलब्धि । इनमेंसे प्रथम आवरुद्धोपलब्धिका वर्णन करते हैं ।
बंगला-हेतु दुइप्रकार । प्रथम-उपलब्धि द्वितीय अनुपलब्धि । उपलब्धिते विधिरूप ओ प्रतिषेधरूप उभयप्रकारेर साध्य हय । एवं अनुपलब्धितेओ उभयरूप साध्य हइया थाके किंतु उपलब्धिते केवल विधिरूप ओ अनुपलब्धिते केवल प्रतिषेधरूप हय एरूप नय ॥५७-५८॥ उपलब्धि दुइ प्रकारअविरुद्धोपलब्धि एवं विरुद्धोपलब्धि । तन्मध्ये प्रथम अविरुद्धोपलब्धिर वर्णन कारते छेन