Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
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हिंदी वंगानुवादसहितं परीक्षामुखं ।
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बंगला - दृष्टांत प्रभृतिर स्वरूप हइते सर्वथा अनभिज्ञ बालकेर जन्य दृष्टांतप्रभृति उपयोगी हइते पारे किंतु ताहादिगरे स्वरूप शास्त्रे वर्णन करिया बुझाइते हय, वादे ताहार आवश्यकता नाइ । केनना - बाद व्युत्पन्न व्यक्तिर मध्येइ हइया थाके ॥ ४६ ॥
दृष्टांत द्वेधा अन्वयव्यतिरेकभेदात् ||४७|| साध्यव्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोन्वयदृष्टांतः ॥४८॥ साध्याभावे साधनाभावो यत्र कथ्यते स व्यतिरेकदृष्टांतः ।। ४९ ।।
हिंदी -दृष्टांत के दो भेद हैं । एक अन्वयदृष्टांत दूसरा व्यतिरेकदृष्टांत | जहां हेतुकी मोजूदगी से साध्यकी मोजूदगी बतलाई जाय उसे अन्वयदृष्टांत कहते हैं। और जहां साध्यके अभाव में साधनका अभाव कहा जाय उसे व्यतिरेकदृष्टांत कहते हैं ।
॥। ४७-४८-४९ ॥
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बंगला - दृष्टांत दुइ प्रकार | प्रथम अन्वयदृष्टांत द्वितीय व्यतिरेकदृष्टांत । येखाने हेतुर अस्तित्वद्वारा साध्येर अस्तित्व वर्णन करा जाय ताहाके अन्वयदृष्टांत बले । एवं येखाने साध्याभावे साधनेर अभाव बला हय, ताहाके व्यतिरेकदृष्टांत बले ॥ ४७-४८-४९ ॥
हेतोरुपसंहार उपनयः ।। ५० ।।
हिंदी - व्याप्तिपूर्वक धर्मीमें हेतुकी निस्संशय मोजूदगी बतलाना उपनय है यथा [ तथा चायं धूमवान् - ] वैसा ही यह भी धूआंवाला है ।। ५० ।।