Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
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हिंदीवंगानुवादसहितं परीक्षामुखं ।
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करे ना । अर्थात् वादी प्रतिवादी सकलकेइ पक्षेर प्रयोग अवश्य करितेइ हइवे ॥ ३४.३५-३६॥
एतद्द्वयमेवानुमानांगं नोदाहरणं ॥ ३७ ॥ न हि तत्साध्यप्रतिपत्त्यंगं तत्र यथोक्तहेतोरेव व्यापारात् ॥ ३८ ॥ हिंदी -- पक्ष और हेतु ये दो ही अनुमानके अंग हैं सांख्यमतीके कथनानुसार उदाहरण अनुमानका अंग नहीं है क्योंकि उदाहरण, साध्य के ज्ञानमें हेतु नहीं है । जिस हेतुका साध्यके साथ अविनाभावनिश्चित है वह हेतु ही साध्य के ज्ञान कराने में पर्याप्त है ।। ३७-३८ ॥
बंगला - पक्ष ओ हेतु ए दुइटि अनुमानेर अंग । सांख्य दर्शनकथित उदाहरण अनुमानेर अंग हइते पारे ना । ये हेतु उदाहरण साध्यज्ञाने हेतु हइते पारेना । ये हेतुर साध्येर संगे अविनाभाव निश्चित, से हेतुइ साध्येर ज्ञान कराइते समर्थ
॥ ३७-३८ ॥
तदविनाभावनिश्चयार्थं वा विपक्षे बाधकादेव तत्सिद्धेः || ॥ ३९ ॥
हिंदी -- अथवा वह उदाहरण साध्यके साथ हेतुके अविनाभाव के निश्चय करानेके लिये भी ( कारण ) नहिं हो सकता क्योंकि - विपक्ष में बाधक प्रमाण मिलनेसे ही साध्य के साथ अवि नाभाव सिद्ध हो जाता है ॥ ३९ ॥
बंगला – अथवा से उदाहरण साध्येर संगे हेतुर अविनाभाव निश्चय कराइबार जन्यओ कारण हइते पारै ना। कारण- विपक्षे वाधकप्रमाण हो ओयाते साध्येर संगे अविनाभाव सिद्ध दइया जाय ॥ ३९ ॥