Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 23
________________ १४ सनातनजैनग्रंथमालायांविशेषण लगाया गया है तथा प्रत्यक्षादि किसी भी प्रमाणसे वाधित पदार्थ भी साध्य नहिं होते, इसलिये अवाधित विशेषण दिया गया है। इनमेंसे असिद्धविशेषण प्रधानतासे तौ प्रतिवादीकी अपेक्षासे है और इष्टविशेषण वादीकी अपेक्षा है क्योंकि दूसरेको समझानेकी इच्छा वादीकी ही होती है ॥२१-२२-२३-२४ ।। ___ बंगला--संदिग्ध, विपर्यस्त एवं अव्युत्पन्न पदार्थइ साध्य हओया उचित, अन्य पदार्थ साध्य हय ना बलियाइ उपर्युक्त सूत्रे असिद्धपद ग्रहण करा हइया छे । एवं वादीर अनिष्ट [ अनाभिमत ] पदार्थ साध्य हय ना बलिया साध्यके इष्ट वि. शेषण प्रदत्त हइया छे । एवं प्रत्यक्षादि कोनओ प्रमाणद्वारा वाधित पदार्थओ साध्य हइते पारे ना बलिया अवाधितपद विशेषण रूपे प्रदत्त हइया छे । इहाते प्रतिवादीर अपेक्षा असिद्ध विशेषण, वादीर अपेक्षा इष्ट विशेषण प्रदत्त हइया छ । केनना अपरके बुझाइबार इच्छा वादीरइ हइया थाके ॥२१-२४॥ साध्यं धर्मः कचित्तद्विशिष्टो वा धर्मी ॥ २५ ॥ पक्ष इति यावत् ॥२६॥ प्रसिद्धो धर्मी ॥२७॥ हिंदी-कहीं तौ ( व्याप्तिकालमें ) धर्म साध्य होता है और कहीं धर्म विशिष्ट धर्मी साध्य होता है धर्मीको पक्ष भी कहते हैं। धर्मी प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे प्रसिद्ध होता है ।।२५-२६-२७ बंगला--कोनओ स्थाने [ व्याप्तिकाले ] धर्म साध्य हय एवं कोनओ स्थाने धर्मविशिष्ट धर्मी साध्य हइया थाके । धमौके पक्षओ बला हय । धर्मी प्रत्यक्षादि प्रमाणद्वारा प्रसिद्ध ॥ २५-२६-२७ ॥

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