Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 9
________________ वार पड़ी ते सघखि परषदा रे, केशी सद्गुरु पास रे॥ धरम सुणीने हरखी अतिघणुं रे, सहु वल्या वांदी उ हास रे ॥याणा॥ हवे उठीने सारथी ईम कहे रे, वांदी केशी कुमार रे ॥ स्वामीजी सद्दडं प्रवचन सा धुनो रे, रोचवू चित्त अपार रे॥०॥ ए ॥ उद्यम करवा मुज मन ऊमहे रे, वचन तुमारां साच रे॥ पाच सरखां प्रवचन थाचलं रे, डोडं कुवचन काच रे ॥ श्रा॥ १० ॥ वली वांदीने इंणी परें वीनवेरे, जिम खामी तुह्म पास रे॥ उग्रने लोग कुलनां उपना रे,बॉमीनोग विलासरे॥श्रा० ॥१९॥ हिरण्य सुवणे मणि माणक तजी रे, बल वाहण कोगर रे ॥ पुर अंतेउर उपद चउपद घणां रे, देई दान उदाररे॥ श्रा० ॥ १२॥ व्रत लेने साधुपणुं नजे रे, शक्ति न ही मुज तेम रे ॥ देवाणु प्रिय पसवाडे ग्रहुं रे, श्राव कव्रत बहु प्रेम रे॥ प्रा०॥ १३॥ तव गुरुबोव्या जम सुख तिम करो रे,म करो श्हांप्रतिबंध रे॥चित्रसारथी केशी गुरु कन्हे रे, त्ये श्रावकवत खंध रे॥श्रा०॥१४॥ ॥दोहा॥ ॥ तेह पड़ी चित्र सारथी, केशी सद्गुरु पास ॥ व्रत ले श्रावक तणां, करी वंदन उदास ॥१॥जि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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