Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 48
________________ (४७) सात, पूरा थया विख्यात ॥ श्म कहे नित्य ज्ञान चंद, जिनवचने परमानंद ॥७॥ ॥ ढाल बीशमी ॥ राग मेघमल्हार ॥ प्राणी वाणी जिनतणी॥ एदेशी ॥ ॥ते सुणीने राजा जणे, ए तो स्वामी उपमा थाय रे ॥ प्रज्ञा बुझि विशेषथी, पण नावे मुज मन गय रे ॥१॥ पण नावे मुज मन गय, ईणे कार ण करी, मुनिराय रे ॥नहीं जूया जीवने काय ॥ श्णे ॥ ए आंकणी ॥एक दिवस बेगे अर्बु, स्वामी हुँ परषद मांहि रे, कोटवाल पुरुष मली, एक चोरने श्राण्यो साहि रे॥एक०॥णे॥मुनि॥२॥तेवार पड़ी ते चोरनें, में जोयो उपर हेठ रे जीव कहां देखु नहीं, दोई कटका कीधा ने रे ॥ दो॥ ॥ इणे ॥ मुनि ॥ ३ ॥ सघली दिस जोएं वली, पण जीव न दीगे केथ रे ॥ तीन चार कट का कीया, दीगे नही तोपण तेथ रे ॥ दी ॥णे० ॥ मुनि ॥४॥ संख्याता कटका करी, जोयो में स घले गम रे ॥ जीव पेठो किहां कणे, तव मुज मति उपनी श्राम रे ॥ तव०॥णे॥ मुनि ॥५॥ जो ते नर टुकडा कीये, नवि दीगे जीव विशेष रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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