Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 72
________________ (७१) जिनवररायजी रे, अरिहंत श्रीमहावीर ॥ सागर गं नीर, मेरुतणीपरें धीर ॥ जिनवररायजी रे॥॥चार पठ्योपम श्राउ रे, कहे ईम श्रीमहावीर ॥ किहां जाशे तिहाथी चवी, पूजे गौतम धीर ॥ जिन ॥३॥ माहावि देहमां जायशे रे, दीपता कुल श्रीमंत ॥ धण कंचण जिहां अतिघणां, दासी दास महंत ॥ जिन ॥४॥तिण कुलमां जपामशे रे, पुरुष तपो अवतार ॥ गर्नथकी माता पिता, होशे दृढ धर्म था चार ॥ जिन ॥५॥ तिण कुल जनम तो पामशे रे, सुंदर रूप श्राकार ॥ मात पिता करशे सही रे,जन म महोत्सव सार । जि०॥६॥ ज्ञाति सहु जमा मीने रे, देशे नाम उदार ॥ गर्नथकी माता पिता, हुवा दृढ धर्म अपार ॥ जि०॥७॥ सातिरेक पाठ वर्षनो रे, जापी मायनें ताय॥ कलाचारजनेश्रापशे, शीखवा कला उपाय ॥ जि॥॥ कलाचाये शीखा वीने रे, बहोतेर कला विज्ञान ॥ मात पिताने सोंप शे, देशे तसु बहु दान ॥ जि ॥ ए॥ तेवार पड़ी ते कुंघरू रे, होसे यौवन जाव ॥ बाल जावने डोक शे, जाणशे सकल स्वजाव ॥ जि ॥ १०॥ कला ब होत्तेर जाणसे रे, नाषा देश अढार॥ कुशल घणुं हो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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