Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 76
________________ (७५) वाण रे ॥ साधु ॥ अंत करशे सहु छःखनो, शेप रम कल्याण रे॥ साधु ॥ बो० ॥ १६॥ सेवनंते ईम कहे, गौतम मुनि गुणवंत रे ॥ साधु ॥ वांदी श्रीम हावीरने, धोरी धरम महंत रे ॥ साधु ॥वो ॥१७॥ संयम तपें करी जावता, आपण विविध प्रकार रे ॥ साधु ॥ विहरे साधु गुणें करी, पूर्वी एह विचार रे॥ ॥ साधु ॥ बो० ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ ए अधिकार सुणी सहु, धरजो धर्मश्राचार॥ जिनवर धर्म थकी सही, बेशो नव निस्तार ॥१॥ धन्य ते केशी मुनिवरु, धन्य ते सारथी चित्र॥धन्य परदेशी रायजी, धन्य जिनधर्म विचित्र ॥ ५ ॥ धन्य श्रीगौतम स्वामीजी, धन्य जिनवर महावीर ॥ जेहना वचनथकी सही, पामीजें जवतीर ॥३॥ ॥ ढाल एकतालीशमी ॥राग धन्याश्री॥ ॥ रायपसेणीय बीय उपंगथी, उभरी ए श्रधि कार ॥ परदेशी प्रबंध में ए रच्यो रंगशु, प्रसन्न उ त्तर सुविचार ॥१॥ जगत गुरु श्रीदया धर्म जयका र ॥ पामीय जवतणो पार ॥ जगण॥ समकित शुक आधार ॥ जग ॥ ए आंकणी ॥ गहन अरथडे श्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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