Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 45. अथ श्रीपरदेशी-राजानो -रास. एतिषेक 62-19 तथा देवद्रव्यना उपजोगथी यती हांनीवी से तथा वृक्षोथी यता शुभाशुभ फल तथा निक्षानुंखावायी यता अवगुण वीशे नांदष्टांतो तेने 'भवादीक नही माननारा नास्तिक जनोने पीयुषसम उपदेशरूप जाणीने. यथाबुधी शुध्ध करीने. श्रावक, नीमसिंह माणकें. श्री मुंबापुरीमध्ये. Jain Educationa Inte .. निर्णयसागर " मुद्रायंत्रमां मुद्रित कराव्यो छे. संवत् १९५७. सने १९०१. भादरवासुदी पूर्णिमां. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री वीतरागाय नमः॥ ॥श्रीपरदेशी राजानो रासप्रारंनः॥ ॥ दोहा ॥ ॥ प्रणमी श्रीअरिहंतपय, समरी सिद्ध अनंत॥ थाचारिज उवद्याय वली, साधु सहू लगवंत ॥१॥ शासन नायक समरियें, वरदाई वर्षमान ॥ गुरुगौत मगुण गाश्य, दायक वंबित दान ॥२॥धर्माचार ज धर्मगुरु, मन धरी सुधर्म खाम, जंबू प्रमुख महा यति, समरी श्रुत शुन नाम ॥३॥बीय उवंगेंबूज व्या,रायपसेणी रंग ॥ परदेशी राजा प्रवर, सद्गुरु के शी संग॥४॥रचना ते अधिकारनी, रचवा मुज मन राग॥पण मन वंबित पूरवा,सूधोसदगुरु लाग॥५॥ ॥ ढाल पहेली राग श्राशावरी ॥ चाल वेली नी॥ लढणी श्राख्याननी ॥ ॥ तिणे काले तिणे समें नयरी, श्रामलकप्पा ना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म॥कि समृद्धि महासुख संपद, उत्तम जननोग म॥१॥कूण ईशाणे तिण नगरीमें, अंबसाल श्रा राम ॥ पादप वृक्ष अशोक शिला पट, सेयराय श्र निराम ३२॥ खामी श्रीमान सुखंकर श्रावी स मोसरे ताम॥ राय प्रमुख सहु परखद वांदी, प्रजुना करे गुणग्राम ॥३॥ हवेण अवसर सुरवर महोटो, सूरियान सुख धाम ॥ सोहम कल्प सजा सुधर्ममें, जोगवे वंबित काम ॥४॥ण अवसर इंण जंबून रतें, अवधे दीग सामि ॥श्रामलकप्पा वन अंबसा ला, संयम तप विश्रामि॥५॥श्रागंबरशुं जिनवर वां दी, धरम सुणी श्रनिराम ॥ सुलनबोधपणुं निजपू बी, करवा नाटक काम ॥६॥ प्रजुनें पूजे पण नवि बोले,जाणीसकल विराम ॥ नाटक करि बत्रीशप्रका रें, पहुता अपणे गम ॥ ७ ॥ श्ण अवसर श्रीगौतम खामी, प्रजुने पूजे श्राम ॥ एहवी शकिलही किम खामी, पूरव जव कुण ग्राम॥ ७॥दीधुं शुं श्राच खामी, शी करणी करी ताम॥श्रारिज वचन सुएयु शुं एहवं, सूधा सद्गुरु पाम ॥ ए ॥ जिनवर श्रीम हावीर प्रत्यें जब, पूजे गोयम एम ॥ तव बोख्या । ईमान गुणोदधि, व्यतिकर कहे सहु जेम ॥ १० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ढाल बीजी ॥ राग सारंग॥ ईर आंबा लांब ली रे ॥ ए देशी ॥ ॥ण अवसर इंण जरतमें रे,नामें के यह देश॥ नयरी नाम सेतंबिकारे, वनह आराम प्रदेश॥१॥ महामुनि, सांजलोसूत्र विचार॥श्रीदयाधर्म अधिका र॥ महा ॥ शहां हिंसा नहींय लगार ॥ महा॥ए श्रांकणी ॥ कूण ईसाणे जाणीयें रे, मृगवन नाम उ द्यान ॥ राय प्रदेशी राजीयो रे, अधरमनो अहिग ण ॥ महा ॥२॥ वृत्ति करे पापें करी रे, अधरम रूप श्राचार॥श्रधरम अरथी जाणीयें रे, अधर्म दे खण हार ॥ महा० ॥३॥ हणवु छेद नेदर्बु रे, तिणें करी चंमने रुष ॥ लोहितपाणी साहसी रे, कूड कपट समुज ॥ महा॥४॥शील नहीं व्रतको नहीं रे, निगुणोने निम्मेर ॥ व्रत पौषध उपवासशुं रे, जेहनें पूरुं वैर॥ महा॥५॥ उपद चौपद पशुं पं खीया रे, करवाऊव्यो घात॥अधरम केतु समोसही रे, दया तणी नहीं वात ॥महा०॥६॥ मोटांगें ठे नहीं रे, नहींको विनय विचार॥ रूडी परें न करे कदेंरे, देश तणो व्यवहार ॥ महा॥ ॥ तिण प रदेशी रायने रे, सूरिकंता नारी॥निज प्रिय अनुरा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) गिणी रे, जोगवे लोग उदार ॥ महा० ॥ ॥ तसु घर अंगज जाणीयें रे, सूरीकंत कुमार ॥ देश वाहन कोगरनो रे,युवराज अधिकार ॥ महा॥ ए॥तिण परदेशी रायने रे, ज्येष्ठ जात वयंस ॥ नामें चित्र ने सारथी रे, राज्य तणो अवतंस ॥ महा ॥१०॥ देश कुणाला जाणीयें रे, तिण अवसर तिणकाल ॥ सावढी नगरी तिहां रे,शफिसमृद्धि विशाल॥महान ॥१॥ कोठग चैत्य तिहांथ रे, जितशत्रु नामें राय॥ राजा परदेशी तणार,अंतवासी कहाय॥महा॥१३॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे परदेशी एकदा, तेड्या सारथी चित्र ॥ जित शत्रु पासें पाठव्यो, नेटणुं देश विचित्र ॥१॥ जित शत्रु पासें श्राविया, अनुक्रमें चित्र उदास ॥ कर जोडी सहु नेटणुं, मूक्युं राजापास ॥॥राजास कारी दीये, राजमार्ग श्रावास॥चित्र तिहां जश् ऊत स्या,जोगवे लोग विलास ॥३॥ सर्वगाथा ॥३१॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ राग केदारो गोडी ॥ सुण मेरी सजनी रजनी न जावे रे ॥ ए देशी॥ ॥तिण कालें गुरु श्राव्या केशी रे, पास संतानी मु निगुणदेशी रे॥ति॥१॥जातिसंपन्नाकुलसंपन्ना रे, ब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) ल संपन्ना रूप संपन्ना रे ॥ ति०॥२॥ जयंसी तेयंसी कहीयें रे, वच्चंसी जस्संसी लही में रे ॥ ति० ॥ ३ ॥ जियको हे जि यमाणे जाणो रे, जियमाए जियलोज वखाणो रे, ॥ ति०॥४॥ जियणिद्दे जियइंदी सघलां रे, जियपरिसह जे जग सबला रे ति० ॥ ५ ॥ नहीं कां श्राशा जी ववा के रे, मरण तणो जय मूक्यो खेरी रे ॥ ति० ॥ ॥ ६ ॥ जगमां जेहनां व्रत बेजाचां रे, गुणवंत गिरुथा सदगुरु साचा रे ति० ॥ ७ ॥ चरण करण गुण निर्मल धारी रे, पाप तथा वली निग्रहकारी रे ॥ ति० ॥ ८ ॥ अव मद्दव लाघव चारि रे, मुत्ति मा गुणजाउँ बलिहारी रे ॥ ति० ॥ ॥ विद्या मंत्र जाणे सहु योगा रे, शीयल समाधिनें गया जोगा रे ॥ ति० ॥ १० ॥ पंच महाव्रत पाले पूरां रे, सत्य वदे मुख संयम शू रा रे ॥ ति० ॥ ११ ॥ शुचिराखे व्रत दूषण टाले रे, साधु तथा गुण सुधा पाले रे ॥ ति० ॥ १२ ॥ ज्ञान दर्शन, चारित्र जुत्ता रे, वायुपरें प्रतिबंध विमुत्ता रे ॥ ति० ॥ १३ ॥ चउदस्स पुर्वी वली चन नाणी रे, गुण कहुं केता एम वखाणी रे ॥ ति० ॥ १४ ॥ पंचसय साधुशुं परिवरया चाले रे, गामथी गामें गज जिम माले रे ॥ ति० ॥ १५ ॥ सुखशुं विहरता आव्या स्वामी रे, नय For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) रि सावळी शिवसुख गामी रे॥ ति॥ १६॥ समव सख्या प्रजु कोठग चेहरे, साधु विहारें उग्गह आई रे॥ ति॥ १७॥ संयम तप किरियापणे जावे रे, श्म केशी मुनि ज्ञानचंद गावे रे ॥ ति॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ सावजी नयरी तदा, संघाडग त्रिक चोक॥च चर चौमुख राज्यपथ,वातकरे ईम लोक॥॥टोलें टो दें लोक बहु, मलियां जननां वृंद॥जयजय शब्द हुवे घणा, मनमां परमानंद ॥२॥केशी गुरु श्राव्या शहां बहु श्रुतबहु परिवार ॥ जो गुरु वांदीजें इस्या, सफल होय अवतार ॥३॥ के घोडे केश गयवरें, केशरथ चढिया जाय॥खंत घणी गुरु वांदवा,मनमा हरख न माय॥४॥केश्पालखी बेसणे, केश्वली पाय विहार॥ केश वांदण के पूजवा, केश सुणवा श्रुत सार॥५॥ के मनशंका नांजवा, करवा प्रश्न अपार ॥ केश जाणीधर्म तप घणा, केश वली जित श्राचार ॥६॥ हणहण तेजी हय करे, गुलगुल शब्द गयंद ॥ घ पघण वाजे घूघरा, रथ बेग जनवृंद ॥ ७॥ इणि परें श्रावे लोक बहु, वांदवा सदगुरु पाय ॥ सेवा पर खद साचवी, बेग निज निज गय॥ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ॥ ढाल चोथी ॥ राग रामग्री ॥ बानोने उप करि कंता किहां रह्यो रे ॥ ए देशी ॥ अथवा, जू आगमगति पुण्यनी रे ॥ए देशी ॥ .॥ईणे प्रस्तावें तित्र ते सारथी रे, सुणी जन श ब्द अपार रे ॥ लोकने देखी जाता रंगशुं रे, चिंतवे चित्त महार रे ॥ १॥ श्राज महोत्सव इंण नगरी किश्यो रे, पूजे कंचुकी पास रे ॥ कर जोडीने तेपण इंम कहे रे, जाणी वात उदास रे॥श्रा॥॥श्राज महोत्सव बीजो को नहीं रे,श्म जाणो मुज सामीरे॥ पास संतानी सङ्गुरु श्रावीया रे, केशी जेहy नाम रे ॥ श्रा० ॥३॥ वात सुणीने हरख्या सारथी रे, इम दीये सेवक काज रे ॥ देवाणुप्रिय सज थासह रे, वांदीशुं सदगुरु श्राज रे॥श्रा॥४॥ सेवक बंदरां परिवस्या सारथी रे, घोड वहिल बेग रंग रे ॥ त्र धरीजें माथे शोजतुंरे, श्राव्यो केशीने संग रे॥श्रा ॥५॥ तीन प्रदक्षिणा देई सामीनें रे, वंदना करे क र जोडी रे॥ सारथी बेग सदगुरु सामुहा रे, मानने मत्सर बोडी रे॥श्रा०॥६॥सदगुरु केशी पण ये एह वो रे,अमृत सम उपदेश रे ॥ चार महाव्रत परिषद श्रागडे रे, हिंसा नहीं लव लेश रे ॥था ॥७॥ ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वार पड़ी ते सघखि परषदा रे, केशी सद्गुरु पास रे॥ धरम सुणीने हरखी अतिघणुं रे, सहु वल्या वांदी उ हास रे ॥याणा॥ हवे उठीने सारथी ईम कहे रे, वांदी केशी कुमार रे ॥ स्वामीजी सद्दडं प्रवचन सा धुनो रे, रोचवू चित्त अपार रे॥०॥ ए ॥ उद्यम करवा मुज मन ऊमहे रे, वचन तुमारां साच रे॥ पाच सरखां प्रवचन थाचलं रे, डोडं कुवचन काच रे ॥ श्रा॥ १० ॥ वली वांदीने इंणी परें वीनवेरे, जिम खामी तुह्म पास रे॥ उग्रने लोग कुलनां उपना रे,बॉमीनोग विलासरे॥श्रा० ॥१९॥ हिरण्य सुवणे मणि माणक तजी रे, बल वाहण कोगर रे ॥ पुर अंतेउर उपद चउपद घणां रे, देई दान उदाररे॥ श्रा० ॥ १२॥ व्रत लेने साधुपणुं नजे रे, शक्ति न ही मुज तेम रे ॥ देवाणु प्रिय पसवाडे ग्रहुं रे, श्राव कव्रत बहु प्रेम रे॥ प्रा०॥ १३॥ तव गुरुबोव्या जम सुख तिम करो रे,म करो श्हांप्रतिबंध रे॥चित्रसारथी केशी गुरु कन्हे रे, त्ये श्रावकवत खंध रे॥श्रा०॥१४॥ ॥दोहा॥ ॥ तेह पड़ी चित्र सारथी, केशी सद्गुरु पास ॥ व्रत ले श्रावक तणां, करी वंदन उदास ॥१॥जि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) णदिसि श्राव्या तिणदिसें पढ़ता हरष अपार॥श्रा वकवत चोखां धरे,शंका नहीथ लगार ॥२॥३॥ ॥ढाल पांचमी॥राग जैतश्री ॥ केली ____ करावे हाथीयो ॥ ए देशी ॥ ॥ तेवार पली चित्र सारथी, समणोपासक हूवा रे ॥ जीव अजीव जाण्या सहु पुण्य पाप लह्यां जूारे ॥१॥ श्रावक गुण हवे सांजलो,सूत्रतणो अधिकारो रे॥ जिण करणी श्रावक तरे, शंका दूर निवारो रे ॥श्रावण ॥२॥श्राश्रव संवर निर्जरा, किरिया बंध ने मुको रे॥ कुशल घ[ चित्र सारथी, जाण्यां सहु सुख पुरको रे ॥ श्रावण॥३॥ साह्य न वांजे देवर्नु, कर्म निकाचित जाणी रे ॥ जो नवि बूटे जिन जि सा, मनमां इंम मति आणी रे ॥॥ श्रावण ॥४॥ देव असुर नाग बहु मिले, जदराक्षस बहु नेदा रे॥ चूकावी न शके किमें,प्रवचनथी कुंवेदा रे॥श्रा०॥५॥ जिन वचने शंका नही, अवर धरम नहीं कंखा रे॥ फल प्रत्ये नवि शंका करे, श्म ग्रह्या धर्मना पंखा रे ॥श्रा ॥५॥ अरथ लह्या गुरुमुखथकी, वली धस्या हृदय मकारो रे॥पूबीने निश्चय कख्या,प्रवचन वचन विचारो रे ॥श्रा० ॥॥ हाडमीजी लगें धरम वस्यो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाण्यो ए परम बो रे ॥ जिनवर वचन विना सहु, मन जाणे अन बो रे॥ श्रा०॥ ॥ चौदशने श्राप म वली, पूनमनें अमावास्या रे ॥परिपूरण पोसह करे, मन न धरे कां आशा रे ॥श्रा॥ए॥फिट कनी परें मन निर्मवं, धरे उघाडां बारो रे॥ते जाणे विध केवती, एह अरथ अधिकारोरे॥श्रा॥१०॥ राजादिक अंतेउरें, न करे कबहीं प्रवेशो रे ॥ सम कित रतन रतन श्श्युं गद्यु, हिंसा नही लवलेशोरे॥ श्रा०॥ ११॥ श्रमण निग्रंथ जे साधुजी,श्रशनादिक थाहारो रे॥पडिलाने अति सूजता, जिहां नही दोष लगारो रे ॥श्रा॥१॥पीठ फलग सिङा वली, संथा रो व पत्तो रे॥ पडिग्गह कंबल पूंबणो, औषध नै षज्य जुत्तो रे॥श्रा॥१३॥ईम पडिलाने साधुजी, नित्य धरे उत्तम शीलो रे ॥ व्रत पौषध उपवासरां, श्म दिन दिन जसु लीलो रे ॥ श्राप ॥ १४ ॥ ॥दोहा॥ ॥ईम निजबातम नावशें, वोहोरे सारथ चित्र॥ राज्य काज जितशत्रुशु, सहु करे श्राप विचित्र ॥१॥ श्रन्यदा जितशत्रुराय वली, नेटबुं करी सहु सङ॥ चित्र नणी इंणी परें कहे, हवे पोहोचो निऊ रङ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) राजा परदेशी प्रत्यें, नेटणु देजो एह ॥ वीनवजों पगे लागीनें, साचो एह सनेह ॥ ३ ॥ म कहीने वोलावीया, सतकारी घे शीग ॥ चित्र चाल्या गुरु वांदवा, निज पग जरता विख ॥ ४ ॥ खंत करी गुरु वांदीया, केशी श्रमण कुमार ॥ धर्म सुणी हवे उठी नें, विनवे विविध प्रकार ॥ ५ ॥ सर्वगाथा ॥ २ ॥ ॥ ढाल बड़ी | राग सारंग तथा मल्हार ॥ रसीयानी देशी ॥ ॥ कर जोडीनें हो सदगुरु वीनवुं शीख दीधी मु ज राय रे ॥ वसीया ॥ हुं जाउं हुं हो नगरी आपणी, वांदी प्रभुना पाय रे ॥ वसीया ॥ १ ॥ पूज्य पधारो हो न गरी श्रम्ह तणी ॥ सेतंबिका नगरी हो चंग रे ॥ वसी या ॥ जो वा जोग्य हो सुंदर श्रतिघणु, समवसरो मनरंग रे ॥ वसीया ॥ पूज्य० ॥ २ ॥ तिवार पढी हो केशी मु निवरू, चित्र सारथीनी वाणी ॥ सोजागी ॥ श्रादर न करे दो नवि अंगीकरे, अबोल्या रहे जाण सोना ग़ी ॥ पू० ॥ ३ ॥ तेवार पछी हो वली चित्रसारथी, वि नवे बीजी हो वार रे ॥ वसीया ॥ वेग पधारो हो नग री अम्द तणी, चित्र वचन श्रवधार ॥ सोजागी ॥ पू० ॥ ४ ॥ केशी कुमार हो नवी बोल्या वली, कहे वली श्री For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) जी रे वार ॥ सोजागी ते सुणी बोल्या हो केशी सा धुजी, सनिलो चित्र विचार ॥सोनागी॥ पू॥५॥ जिम, कोश् महोटोहो वनखंम सुंदरू, एह सुणो दृष्टां त ॥ विवेकी काली बवि होकर घणुं महमहे,जोवा सरखो रे खंत ॥ सोजागी ॥पू०॥६॥ते निश्चयशुं हो वनखंम चित्रजी, उपद चौपद मृग जोय॥सोना गी॥ पशुं पंखीने दो श्रादरवा जिस्यो, होय किंवा नविहोय ॥ सोजागी॥पू॥ ७॥ चित्रवदे हो हंता खामीजी, वली बोल्या अणगार ॥सोनागी॥ तिण व नखंमें दो परिवसे पापीया,जीव गातकना कार ॥ सो जागी ॥ पू० ॥ ॥ जिस श्रादेडी हो पारधीया व ली, उपद चौपद मृगजीव ॥सोजागी ॥ पशुं पंखीनो हो मंस श्रोणित घणो, आहार करे सदीव सोजागी ॥ पू॥ए॥ तिण वनखंमें हो किम चित्र सारथी, उपद चौपद अनेक ॥ सोजागी॥किणपरें आवे हो शंम चित्र जाणजो, चित्रकदे नवि एक रे ॥ वसीया ॥पू॥ १० ॥ कुण कारण हो इहां चित्र तें कह्यो, खामीजी उपसर्ग थायरे॥ वसिया ॥णी परें जाणो हो नगरी तुम तणी, जिहां परदेशी रे राय ॥ सोजा गी॥०॥ ११॥अधरम थरथी हो परिवसे तिहां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) कणे, अधरम देखण हार ॥ विवेकी ॥ देशतणो हो पण जे नविकरे, रूडी परेंव्यवहार॥ विवेकी॥पू॥१॥ तिण नगरी में हो केम समोसरू, णी परें चित्र तुं जाण ॥ विवेकी ॥ ज्ञानचंद दाखे हो ज्ञानी गुरु घj, जाणो सूत्रनी वाण ॥ विवेकी ॥ पू० ॥ १३ ॥ ॥दोहा ॥ ॥चित्र सारथी श्म उच्चरे, सुणजो सदगुरु श्राम॥ तुम परदेशी रायशु, प्रजुजी केहो काम ॥ १॥ से तंबिका नगरी घणा, ईसरलोक अनेक ॥ कर जोडी प्रजु वांदशे, मन धरि हरख विवेक ॥२॥ सेवा कर शे शासती, देशे वली सतकार ॥ विपुल अशन पा ने करी, खादिम खादिम सार॥३॥पडिलाजण क रशे सदा, सूजता शुधबहार॥पडिहारुसय्या वली, पीढ फलक संथार ॥ ४ ॥ एहनी खामी निमंत्रणा, करशे हरख अपार ॥ श्म सुणि केशी मुनि कहे, जाणस्यां चित्र विचार ॥ ५॥ सर्वगाथा ॥ ११० ॥ ॥ढाल सातमी॥राग केदारोरिंगीलेथातमा एदेशी॥ ॥ तेवार पड़ी चित्र सारथी, वांदी केशी खामी, रंगीले सारथी ॥ केशी सद्गुरु पासथी, श्राव्या श्रा पणी गम ॥ रंगी० ॥१॥ राजमारग श्रावासश्री, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) चलिया सारथी चित्र ॥ रंगी० ॥ सेवकवृंदशुं परिव स्या, नेट बेइ विचित्र रंगी० ॥ २ ॥ रथ बेग रंगें क री, लांघ्यो देश कुणाल || रंगी० ॥ केश्यदेशें श्रावी या, मनमां दरख विशाल || रंगी० ॥ ३ ॥ जिहां नग रीसेतं बिका, जिहां मृगवन उद्यान || रंगी० ॥ ति हां श्राव्या चित्र सारथी, करवा काम प्रधान ॥ रंगी॥ ॥ ४ ॥ वनपालक तेडी करी, बोले बुद्धि निधान ॥ ॥ रंगी० ॥ देवाणु प्रिय जे कहुं, ते सुणजो देइ कान ॥ रंगी० ॥ ५ ॥ पास संतानी सकुगुरु, केशी नाम कु मार ॥ रंगी० ॥ गामथी गामें विहरता, चालता सांधु विहार ॥ रंगी० ॥ ६ ॥ श्रवशे सद्गुरु इहां सही, ति वेला ततकाल ॥ रंगी० ॥ वंदना करजो जावशुं, सहु मलीनें समकाल ॥ रंगी० ॥ ७ ॥ करजो एह निमंत्रणा, पीढ फलग संधार ॥ रंगी० ॥ सय्या देजो सूजती, पडिहारु संचार ॥ रंगी० ॥ ८ ॥ एह आदे शबे म्हणो, आणी देजो जत्ति ॥ रंगी० ॥ वन पालक ते सांजली, चित्र वचन बहु जति ॥ रंगी॥ ॥ ए ॥ दरखित हुआ श्रतिघणुं, संतोषाएं चित्त ॥ ॥ रंगी० ॥ कर जोडीनें इंम कहे, स्वामी श्राप तदत्ति ॥ रंगी० ॥ १० ॥ तेवार पछी चित्र सारथी, श्राव्या For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) नयर मकार ॥रंगी॥ जिहां परदेशी रायनो, प्रा साद उवार ॥ रंगी॥११॥ बाहिर राज्य सजा जि हां, तिहां राख्यो रथ रंग ॥ रंगी० ॥ रथथी ऊतरी सारथी, नेटणुं लेश चंग ॥ रंगी० ॥ १२ ॥ परदेशी राजा कन्हें,श्रावीबे कर जोडी ॥ रंगी० ॥ जयजय शब्द वधावीने, पूरण वंडित कोडी ॥रंगी० ॥१३॥ नेटणुं नक्ति करी दीये, हवे परदेशी राय॥रंगी॥ सतकारीचित्र सारथी, दीधी वेग विदाय॥रंगी॥१४॥ ॥दोहा॥ ॥शीख लश् राजा तणी, हवे ते चित्र प्रधान ॥ निजप्रासादें श्रावीया, पामी बहु सनमान ॥१॥निज प्रासादें श्रतिघणा, विलसे वंबित नोग ॥ तानमान तरुणी करे, नव नव सुख संयोग ॥२॥वाजे मृदंग म धुर ध्वनि, नाटक बम बत्रीश ॥ श्म विचरे सुख वि बसता, पूरे आस जगीश ॥३॥गाथा ॥ १२॥ ॥ढाल बाठमी फागनी अथवा सुरती महीनानी देशी ॥अन्य दिवस मुनि केशी, तिहाथी करे विहार ॥ पडिहारू देई पीढ, फलग सिङा संथार ॥१॥पांच सें साधुशुपरिवस्या, आव्या केश्यक देश ॥नगरी ना में सेतंबिका, मृगवन परदेश ॥शालेश्आ देश उद्यान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मां, ऊतस्या साधुनें योग ॥ तप संयम करी जावता, विदरता सुख संयोग ॥३॥नगरीमा संघाडग, त्रिक चोके थर वात ॥ हरख्या लोक वांदण चड्या, पूर व विधि विख्यात ॥ ४॥ हवे वनपालक वात, सुणी हरख्या घणु चित्त ॥ जिहां केशी गुरु तिहां सहु था वे वांदे बहुजति ॥ ५॥ साधुने योग्य अवग्रह, दी धो हरख अपार ॥पडिहारुदेश्पीढ, फलग सियासं थार॥६॥ तेहनी करि निमंत्रणा, पू नामनें गोय ॥ हृदय धरी वली जश, एकग मल्या सहु कोय ॥७॥ मांहो मांदे कहे श्म, देवाणुप्रिक जोय ॥ चित्र सार थी जसु दरिसणां, वां सद्गुरु सोय ॥ ॥ जेहनां नामने गोत्र,सुणीनेहरखित थाय ॥ ते केशी गुरु श्रा विया, इहां किण हरख नमाय ॥ ए॥ तिण कारण हबे जईये,सारथी चित्रने पास ॥प्रीति वचन इंमक हीने, वीनवीयें उदास ॥१०॥ एह वचन सहु मानी, चाख्या नयर मकार ॥ चित्र सारथी पसवाडे, श्राव्या हरख अपार ॥११॥ करजोडीने जयजय, शब्द वधा वे नित्त ॥ जसु दरिशण नित्य वांडतो, देवाणुप्रिय चित्त ॥१२॥नामने गोत्र सुणीने, पाम्यो हरख अपा र॥ तेसद्गुरु श्हां श्रावीया, केशीनाम कुमार ॥१३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ॥ दोहा॥ ॥वात सुणीने एहवी, हरख्या चित्र अपार ॥श्रा शनथी जव्या तुरत, पाद पीठ ऊतार ॥१॥पगथी मूकी पानही,करी वली उत्तरासंग ॥ मांझे जोडीहा थ बे, सनमुख केशी संग॥२॥सात श्राउ पग सामु हो, जानें कर जोडि॥ शुभ वचन श्म उच्चरे, मानने मत्सर बोडि ॥३॥ नमोर्तुणं अरिहंतने,हथा जेह अनंत ॥ केशी गुरु प्रणमी वली, गुरु महारा नगवंत ॥४॥ धरमाचारज धर्मगुरु, धर्मना देसणहार ॥ तिहारयां हांथी हुं करूं, वंदना विविध प्रकार ॥५॥ म वांदी गुरु नावशु, सतकारी वनपाल ॥जीवे तिहां लगें जोगवे, दान दीये समकाल॥६॥ विपुल वस्त्र गं धे करी, मल वली अलंकार ॥ सतकारीने शीख धे, मनमां हरख अपार ॥७॥सर्वगाथा ॥ १४७ ॥ ॥ ढाल नवमी ॥ जाती जकडीनी, श्री नव कार मन ध्याश्ये॥ ए देशी ॥ राग गोडी ॥ ॥ ढाल ॥कोडंबिक नर तेडीने, म चे चित्त श्रादे शो रे॥देवाणुप्रिय सज हुवो, न करो ढील लवलेशो रे॥चाललवलेसनकरोढील ईहां किण, हवो सस उतावला॥अतिचपल चंचल तरुण तेजी, जोतरोरथ प२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) अतिजला॥ए थाण मानी खामीनी हवे, तेह थानक श्रावीने, चउ घंट रथ करे सजा सुंदर, कोडंबिक नर तेडीने ॥१॥ ढाल ॥ माथे नत्र शोहामणु, सुंदर ध्वज लदकंतो रे॥तरुणा तेजी जोतस्या, रथकरीसऊतुरं तो रे ॥ चाल ॥ तुरंत रथ करी सजायावी, आण श्रापी ईण परें ॥ एवातसुणी करी चित्र हरख्या,क ख्या स्नान तव बहुपरें ॥ शोनंत सुंदर वस्त्र पदेख्यां, चित्र हरख ने अतिघणो,जवावी बेग वहेल ऊप र,माथे उत्रशोदामणो ॥२॥ ढाल ॥ सेवकवृंदशंप रिवस्या, श्राव्या सदगुरु पासो रे ॥धर्म कथा वली सांजली,हरख्या चित्त उदासो रे॥ चाल ॥ उल्लास पाम्या चित्तमाहें, वांदी पोहोती परखदा॥कर जोडी केशी सामिने कहे,सारथी चित्र तेश्म मुदा ॥ नग वंत श्रम तणो खामी जाणो, पाप करी पूरण नस्या ॥ कर राति नकरे देश केर।, सेवकवृंदशु पारवस्या॥३॥ ढाल ॥ देवाणु प्रिय रायनें, जो कहो धरम विचारो रे॥ तो गुण होवे अति घणो, परदेशी सुखकारोरे ॥चाल॥सुखकार जाणो उपद, चौपद पसुवली पंखी जणी ॥ वलीसमण वाहण जिस्कु जनपद होसे शाता अतिघणी ॥ एवीनतिले खामी माहरी, धरजो चित्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) लाईनें, गुण होवे श्रतिघणो धर्म जो कहो, देवाणुप्रि य रायनें ॥ ४ ॥ ढाल ॥ केशी श्रमण कडे वली, चि त्र सुणो अधिकारो रे ॥ धरम लदे नहीं जीवडा, चार यानक सुविचारो रे ॥ चाल ॥ सुविचार थानक चार जाणो, धर्म न लड़े जिनतणो ॥ श्रारामनें उद्यान श्राव्या, श्रमण माहाण साधुनो ॥ नवि विनय सा चवे वंदना करे, यावी साहमो मनरली ॥ कल्लाण मंगल देव चैत्यज, केशी श्रमण कहे वली ॥ ५ ॥ ढाल ॥ देत रथ पूबे नहीं, प्रसन्न करे नहीं कोयो रे | इस कारण चित्र जीवडा, धरम लदे नहीं जोयो रे ॥ चाल ॥ इंम जोय न लहे धरम सुणवा, प्रथ मथानक ए को ॥ उपासरे पण एम जाणो, बीय थानक ए लह्यो | हवे तीय थानक साधु श्राव्या, गोचरी करवा सही ॥ तिहांसन पान तो शुद्ध देश, देत रथ पूढे नहीं ॥ ६ ॥ ढाल ॥ चोथो थानक जा पीयें, जिहां मले श्रमणनें साधो रे ॥ हाथनें वस्त्रशुं पीनें, ढांकी रहे साबाधो रे ॥ चाल ॥ श्रबाध पामें साधु देखी, हेतु जुगति पूबे नही, इस चार थानक धर्म सुवा, जीव न लड़े म सही ॥ हवे चार थानक धरम पामें, चित्र एम वखाणी यें ॥ श्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) केवली परिणीत सुणवा, चार थानक जाणीयें॥७॥ ढाल ॥ वन पारामें आविया, श्रमण मादण सुख कारो रे॥साहमोजश्वंदना करे, जावडुंये सतकारो रे॥ चाल ॥ सतकार देई अरथ पूजे, तो लहे जैन धरम जलो॥ श्म श्रावीया उपासरे वली, साधुवांदे गुणनीलो ॥ कहाण मंगल देवचैत्यज, शुधनावन नाविया, इंम धर्म पामे साधु वांदे, वली उपासरे श्रावीया ॥ ७ ॥ त्रीजे थानक गोचरी, आवे साधु जिवारो रे ॥ पडिलाजण करे नावशें, सूजंता शुद्ध आहारो रे ॥ चाल ॥ थाहार सूजता शुरु आपे, तो लहे धर्म केवली ॥ थानकें चोथे साधु देखी, श्राप ढांके नवि वली ॥ईम चार थानक धर्मपामे, चित्र सांजलो चित्त धरी ॥ श्रीकेवली परिणीत प्र वचन, त्रीजे थानक गोचरी ॥ ए॥ ढाल ॥ तुम प रदेशी नवि करे, चारेमा एक प्रकारो रे ॥ धर्म क हीजें केणी परे, श्रुतने सुणे कवण प्रकारो रे॥चाल॥ प्रकार किणी परें श्रवण सांदी, सूत्र अरथ इसी परें ॥ ए धर्म पामतां दोहिलो जग, जाण चित्र तुं णी परें । एक वचन श्रारज श्रीदया मय, जो सु णी जीव चित्त धरे ॥ तो लदे धर्म जिणंद केरो, तुम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) परदेशी नवि करे ॥ १० ॥ ढाल ॥ इंम सुणी कहे चित्र सारथी, केशी श्रमण कुमारो रे ॥ देश कंबो जथी श्रावीया, नेटणे चार तुखारो रे ॥ तुखारु तरु णा चार श्राव्या, तेह परपंचें करी॥ परदेशी रायनें खेश्यावं, सामी पासे हित धरी॥ तिण कारणे प्रजु रायनें तुमे, धर्म कहेजो श्रापथी॥ अगिलाणशुं हवे शंक टाली, इंम सुणी कहे चित्र सारथी ॥११॥ ॥दोहा॥ ॥ वलतुं केशी मुनि जणे, जाणीशुं तिण वार ॥ वंदन करी चित्र सारथी, पहुता नगर मकार ॥१॥ तेह पड़ी चित्र सारथी, हु जव परजात ॥दिन कर ऊग्यो दीपतो, तेजें करी विख्यात ॥२॥१६०॥ ॥ढाल दशमी॥राग काफी, राजा जो मले॥ए देशी। ___॥ हवे इंम चिंतवे चित्र प्रधान, सहु प्रजा सुख हुवे असमान ॥ राजा जो मले॥ केशी सदगुरुने ए कवार, तो राजा लदे धर्मविचार ॥ राजा॥१॥मैरे मनका मान्या तो फले॥ ए आंकणी॥ हवे परदेशी राजा पास, श्रावी वीनवे चित्र उदास ॥राजा० ॥ देश कंबोज तणा प्रजु चार, नेटणे थाव्या तरुण तुखार ॥रा ॥ मे॥२॥श्रावो खामी वनह मकार, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) परखी जे कदेवा तुखार ॥रा॥हवे बोल्या परदेशी राय, ते घोडा रथ जोतरो जाय॥रा॥मे ॥३॥श्राण करी राजा परमाण, रथ जोतरीया हय परधान रा॥ रथबेग राजा मनरंग, पहुतावली उद्यानप्रसंग॥रा ॥ मे ॥४॥ रथ योजन फेख्यो अनेक, केलवी बु फि वला सुविवेक ॥रा॥ तावडे लागी तरषा राय, रथवेगें वली बहु फुःख थाय ॥रा मे ॥५॥राय कलामणा ऊपनी काय, ते दणं एक हवे न सुहाय ॥रा॥ चित्र प्रधान प्रत्ये कहे एह, खेद पामे जे मुज घणो देह ॥ रा॥ मे ॥६॥ रथ पागे फेरो हवे वेग, जिम सहु दूर टले उदवेग ॥ रा०॥ रथ पालो फेस्यो परधान,श्राव्या मृगवन मांहें उद्यान ॥रा० ॥ मे ॥७॥ए जाणो खामी मृगवन्न, घोडा पण हुश्रा ने खिन्न ॥रा॥ खेद करीजें दूरे एह, रा जायें पण वात मानी तेह ॥रा॥ मे ॥॥ चित्र प्रधान महोटो बुद्धिवंत, मृगवन जिहां केशी नग वंत ॥ रा॥ तेहनें निकटें राख्यो धराय, परदेशीनें कहे सुणो राय ॥ रा॥ मे ॥ ए॥ घोडाने दीजें विश्राम, सुणी राजा ॥उतरिया ताम ॥रा ॥ चित्र प्रधान लेई हवे साथ, खेद उतारे पृथिवी नाथ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) रा०॥ मे ॥ १० ॥ टालतां घोडानी खेद, वात थ ई विचमा एक नेद ॥रा॥ तेसांजलजो हवे जव्य जीव, करजो सदगुरु सेव सदीव ॥रा॥मे॥११॥ सदगुरु सेवाथी सुख थाय, सदगुरु सेव्यां सहु फुःख जाय ॥रा॥ परदेशी तास्यो गुरु केम, सदगुरु संगें तरी तेम ॥ रा॥ मे०॥ १२ ॥ इंम जाणी करजो गुरु सुफ, हिंसानी जेम नावे बुद्ध ॥ रा० ॥ दया देखाडी टाले उरक, सहु संपद आवे शिवसुरक ॥ रा॥ मे॥१३॥ हवे देखे राजा जगवंत, केशी श्रम ण महा गुणवंत ॥रा ॥ बेग बहली परषद मांहिं धर्मोपदेश कहेता उन्हांहिं ॥रा ॥ मे ॥ १४ ॥ जमा जमू तणी करे सेव, मुंमाने वली मुंमज देव ॥रा०॥ मूरख बेग मुरख पास, अज्ञानी अज्ञानी दास ॥राण ॥ मे ॥ १५॥ईम संकल्प करे मन रा य, कुण ए पुरुषनें कुण कहेवाय ॥ रा० ॥ ज मूढ ने मुंग अज्ञान, सिरिहरि दीसे अति परधान ॥राण ॥ मे ॥ १६ ॥ दीपती दीसे सुंदर काय, शुं श्राहा र करे शुं खाय ॥ रा० ॥ शुं पीवे शुं खरचे एह, वली सेवकने ये तेह ॥रा० ॥ मे ॥ १७॥ जिण कारण ए पुरुष प्रधान, लोकांमें बेगे असमान ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) रा० ॥ मोटे शब्द करी कहे बोल, मलिया माणस टोला टोल ॥ रा० ॥ मे० ॥ १८ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ एह विचारी चित्रशुं कहे वली राजा तेम ॥ जिम मनमांदे चिंतव्यो, सूत्र वचन बे एम ॥ १ ॥ पोतानी पण भूमिका, विचरी न शकां चित्त ॥ तेह पढी चित्र इंम कहे, राजाने बहु जत्ति ॥ २ ॥ १८० ॥ ॥ ढाल अगी आरमी ॥ राग मारु, कर्म परीक्षा करण कुमर चल्यो रे ॥ ए देशी ॥ ॥ पास संतानी सदगुरु ए अबे रे, केशी नाम कु मार ॥ जाती संपन्ना चलनाणी वली रे, अवधि ना णी सुखकार ॥ पास० ॥ १ ॥ जीवनें काया जांखे जूजूया रे, तेह सुणी कहे राय ॥ श्रवधि पहुं कड़े चित्र तुं पहनें रे, जू जीवने काय ॥ पास० ॥ ॥ २ ॥ दंता स्वामी अवधि पशुं कहुं रे, जूश्रा जी वने काय ॥ एहनो जापण दारो ए अबे रे, इंम जा खुं हुं राय ॥ पास० ॥ ३ ॥ न्नें करी आजीविका ए करे रे, रायजी इस परें जाए ॥ टीकाकारें अर्थ को इस्यो रे, केवली वचन प्रमाण || पा० ॥ ४ ॥ ते सु परदेशी कड़े चित्रनें रे, किम जश्यें इस पा For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) स॥ हंता खामी जावा योग्य रे, करीयें गोष्टि उ झास ॥ पा० ॥५॥ तेवारें परदेशी रायजी रे, बेश चित्रने साथ ॥ केशी सशुरु पासें श्रावीया रे, मुगति ने दीधो हाथ ॥ पा॥६॥ केशी श्रमणने परदेशी कहे रे, तुमेशुं श्रवधिना जाण ॥ जीवनें काया नां खो जूजूश्रा रे, हवे बोल्या गुरु वाण ॥ पा० ॥७॥ राजा जिम को जवहरी वाणीयो रे, अंक रतन व्या पार ॥ शंखने दंतनुं वाणिज्य करे वली रे, दाणनो जांजण हार ॥ पा॥०॥ मारग रूडी परें पूजे नही रे, इंणीपरेंजाणो राय ॥ तुमें पण विनयनें वांडगे नां जवा रे, रूडां नवि पूाय ॥ पा० ॥ ए॥ मुजने दे खी तुमनें उपनो रे, चित्तमां एह विचार ॥ जा जा तणी करे सेवना रे, जाव शब्द अधिकार ॥ पा॥ ॥ १०॥ एह श्ररथ समरथ डे रायजी रे, हंता क हे वली राय ॥ तेवारें परदेशी इंम कहे रे, केशीनें मन लाय ॥ पा ॥ ११ ॥ ज्ञाननें दरशन तुम कुण बेश्स्यो रे, जिणे जाणी मन वात॥केशी श्रमण कहे वलतुं श्श्युं रे, श्रमणनुं ज्ञान विख्यात॥पाण॥१५॥ पांच प्रकारे ज्ञान प्ररूपीयु रे, मति श्रुतने हिनाण ॥ मणपङावनें केवल जाणीयें रे, जांख्या नेद वखा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) ण ॥ पा ॥ १३ ॥ तिहां मुज ज्ञान ने चार सोहा मणां रे, नही मुज केवल नाण ॥ तिणे जगवंतना ज्ञाने जाणीयु रे, तुम मननो परिणाम॥पा॥१४॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे परदेशी इंम कहे, केशी श्रमण कुमार ॥ हुँ बेसुं श्ण नूमिका, बोल्या साधु विचार ॥१॥प रदेशी तुम नूमिका, वली ताहरो उद्यान ॥ जिम तुमे जाणो तिम करो, साधुनुं एह ज्ञान ॥२॥ राय परदेशी चित्रशु, बेग केशी पास ॥ नवि नेडा नवी वे गला, इंम कहे वचन विलास ॥३॥गाथा ॥ १७॥ ॥ ढाल बारमी॥ राग रामग्री ॥ वैराडी सुण बांधव मुज वातडी ॥ ए देशी॥ ॥ सुण नगवन मुज वातडी, तुम ए उपदेश ॥ श्रमण निर्यथनें साधुनु, ईम ज्ञान निवेष॥सु॥१॥ जीवनें काया जूजूश्रा, नही जीव ते काय ॥ वलतुं केशी मुनि जणे, हंता महाराय ॥ सु०॥२॥श्रम उपदेश के एडवो, जूश्रा कायाने जीव जीव काया एकज नही, इंम जाणो सदीव ॥सु॥३॥ वलतो परदेशी नणे, तुम ए उपदेश ॥ जीव अनेरो कायथी, नही एक निवेश ॥ सु० ॥४॥ तो मुज बाप तणो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) पिता, इण नगरी मांह ॥ हुँतो पापी अतिघणा, स हु जीवनें दाद ॥ सु० ॥५॥ ते तुम कहेणी अति घणा, करी पाप कगेर ॥ नरकमां नारकी उपन्यो, पा म्या कुःख घोर ॥ सु० ॥६॥ तेहनो पोतरो हुँ अर्बु अति वडूज कंत ॥ रतन करंमक जिम सही, वालो एकंत ॥ सु॥७॥ ते जो मुज श्रावी कहे, सुण पोतरा वात ॥ हुँ फुःखीयो थयो पापथी, हवे मक रे घात ॥ सु० ॥ ॥तुं पण थाईश मुज परें, उःखी यो दोजाग ॥ तिण कारण हवे मत करे, ए पुर्गति माग ॥ सु०॥ ए॥ तो हुँ साचो सद्दडं, आणुप्रतीत ॥ जीवनें काया निन्न बे, नहीं एकज रीतासु॥१॥ जो मुज श्रावी नवि कहे, दादो एकंत ॥ तो साची बु कि मादरी, जाणो जगवंत ॥ सु॥११॥ जीवने का या एक डे, नही जूदा तेह ॥ एणे कारण परनव नहीं, माहरो मत एह ॥सु॥ १२॥ पहेलो प्रश्न पूरण थ यो ईहां राखी ढाल ॥ कहे ज्ञानचंद हबे सांजलो, गुरु वचन रसाल ॥ सु० ॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥१०॥ ॥दोहा सोरठी ॥ ॥ केशी श्रमण कुमार, हवे परदेशी रायनें ॥ ईम कहे उत्तर सार, सांजलो सहु मन लायनें ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) ॥ ढाल तेरमी ॥ राग सारंग, वाणी तो वाजे वीणा, मूरति मोहन गारी हो ॥ ए देशी ॥ ॥ सूरिकंता नारी, ताहरे घरें देवो सारी हो ॥ रा जासु वाणी ॥ स्नान करी शणगारा, पढ़ेश्या स घला अलंकारा हो ॥ रा० ॥ १ ॥ कि पुरुषशुं जो गवे जोगा, तुं देखी हवा जोगा हो ॥ रा० ॥ दंग किश्यो द्ये तास, राजा कड़े तस करूं नाश हो ॥ रा० ॥२॥ हाथने पाय छेदावुं, सूली लइ वेग घलावुं दो ॥ जगवंत सुप वाणी ॥ एकणी ॥ एकज घावें मारूं, जीवथी हुं दूर निवारुं दो ॥ ज० ॥ ३ ॥ गुरु कहे पुरुष ते बोले, एक मुहूरत राखो उले हो । रा० ॥ मुज मित्र नें ज्ञाती जाई, तेहने कही श्रावुं जाई हो ॥ रा० ॥४॥ देवाप्रिय पाप, कीधां ते जोगवो आप हो ॥ रा० ॥ तुमे कोइ म करशो पाप, मुज परें लेशो संताप हो ॥ रा० ॥ ५ ॥ ते पुरुषनुं वचन पएसी, तुं सांजले इम कहे केशी हो ॥ ० ॥ ए अर्थ नयी समरब, गुरु जांखे कुण परम दो ॥ रा० ॥ ६ ॥ जगवंन ते प राधी, तेणे रूडी वात न साधी हो ॥ रा० ॥ म तुम बापनो बाप इस नगरी करी बहु पाप हो ॥ रा० ॥ ॥ ७ ॥ श्रम की पोतो नरके दुःख यागल किम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ते फरकें हो॥रा॥ तसु पोतरो ने तुं कंत, ते जा णे जाउं एकंत हो ॥ रा॥॥ पण श्रावी न शके एह, चार थानक नां तेह हो॥रा ॥ नवो उपनो नारकी देखे, तिहां वेदना अतिहि विशेषे हो ॥राण ॥ए॥ मनुष्य लोकें हवे जाजं, इंम जाणे तिहां सुख पाउं हो ॥ रा०॥ पण श्रावी न शके तेह, प्रथम था नक बे एद हो ॥ राम् ॥ १० ॥ हवे बीजुं थानक कहीयें, तिहां परमाधामी लहीयें होरा ते दुःख दीये तिहां किणे जाई, तिण श्रागल न शके आई हो ॥रा०॥ ११॥ हवेत्रीजुं थानक एह, जेणे कर्म करयां ले जेह हो ॥रा॥ ते क्षीण हुश्रा विण जा णे, पण श्रावी न शके प्राणे हो॥ रा॥ १२॥ हवे चोथु कारण नां, जिणे बांध्यु नरकनुथाउ हो। रा॥ ते दीण इथा विण जाणे, पण श्रावी न शके प्राणे हो॥रा ॥ १३ ॥ए चार कारण श्ण लोके, ते श्रावी न शके शोके हो॥ रा० ॥ तिणे का रण मान तुं राया, जूश्रा ने जीवने काया हो ॥राण ॥१४॥नहीं जीवनें काया एक, ए चित्तमें धापति वेक हो ॥रा॥ एक प्रश्न उत्तर थयो पूरो, परदेशीरा य सनूरो हो॥रा॥१५॥श्हा राखी ढाख ए जाणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) जिन शासन नीति वखाणी हो॥राण ॥ कहे ज्ञानचंद श्म वाणी, ए वातमें सूत्रथी जाणीहो॥रा॥ १६ ॥ ॥ दोहा सोरठी ॥ ॥ हवे परदेशी राय, केशी श्रमण प्रतें कहे ॥ ए तो उपमा थाय, प्रज्ञा बुद्धि विशेषथी ॥१॥ ॥ ढाल चौदमी ॥ लाखा फुलाणीनां गीतनी देशीमां ॥ राग खंनाती॥ ॥पण एकारण शुफ, नावे हीये माहरे ॥ जगवन कडं हवेतुऊ, दादी हुतीमाहरे॥१॥ण हिज नगरी मांहि, धरमें करी विचरेसदा॥ जोवे धरमनी वात, धर्मे वृत्ति करे मुदा ॥ २॥ श्राविका शुभ श्राचार, जाण्या जीव अजीवनें ॥ जाव शब्द अधिकार,पोसा साचवेशुज मनें॥३॥ईम निजातम नित्य, श्रावक गुण करी नावती ॥ विचरे सूजता अन्न, पाणी हो साधुनें आपती॥ ४ ॥ ते तुम कहेणी सामी, पुण्य करीने अति घणु ॥ काल करी काल मास, पाम्यु तेणे देवता पणु ॥५॥ हुं तसु पोतरो कंत, रतन क रंमक जिम सही ॥ अतिवालोएकंत, ते जो श्रावी मुज कहे ॥६॥ हुं करी धर्म अनेक, श्रावक व्रत पाली जलापूरव पुण्यनें योग, देवतणी लाधी कला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) ॥७॥ तुं पण करजे पुत्र, जिनवर धर्म शोहामणो, पुण्य तणे परिमाण, पामीश सुख तुं अति घणो॥ इंम कहे ते मुज श्रावी, तो हुँ रोचवं सद्दडं जूदा जीवनें काय, तुम वचने साचो लहुँ ॥ ए॥ जो ते नवि कहे श्राय, तो साची मति माहरी ॥ जीवनें काया एक, एह प्रतिज्ञा मुज खरी॥ १० ॥ बीजो प्रश्न विचार,पूरण दृश्हां किणे ॥ हवे सुणो उत्तर सार,ज्ञानचंद कहे जिमगुरु नणे ॥११॥गाथा॥२३॥ ॥ उदो शोरठी ॥ ॥ केशी श्रमण कुमार, हवे परदेशी रायनें ॥ शम कहे उत्तर सार, सांजलो सहु मन लायनें ॥१॥ ॥ ढाल पन्नरमी॥ राग महार उलंगडीनी देशी॥ ॥रायजी रायजी करीने स्नान सोहामणु रे, धू प कडुल निंगार ॥ लईने लईने तुं पेसे थानक देव ने रे, उब पडग विस्तार ॥ १॥ रायजी रायजी वि चारो रूडं चित्तमा रे, पुरुष श्रावी तिणवार ॥ कोई क कोईक विष्टा घरने बारणे रे, इंम कहे उनो बार ॥ राय० ॥॥ श्रावीने श्रावीने महूर्त एक खामी इहां रे, वीशामो यो पेस ॥ सूईने सूईने विशेषे बली ऊना रहो रे, मुहूर्त रहो एक बेस ॥ राय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) ॥३॥ वचन वचन तुं माने तेहy रे, राय कहे न सुणुं कान ॥ साधुजी साधुजी तो नांषे कुणकारण शहां रे, अशुचि तणो अहिगण ॥ राय० ॥४॥ जगवन् जगवन् हुँ तिहां किम उनो रहुं रे, ईणी परें जाणो राय ॥ ताहरी ताहरी दादी धरम करी घणो रे, बहुलो पुण्य उपाय ॥ राय ॥ ५॥ अम तणी अमतणी कहेणी ते थई देवता रे, पोतरो तुं ३ तास ॥माणस माणस लोकमां वां थाववा रे, पण श्रावी न शके पास ॥ राय ॥६॥ थानक था नक चिहुं ईण वांडे देवता रे, श्राववा माणस लोग ॥ उपनो उपनो नवेरो ते देवलोकमां रे, श्राववा न लहे जोग ॥ राय० ॥ ७॥ देवता देवता संबंधि का मने जोगमा रे, मूर्षित हुवे अति गृह ॥ मनुष्य मनुष्य संबंधि कामने जोगमां रे, नाव देवनी बुद्धि ॥राय० ॥ ७॥ प्रथम प्रथम थानक ए जपनो दे वतारे, श्राववा वांजे चित्त ॥ वेगशुं वेगयुं ते श्रावी न शके यहांकणे रे, बीजे प्रेम विखित्त राय ॥७॥ देवता देवता संबंधि प्रेम नवो थयो रे, बूटो मूल गो नेह ॥ थानक थानक विचारो त्रीजुं ईणी परें रे, श्रावी न शके तेह ॥ राय० ॥ १० ॥ मुहूत्ते मु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) हर्त रहीने जावो वेगशुं रे, प्रेम विचारो देव ॥ तिण समे तिण समे अल्पश्राउ मानवी रे, काल धरम लहे हेव ॥रायः ॥ ११॥ थानक थानक वि चारो चोथु हवे श्श्युं रे, मनुष्य संबंधि गंध ॥ जो यण जोयण ते चारने पांचशे विस्तरे रे, अशुन घणो पुरगंध ॥ राय ॥ १२॥ देवता देवता श्रावी न शके तिणे करी रे, जाणो थानक चार ॥ सदहो सदहो जीवनें काया जूजूश्रां रे, एहवो हेतु विचार ॥ राय ॥ १३॥प्रश्नप्रश्न उत्तर ए बीजो इंम कह्यो रे, रायपसेणी नवंग ॥ सदगुरु सदगुरु मलिया केशी सारिखा रे, परदेशी मन रंग ॥ १४॥ ॥ ढाल शोलमी ॥राग सिंधूडो॥ कागल लखी॥ दीधो रे, विप्रचाल्यो सीधोरे॥अथवा विन तीअवधारो रे, पुरमांहे पधारो रे ॥ए देशी॥ ॥ हवे कहे परदेशी रे. सांजलो गुरु केशी रे, ए वात निर्देशी उपमाथी कही रे॥कवि बुद्धि उपावे रे, मुज हृदय न श्रावे रे, इण हेतुने नावें श्म जाणो सही रे॥१॥ एक दिन सना मांहे रे, बेग उछाहें रे, एक चोरने सादे सेवकें आणीयो रे ॥ ते जीवतो रूंजी रे, लोह केरी कुंजी रे, ते चोर आरंजी बेइ प३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) घलावीयो रे ॥२॥ लोह ढांकणे ढांकी रे, राख्यो में बांकी रे, एह वात में पांकी जीवलहं हां रे ॥ एम वात विचारी रे, प्रतीतिनाकारी रे, तिण पास संजारी राख्या नर तिहां रे ॥३॥ अन्यदा तिहां आई रे, कुंनी उखेलाईरे, किहांसुद्ध न पाई खामी जीवनी रे ॥ नर दीगे मूठ रे, किहां बिउ न हुई रे, तो जीवने जुलं किम जाणु मुनी रे ॥४॥ जो जीव समायो रे, वली बाहिर आयो रे, को बिउ न पायो कुंजीमां कहुंरे॥ नीकल्यो किण घारें रे, कोश विवर न सारे रे, तो किण प्रकारेंजीव जू लहुं रे ॥५॥ जो कुंजीमां कोई रे, बिअरेखा होई रे, तो तेहने जोई जीव जू कहुं रे॥तिहां विवर जो देखें रे,तो जीवने लेखु रे,श्म चित्त विशेषे जीवने सद्दडं रे ॥६॥ जूश्रा जीवने काया रे, नहीं एकज माया रे, पण बिन पाया कुंनीमां किहां रे ॥ तिण कारण साची रे,मति माहरी जाची रे, ए काया ले काची जीव न को शहां रे ॥७॥ सिंधूडे रागें रे, त्रीजो प्रश्न ए जागें रे, हवे सांजलो श्रागें, उत्तर गुरु कहे रे ॥ ज्ञानचंद इंम नांखे रे, सूधा सूत्रनी साखें रे, सूधा सदगुरुपाखें नेद किश्यो बहे रे॥॥सर्गगाथा॥३६१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५ ) ॥ दोहा सोरठी ॥ ॥ केशी श्रमण कुमार, दवे परदेशी रायनें ॥ इम कड़े उत्तर सार, सांजलो सदु मन लायनें ॥ १ ॥ ॥ ढाल सत्तरमी, राग शोरठ, जाती ऊकडीनी ॥ ॥ दो दृष्टांत रायजी सांजल एक साचो, साला एक उदारा ॥ शिखर तणी परें चिहुंदिशि शोदे, गुत्ता गुत्त दुवारा ॥ हो दष्टां० ॥ १ ॥ वली बीपीजे बाहिर मांहे, जिहां नहीं वाय संचारा ॥ घणुं नि वाई ने वली जंकी, दीसे प्रति विस्तारा ॥ दो दृष्टां त० ॥ २ ॥ जेरी मंग लेईने पेसे, कोई पुरुष प्रका रा ॥ कूडागार शाला में पैसी, ते सालाना बारा ॥ दो दृष्टां० ॥ ३ ॥ सघली दिशि सघले परकारें, बिज रहित करी ढांके ॥ श्रांतरो विच राखे न किहां, विवर न एके यां ॥ हो दृष्टां० ॥ ४ ॥ लेइ कमाड aणु यति सबला, तिथ करि ढांके बारा ॥ कूडा गार शाला मध्य जागें, रहीने पुरुष प्रकारा ॥ हो दृष्टां० ॥ ५ ॥ मोटे मोटे शब्दें करीनें, मेरी दंशुं ताडे, ते निश्चयसुं शब्द पएसी, नीकली बाहेर पाडे ॥ दो दृष्टां ॥ ६ ॥ कहे परदेशी हंता स्वामी, तो वलतुं कहे केशी ॥ तिए शाला में होवे कोइ, बिझ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) विवर परदेशी ॥ हो दृष्टांग ॥७॥ जिण बिझें करी शब्द ते राजा, मांदेथी निकटयो बाहिर ॥ राजा कहे को बिजन हु, तो श्म जाणे जाहिर ॥ हो दृष्टांग ॥ ॥ गुरु केशी कहे जीव अरूपी, गति तेह नी न हणाय ॥ पुढवी जीत सिहा परवतर्ने, नेदी बाहिर जाय ॥ हो दृष्टांग ॥ए॥ हो परदेशी केवली जाणे, तेह सरूप तो राया ॥ तिण कारण तुं सदह साचुं, जूश्रा जीवने काया ॥ हो दृष्टांग ॥१०॥त्रीजा प्रश्ननो उत्तर नांख्यो, केशी सदगुरु साचो ॥ रायप सेणी बीय उवंगें, रूडी परें हवे वांचो ॥ हो दृष्टांत ॥ ११ ॥ २३ ॥ ॥ ढाल अढारमी॥ राग परजी॥श्र रंग महेलमें रे लालन ॥ ए देशी ॥ ॥ तेवार पड़ी राजा कहे लालन, केशी श्रमणनें एम रे ॥ मन मोहन स्वामी ॥ ए नगवन उपमा हुवे रे लालन, प्रज्ञा बुद्धिथी तेम रे ॥ मनमोहन खामी ॥१॥ तेवार पली राजा कहे रे लालन ॥ ए यांकणी ॥ पण श्ण कारण हेतुथी रे लालन, मुज ने नावे शुकि रे॥म ॥ जीव काया जूश्रा नहींरे लालन, एहवी मुज मन बुद्धि रे ॥ म ॥ ति॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) एक दिवस हुं साधुजी रे लालन, बाहिर सजा म कार रे ॥ म० ॥ बेठो परषद में सही रे लालन, म लिया लोक पार रे ॥ म० ॥ ति० ॥ ३ ॥ इ समे इणि परें विहरतो रे लालन, तिए समे नगर ना पाल रे ॥ म० चोर आयो गुनही घणुं रे ला लन, माल सहित समकाल रे ॥ म० ॥ ति० ॥ ४ ॥ ते में पुरुषनें ति समे रे लालन, माराव्यो मन खंत रे ॥ म० ॥ लोहनी कुंजीमां सही रे लालन, घलाव्यो तुरंत रे ॥ म० ॥ ति० ॥ ५ ॥ ढंकाव्यो लोह ढांकणे रे लालन, वली राख्यो ति पास रे ॥ मं० ॥ प्रतीतिकारी श्रादमी रे लालन, बेदेवा जीव उल्लास रे ॥ म० ॥ ति० ॥ ६ ॥ तिवार पढी ढुं एकदा रे लालन, जिहां बे कुंजी ठाम रे ॥ म० ॥ तिहां हुं श्राव्यो आपथी रे लालन, उघडावी ते स्वामी रे ॥ ० ॥ ति० ॥ ७ ॥ तिण लोहकुंजी मां घणारे लालन, कमी दीठा अनेक रे ॥ म० ॥ पण तिए कुंजी में तिहां रे लालन, बिद्र न दीठो बेक रे ॥ म० ॥ ति० ॥ ८ ॥ राय पडी नहीं तिहां किऐ रे लालन, जिणकरि पेठा जीव रे ॥ म० ॥ जो तिण कुंजी मां तिदां रे लालन, होवे बिद्र अतीव रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) म ॥ तिम् ॥ ए॥ जिण छारें जीव श्रावीया रे लालन, बाहिरथी मांहि तेह रे ॥ म ॥ तो हुँ स दडं रोचवू रे लालन,जूश्रा जीवनें देह रे॥माति ॥ १० ॥ जो तिण कुंजी में किहां रे लालन, विजन हुन बेक रे ॥ म ॥ तो साची बुद्धि माहरी रे ला लन, जीवने काया एकरे॥ म॥तिः॥ ११॥चोथो प्रश्न पूरो थयो रे लालन, ढाल अढारमी एम रे ॥ म० ॥ ज्ञानचंद हवे सांजलो रे लालन, केशीगुरु कहे जेम रे॥मतिः ॥१२॥ सर्वगाथा ॥ ३५ ॥ ॥ उहो शोर ॥ केशीश्रमण कुमार, हवे परदेशी रायनें ॥ईम कहे उत्तर सार, सांजलो सहु मन लायनें ॥१॥ ॥ ढाल श्रोगणीशमी राग शोरठी वैराडी,गुरु रतनाकर एहवाहां एदवा ॥ए देशी॥ ॥ केशी मुनिवर श्म जणेहां इंम जणे, तुमे मा नोहो राय सुणि दृष्टांत॥तुं एहवोहां एहवो, जुथा जीवनें काय हो ॥ केशी॥१॥ लोद धम्यो धमा वीयो, पूरव किण गम हो ॥ ते परदेशी रायजी, हंता प्रनु श्राम हो ॥ केशी ॥२॥ वलतुं केशी मुनि लणे, ते अगनिमय थाय हो ॥ लोह धम्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) सहु रायजी, हंता कहे राय हो ॥ केशी ॥३॥ तो वलतो केशी कहे, सुणो परदेशी राय हो॥ लोहमां किहां हु तिणे, को बिज्ने राय हो॥ केशी ॥४॥ जिणे छारें करी लोहमां, पैग मांहे जाय हो॥अग नि ते बाहेरथी सहु, श्म जाणे राय हो ॥केशी॥५॥ इंणिपरें परदेशी सही, जाणतुं चित्त हो ॥ जीवतो अप्रतिहत गति, न खलाय नित्त हो॥केशी॥६॥ पृथिवी नेदीने शिला, परवत पाषाण हो ॥ बाहि रथी पेसे सही, मांहे इंम जाण हो ॥केशी॥ ७॥ तिणे करी सद्दहो रायजी, परदेशी एम हो ॥ जीव काया जूया अडे, नहीं एकज तेम हो ॥केशी॥॥ चोथा प्रश्न तणो सही, दीधो उत्तर साधु हो ॥ चार प्रश्न उत्तर थया, थाये चित्त समाधि हो। केशी॥॥ ॥ ढाल वीशमी रागगुंग महार ॥ एकदिन दासी दोडती ॥ ए देशी ॥ ॥ तेवार पबी केशी प्रत्ये, कहे राय विचार रे॥ एह उपमा होय बुद्धिथी, निजमति अनुसार रे ॥१॥ राय कहे मुनि सांजलो, जूश्रा जीवने काय रे ॥ पण इण कारणथी करी, नावे मुज मन गय रे ॥ राय० ॥२॥ जिम को पुरुष महामती, नव यौव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) न वेश रे ॥ बलवंत रोग रहित सदा, नहीं शोग ल वलेश रे॥ राय० ॥३॥ ज्ञान विज्ञान शोहामणो, सह शिलपनो जाण रे ॥ नाखवा समरथ हुए सही लेश तीर कबाण रे ॥ राय ॥४॥ साधु कहे सम रथ हुए, एह वात प्रमाण रे॥ तो वलतुं राजा नणे तिम मंद विन्नाण रे॥ राय० ॥ ५॥ तेहिज पुरुष बालक थको, नगवन श्म जाण रे ॥ नाखवा सम रथ जो हुवे, तेम तीर कबाण रे ॥ राय० ॥६॥त रुण पणे बालक सदा, जो नाखही तीर रे॥ तो हुं रोचवू सहवं, जूश्रा जीव शरीर रे ॥ राय॥७॥ जो तेह पुरुष बालक थको, वली मंद विन्नाण रे ॥ तरुणनी परें समरथ नहीं, तेम नाख वा बाण रे ॥रायण ॥ ॥ तो साची बुकि माही, रूडी बुद्धि विन्नाण रे ॥जीव काया एकज सदा, नहीं जूजूश्रा जाण रे ॥ राय० ॥ ए॥ पांचमो प्रश्न पूरो थयो, एह वीशमी ढाल रे ॥ कहे ज्ञानचंद हवे सांजलो, श्री गुरु वचन रसाल रे॥राय० ॥१॥ ॥उहो शोरठी ॥ ॥ केशी श्रमण कुमार, एदवे परदेशी रायनें ॥ ईम कहे उत्तर सार, सांजलो सहु मन लायनें ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) ॥ ढाल एकवीशमी॥राग काफी॥मेरेस्वामी सखूणे हो नेमजी ॥ ए देशी ॥ ॥तेवार पडी हवे इणी परें नांखे, केशी श्रमण कुमार रे ॥ राजा परदेशी प्रति उत्तर, सांजलो प्रश न विचार रे ॥१॥ राजा पैसा वचनतो मानीयें, मनधरी शुभ विचार रे॥ए आंकणी॥ जीव काया जूया श्म जाणो॥ सुण दृष्टांत तुं एक रे॥ राजा ॥२॥ जिम को तरुण पुरुष अतिसुंदर, बलवंत नित्य निरोग रे ॥ शोग वियोग रहित अति शोहे, सकल कला संयोग रे ॥ राजा ॥ ३ ॥ तरुण पुरु ष वली धनुषज तरुणो, वली जिहां नवली जेह रे॥ नवो तीर ग्रहीने समरथ, होवे नांखवा तेह रे॥ राजा ॥४॥ कहे राजा ते समरथ होवे, नाखवा शम पंच बाण रे ॥ तो वलतो केशी मुनि नांखे, मुनिधर जिनवर वाण रे॥ राजा ॥५॥ तेहज तरुण पुरुष अति सुंदर सकल कला गुणगण रे ॥ बलवंत रोग रहित नित्य शोहे, जाणे नाण विन्नाण रे ॥ राजा ॥६॥श्राधो धनुष ग्रही घण खाधो, घण खाधी आधी जेह रे ॥ सुत्यो बाण ग्रहीने स मरथ, होवे नाखवा तेह रे ॥ राजा॥७॥ कहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) परदेशी राजा नगवन, तरुण पुरुष जो वीर रे ॥ श्राधे धनुष करीने समरथ, नहुवे नाखवा तीर रे॥ राजा ॥ ७ ॥ गुरु कहे कुण कारण श्हां राजा, स मरथ न हुए केम रे ॥ तसु उपकरण मल्या नहीं पुरा, राजा नाखे एम रे ॥ राजा ॥ए॥ गुरु कहे इंम जाणो परदेशी,तेहिज नर जव बाल रे ॥ नहीं उपकरण पूरा तसु इंडी, बल बुद्धि नहीं तिण काल रे ॥ राजा ॥ १० ॥ तेणे करी समरथ नहए राजा, नाखवा ते पंच बाण रे ॥ तरुण तणीपरें बा लकमाणस, पूरा जोग नहीं जाण रे ॥ राजा॥११॥ तिण कारण हवे सदहो साचो, रोचवो वली मन आण रे ॥ जीवनें काया जूश्रा जाणो, एकज नहीं अहीगण रे ॥ राजा ॥ १२ ॥ पांचमो प्रश्न उत्तर थयो पूरो, ढाल थक्ष एकवीश रे ॥ कहे ज्ञानचंद ए सदगुरु संगें, पूरे श्राश जगीश रे॥राजा ॥ १३॥ सर्व गाथा ॥३१ ॥ ढाल बावीशमी॥पंचमी तपविधि सांजलो॥एदेशी॥ __॥ तेवार पड़ी केशी प्रत्ये, कहे परदेशी रायो रे ॥प्रज्ञा बुधि विशेषथी, एतो उपमा थायो रे ॥१॥ परदेशी राजा नणे, पण ईण कारण हेतें रे, जीवने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) काया जूजूश्रां, नावे मुज सही चित्तें रे ॥परण॥२॥ जिमकोश तरुण पुरुष नवो, जाव शब्द अधिकारो रे॥ समरथ होवे वहेवा नणी, मोटा लोहनां नारो रे ॥ पर० ॥३॥ तरु सीसानो वली, खार तणो वली नारो रे ॥ परिवहे जिम तेहज वली, वृक्ष तणे अवतारो रे ॥पर॥॥ जरा जीरण काया थक्ष, शिथिल थया सहु अंगो रे॥ रूप विरूप थयो घणुं, गात्र तणो थयो नंगो रे ॥ पर० ॥ ५॥ दंमग्रही हाथें करी, विरल थ पड्या दंतो रे ॥ रोगें करी काया गली, जुब्बल वली एकंतो रे ॥ परम् ॥६॥ नूख्योनें तरस्यो घणुं, ते नर थयो जब ग्लानो रे, वहवा समरथ हुवे किमें, लोह नार असमानो रे ॥ पर॥७॥ तो हुँ सद्दडं रोचवू, जूश्रा जीवनें काया रे ॥ जो ते तरुण तणी परें, समरथ नहुवे मुनिरा या रे ॥ पर० ॥ ॥ जार सहु वहेवा जणी, ते जी रण अतिवृद्धो रे ॥ तो साची मति माहरी, मुज मन डे अति सूधो रे ॥ पर० ॥ ए॥ जीवकाया जूया नहीं, प्रशन हो ए जाणो रे ॥ श्म ज्ञानचंद वखाणी, सूत्र वचन मन श्राणो रे ॥ पर० ॥१०॥ सर्व गाथा ॥३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) ॥ ढाल त्रेवीशमी ॥ राग केदारो, मुंगर नलो दीगे शेजा तणो॥ए देशी॥ ॥ तेवार पड़ी गुरु श्म जणे, सांजलो राय ॥ वि चार रे॥जिम कोश तरुण पुरुष नवो, शिलप कला सूविचारो रे ॥१॥ केशीय मुनि हवे श्म नणे ॥ ए श्रांकणी ॥ नवीन कावड ग्रही अतिजली, लेश बीको नवो तेन रे ॥ वंशमय दोर जिहां अति नवी, नार वदिवा समरब रे ॥ केशी० ॥॥ हुवे घणु लोह प्रमुख तणु, राय कहे हंता एम रे ॥ तो गुरु कहे अहो रायजी, तेहिज तरुणज तेम रें॥ केशी० ॥३॥ जीरण कावड लेने, बली अतिघणु जेह रे॥ घण जीव खाधी जे चिहुं दिसें,बल नहीं जिहां किणे रेह रे ॥ केशी० ॥४॥ सिथिल जीरण बीको डे जिहां वंशमय जीरण दोर रे ॥ नार वहिवा सम रथ हुवे, लोह प्रमुख तणो घोर रे ॥ केशी ॥५॥ राय कहे समरथ नहीं, जार वहिवा जणी तेण रे॥ गुरु कहे राय कारण किशु, जीरण उपकरण जेण रे ॥ केशी० ॥ ६ ॥ शणिपरें जेह जीरण थयो, सहु थया जीरण जोग रे ॥ नार वहेवा समरथ नहीं, तरुण पण तेह संयोग रे॥ केशी॥ ७॥ तिण हवे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) सदहो रोचवो, जूधाजीवने काय रे॥ राय परदेशी तु म सही, दूर करो मन राय रे॥ केशी ॥७॥श्म गए प्रश्न उत्तर थया, ढाल थर त्रेवीश रे ॥ कहे ज्ञानचंद गुरु जे कहे, ते वात ने विश्वा वीश रे॥केशी ॥ए ॥ ॥ ढाल चोवीशमी ॥ राग सामेरी यत्तणी ॥ ॥ हवे बोले इम परदेशी, तुमें सांजलो मुनिवर केशी ॥ एतो प्रज्ञा बुधि विशेषे, कवी केरी उपमा लेखे ॥ १॥ पण श्ण कारण नावें, मुज रुदयतो शुधन श्रावे॥ जूश्रा वली जीवनें काया, ढुंतो जाणु एकज माया ॥२॥ एक दिन हुँ बेठो स्वामी, पर षद बेठी शिर नामी ॥ एक चोर आण्यो मुज पासे, कोटवालें बांधी उसासें ॥३॥ ते तो चोरने जीव तो तोड्यो, वली खते करी विण रोख्यो ॥ टुंपो देश जीवथी माख्यो, वली तोलीने में सास्यो ॥४॥ पण चोरते जीवतो मूर्ज, नवि जारी हबु दू ॥ कोई फेर पड्यो नवि टांक, जीवता मूत्र एके श्रांक ॥५॥ जो चोर ते एम तोलाणो, जीवतां मूशां वली जाणो ॥ जो फेर तिहां को देखु, तो जीवनें जूठे लेखुं ॥ ६॥ जो चोरने जीवतांमूत्रां, को फेर पड्यो नहीं जूत्रां ॥ नहीं हुई हलुङ जारी, साची मति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) तो श्म महारी ॥७॥ जीव काया एकज जाएं, जूया करी केम वखाणुं॥ सातमो ए प्रश्न वखाण्यो, पण जीव हजी नवि जाण्यो ॥७॥ ॥ उहो शोरठी ॥ ॥ केशी श्रमण कुमार, हवे परदेशी रायनें ॥ईम कहे उत्तर सार, सांजलो सहु मन लायनें ॥१॥ ॥ ढाल पच्चीशमी ॥ पधडी बंद ॥ यत्तिणि ॥ ॥ हवे कहे उत्तर सार, केशी ते श्रमण कुमार॥ दृष्टांत एक सुणो राय, मन जेम निश्चल थाय ॥१॥ पूरखें किणही गम, तें दी धमण विराम ॥ वाय जरी दीवडी केम, राय कहे हंता एम ॥२॥ वाय जरी दीवडी जोय, वलि तेह गली होय ॥ गुरु कहे तोलंता तेह, कोश् फेर होवे रेह ॥३॥ वायनरी नहुवे जार, वली गलीयें नहीं उतार ॥ इंम कहे राजा जाम, तव बोलिया गुरु श्राम ॥४॥ण परें जाणो राय, नवि श्रधिको उडो थाय ॥ जीवनें तो बतां जार, गुरुलघु तणो व्यवहार ॥ ५॥नवि थडे को विशेष, जीवतां मूआं रेष ॥ तिण सद्दहो हवे राय, जूआते जीवनें काय ॥ ६॥ श्म प्रसन उत्तर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) सात, पूरा थया विख्यात ॥ श्म कहे नित्य ज्ञान चंद, जिनवचने परमानंद ॥७॥ ॥ ढाल बीशमी ॥ राग मेघमल्हार ॥ प्राणी वाणी जिनतणी॥ एदेशी ॥ ॥ते सुणीने राजा जणे, ए तो स्वामी उपमा थाय रे ॥ प्रज्ञा बुझि विशेषथी, पण नावे मुज मन गय रे ॥१॥ पण नावे मुज मन गय, ईणे कार ण करी, मुनिराय रे ॥नहीं जूया जीवने काय ॥ श्णे ॥ ए आंकणी ॥एक दिवस बेगे अर्बु, स्वामी हुँ परषद मांहि रे, कोटवाल पुरुष मली, एक चोरने श्राण्यो साहि रे॥एक०॥णे॥मुनि॥२॥तेवार पड़ी ते चोरनें, में जोयो उपर हेठ रे जीव कहां देखु नहीं, दोई कटका कीधा ने रे ॥ दो॥ ॥ इणे ॥ मुनि ॥ ३ ॥ सघली दिस जोएं वली, पण जीव न दीगे केथ रे ॥ तीन चार कट का कीया, दीगे नही तोपण तेथ रे ॥ दी ॥णे० ॥ मुनि ॥४॥ संख्याता कटका करी, जोयो में स घले गम रे ॥ जीव पेठो किहां कणे, तव मुज मति उपनी श्राम रे ॥ तव०॥णे॥ मुनि ॥५॥ जो ते नर टुकडा कीये, नवि दीगे जीव विशेष रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) तो साची मति माहरी, हवे इणिपरे जगवन देख रे ॥ हवे ॥णे ॥ मुनि ॥६॥ जो ते नर टु कडा कीये, किहां देखत जगवन जीव रे ॥ तो हुँ सदहतो सही, जूश्रा जीव काय सदीव रे ॥ जून ॥णे ॥मुनि॥॥ तेहिज जीव काया सही, नहीं जूआ जीव शरीर ॥ श्राठमो प्रश्न पूरो थयो, जपे ज्ञानचंद जिनवर वीर रे ॥जपे॥णामुनिणा॥ ॥दोहा॥ ॥ तेवार पड़ी इणी परें कहे केशी श्रमण कुमार ॥ परदेशी राजा जणी, वचन तणो विस्तार ॥ १॥ तूं ते पुरुष थकी घj, अति मूरख राजान ॥तुब घj दीसे अजे, तेह थकी असमान ॥२॥ परदेशी पूजे इश्यु, कुणते पुरुष विशेष॥मूढ घणु हुँ जेथकी,तुब घणु सुविशेष ॥३॥ ॥ ढाल सतावीशमी ॥राग देशाख ॥ श्रीश्रे यांस जुहारीयें॥अथवा एकवीशानी देशी ॥ ॥ ढाल ॥ गुरु बोल्या रे, परदेशी राजा सुणो; जीव काया रे, इणिपरें हवे जूया गणो॥ केश पुरुष तो रे, वनना अरथी जाणीय, वन जीविका रे, जेह नी एम वखाणीयें ॥ चाल ॥ वखाणीयें एकदिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (yo) काठ लेवा, गनि जाजन कर ग्रही, पेठा सहु ते अ टवी मांहि, सगला गया कि दिसें सही ॥ एक पुरु बने कड़े एम जानुं, में अटवी आागलें; इण पात्र श्री तुंग नि लेई, करे जोजन पाबले ॥१॥ ढाल ॥ जो देख रे, अनि बूजी इस पात्र थी; तो काठथी रे, लेजे गनि तुं पथ ॥ ते लेई रे, जोजन नीपजावे स ही, ते पोहोता रे, काठ लेवा इषी परें वही ॥ चाल ॥ इंम कही टवी मांदी पेठा, हवे पुरुषते मूहूरतें; या वीयो जाजन पास करवा, अशन ते पुरुषां प्रतें ॥ तिहां देखी नवि गनि जिहां कि, काठ तिहां श्राव्यो वही; ते काठ जोयो ग्रही चिहुंदिसें, अगनी ari देखे नही ॥ २ ॥ ढाल ॥ ति वेला रे, पुरुष ते केड बांधी करी; ले फरसी रे, काठ जोवे टुकडा करी ॥ नविदेखे रे, अनि किहां खं खंगमें; कडी छोडी रे फरसी नाखी कहे में ॥ चाल ॥ कहे थाको तिघणो ते, अहो में पुरुषां जणी; नवि कस्यो जो जन शंकरूं दवे, चित्तचिता श्रतिघणी ॥ गलहत्रो देई तिहां बेठो, ध्यान चित्त भूंको धरे; हवे पुरुष सहु ते काठ बेदी, श्रावीया ति श्रवसरे ॥ ३ ॥ ढाल ॥ ते पुरुषनें रे, दीवो चिंतातुर घणो, तब पूबे रे, श्म For Personal and Private Use Only प ४ Jain Educationa International Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) कां श्रामण दमणो ॥ तव बोल्यो रे, पुरुष सह व्यति कर कहे; जिम पाउली रे चित्तमें चिंता अति वहे ॥ चाल ॥ ते वहे चिंता चित्तमांहे, एक नर बोल्यो तिसें; अति चतुर पंमित कुशल गुरुनो, वचन जासहीये वसे ॥सहु पुरुषनें कहे वेग जश्ने, करो स्नान शोहामणा; जाव शब्द करी बलिकर्म श्रापो, असन नीपजावं घणा॥४॥ ढाल ॥ तवबांधी रे, पलवट फरसी कर ग्रही; सर लीधो रे, श्ररणी काठ करे वही ॥ सरसेंती रे, अरणी काठ मधेघणु; करी अगनिने रे, तास करे संधूखणो॥ चाल ॥ संधूखण करी कस्या जोजन, पुरुष ते आव्यां सहु;करी स्नान वली बलि करम पाय, बित्त तिण कीधा बहु ॥ सुख श्रासणे हवे तेह बेग, तेह पुरुष हवे तिहां; आणीया अशनने पान नोजन, तेह बेग ने जिहां॥५॥ ढाल ॥ सहु विलसे रे, जोजन जमतां हरखशुं; वली लेई रे, मूरख पुरुषनें कहे इस्युं ॥ते मूरख रे, जट्ट घणु दीसे अजे; काठ कुटका रे, करीने अगनि जोवे पडे ॥चाल॥ तूं पड़े जोवे अगनिने तिहां, अगनि नवि लाने किहां; इंम जाणजे तुं राय मूरख, जड कहीयें ने श्हां ॥ तिण पुरुषश्री पण सबल मूरख, जीव ईम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) दीसे किस्युं ॥ ते अगनिनी परें कहे मुनिवर, जीव तुं जाणे इस्युं ॥६॥ ॥ढाल अगवीशमी॥ राग गोडी ॥ गज मृग मीन पतंग मधुकर ॥ ए देशी ॥ ॥केशी श्रमणनें कहे परदेशी, जुगति नहीं तुम ए ह॥तुमे अति पंमित चतुर विचक्षण शान तणो नहीं बेह रे ॥ केशी० ॥१॥ गुरु उपदेश लह्या प्रजु सगला, बुकि तणा जंमार ॥ पण जो इंम परखदमें बोलो, था करा वचन अपार रे ॥॥॥ जंचा नीचा वचन कहो श्म, वली करो अति आक्रोश॥तिरस्कार करी निगो, जुगत नहीं तुम रोष रे ॥ के० ॥३॥ तेवार षडी मुनि कहे सुण राजा, जाणे ए तुंनेदकेटलेने दें परखद होवे, बोल्यो राय उमेद रे॥ के ॥४॥ जाणु हुं परखद चिहुँनेदें, प्रथमतो दत्री केरी॥बी जी गाथा पतिनी जाणु, त्रीजी माहण केरी रे॥के० ॥५॥ चोथी ऋषिनी परखद कहीयें, बोड्या वली श्र णगार॥ईण चार परखद मांहे कोश, करे अपराध श्र पार रे॥॥॥तेहने दंम किश्यो हुवे राजा, जाणे तेह प्रकार॥जाणु ढुं राजा कहे स्वामी, सांजलो तेह विचार रे॥के०॥७॥करे अपराध जे दत्री परखद, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) हाथ पाय शिर बेदे ॥ शूली नेद करीने मारे, जीव तणो करे नेद रे॥ के०॥ ७॥गाथापति परखद अप राधी, तिण पलाल ढिग सेंती ॥वींटी अगनि करी परजाले, बीजी नीति ने एती रे ॥ के ॥ ए॥ मा हण परखद जे अपराधी, कठिण वचन करी त्राडे॥ कुंके कासुणग तणो करे लंबन, देशथी बाहिर काढे रे ॥ के० ॥ १० ॥ ऋषी परखदनो जे अपराधी, क पण वचन करी त्राडे ॥ नवियाक्रोश करी निर्न, उलंजो न कोई दाखे रे॥के॥११॥ गुरु कहे जो जाणो जो तो इम, इंम कां तूंतो बोले ॥उपरांगे उपरांगे चाले, वरते दमने तोलें रे ॥के ॥१२॥वांको वांको वचन तुं बोले, साधु न बोले तुंमो ॥ कहे ज्ञानचंद श्णी परे जाणो, साधु वचन ते रूडो रे ॥ के० ॥१३॥ ॥ ढाल श्रोगणत्रीशमी॥राग गोडी॥रामचंदके बाग, चांपो मोरी रह्योरी ॥ए देशी॥ ॥ कहे परदेशी राय, सांजलो मुनिवर केशी॥हु तो पहेलडे बोल, प्रतिबज्यो प्रनु देशी ॥१॥ पण मु ज चित्त विचार, उपनो एहवो स्वामी ॥ ज्ञानवंत गु णवंत, एहवो पुरुष हु पामी ॥२॥ वांको वांको जेम, चाबुं हुं तुम सेंती॥तिम तिममुजने लाज, थासे,प्रात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) ज़ु एती ॥३॥ ज्ञान दर्शन चारित्र, लहीशुं जीव वि वेक॥ण कारण हुं स्वामी, वांको चाल्यो बेक॥४॥ केशी कहे सुण राय, जाणे तुं व्यवहारी॥केटला कहे राय, नगवन चार प्रकारी ॥५॥ एकतो देव दा न, वचनें नवि संतोषे ॥वचने संतोषे एक, दाने क री नवि पोषे ॥६॥ एकतो देवे दान, वचन पण बो ले मीगे॥एक न देवे दान, नवी संतोषे धीगे॥७॥ वलतो गुरु कहे एम, कुण व्यवहारी होय ॥ चार पु रुषमां राय, कुंण अव्यवहारी जोय ॥ ७॥राजा क हे करी नेद, तीन अडे व्यवहारी ॥ नवि ये न वदे मीठ, जाणो ते श्रव्यवहारी॥ए॥ नवि संतोषे वय ण, तोपण जगति घणेरी॥करतो चित्त विवेक, वात लहीमें तेरी ॥१०॥ प्रसन उत्तर थया श्राउ, देखो गुरु चतुरा॥ संतोष्यो ईम राय, कही अति नीति नलाइ॥ ११॥ सर्वगाथा ॥३४॥ ॥दोहा॥ हवे परदेशी श्म जणे, केशी श्रमण कुमार ॥ पंमित चतुर घणु तुमें, बुद्धि तणा जंमार ॥१॥ गुरु उपदेश लह्यो जलो, सकल कला समरन ॥ जूदो जीव शरीरथी, देखाड्यो मुज हब ॥२॥ काढी था Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) मल जेवडो, तो हुं मानु साच ॥ जूदा जीव का या अडे सहढं प्रजुनी वाच ॥३॥ नवमें प्रश्न श्श्यो सही, पूजे राय विचार ॥केशी जिम उत्तर कहे, सां जलो ते अधिकार ॥४॥ तिण कालें तिण अवसरे, राय प्रदेशी पास ॥ वाये करी चाले घणु, वनस्पती काय विलास ॥५॥ ॥ ढाल त्रीशमी ॥राग केदारो॥ चोपाश्नी देशी॥ अथवा अतिरंग जीनेहो,अतिरंगजीने ॥एदेशी॥ __॥ तेवार पड़ी कहे मुनिवरकेशी, सांजलो उत्तर राय परदेशी॥हांगुरु नांखे, हो गुरु नांखे, सूधा सूत्र वचननी साखे ॥ हां ॥१॥ चलतो देखे तुं तिण काय, परिणमे नावें अनेक उपाय ॥ हां ॥ २॥ चलता देबु कहे राय, गुरु कहे कोण चलावे श्राय ॥ हांग॥३॥ देव असुर को नागकुमर, किन्नर व्यं तर नेद प्रकार॥हा॥॥राय कहे नको देव चला वे, पान सहु ए वाय हलावे ॥ हां ॥ ५ ॥ तो गुरु कहे तुं देखे राय, एतो रूपी वाय कहाय ॥ हां॥ ॥६॥ राय कहे नवि देखुंखाम, तो केशी कहे वल तुं श्राम ॥ हां ॥७॥ जो न वि देखे वाय सरूपी, जीव देखावं केम अरूपी ॥ हां ॥ ॥ सघले जावें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) करी नवि जाणे, दश गणा बद्मस्थ प्रमाणे ॥ हां० ॥ए॥ धर्मास्तिकाय अधर्म आकाशें, ए त्रणे अस्ति काय प्रकाशे ॥ हांग॥१०॥ जीव शरीर रहीत पर माणु, शब्द गंध वली वाय वखाणु ॥ हां ॥११॥ नवमें ए जिन केवली थासे, दशमें एतले नवि सिव जासे ॥ हां ॥१२॥ अथवा नहीं थासे दश गणा, नवी जाणे बद्मस्थ अयाणा ॥हां ॥ १३॥ एहिज बोल दशे सुप्रमाणे, सघले नाव करीने जाणे॥हांग ॥१४॥उपना ज्ञानने दरशन धारक, अरिहा जिनवर केवली साधक ॥ हां० ॥ १५॥ धर्मास्तिकाय प्रमुख दश जाणो, परदेशी हवे मनमां श्राणो ॥ हां ॥ ॥ १६ ॥ सदहो जीवनें काया जूआ, एटले प्रसन उ त्तर नव दृथा ॥ हां ॥१७॥ ढाल थए त्रीशप्र माणे, सूत्र वचन ज्ञानचंद वखाणे ॥ हांग ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ केशी श्रमण प्रत्ये कहे, हवे परदेशी राय ॥ हाथीने कुंथु तणो, जीवसरिखो थाय ॥१॥हंताप रदेशी सही, कहे केशी गुरु राय ॥ हाथीने कुंथु त णो, जीव सरिखो थाय ॥२॥ तो वलतुं राजा कहे, हाथी हुंती खामी॥श्रल्प कर्म हुवे कुंथुङ, किरिया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) श्राश्रव गम॥३॥श्म थाहार निहार वली,तिम उसा स नीसास ॥ कि अल्प युति तेहनी, कुंथुथी वली तास॥४॥कर्म घणा हाथी तणा, किरिया श्राश्रव गण ॥ श्राहार नीहार हुवे घणां, बल वीरिय अस मान ॥५॥हंता परदेशी सही, मुनि कहे गजथी जा ण ॥ अल्प कर्म हुवे कुंथुङ, गज महाकर्म वखाण ॥६॥तो किण कारण स्वामीजी, बेहु जीव समान॥ हाथीने कुंथु तो, तिहां हुवे कवण वखाण ॥७॥ दशमो प्रश्न इंश्यो वली, पूजे राय विचार ॥ केशी जिम उत्तर कहे, सांजलो ते अधिकार ॥७॥ ॥ ढाल एकत्रीशमी ॥ राग सामेरी, __ अमल कमल ॥ ए देशी ॥ ॥ देखो रे मेरे मुनिवरकी चतुराई, हेतु जुगति करी राय समजावे, करीदृष्टांत सखाई॥देखो॥१॥ कूडागार शाला एक महोटी, अतिगंजीर उदार ॥ हाथमां दीवो लेश पेसे, काश् पुरुष प्रकार ॥ देखे० ॥२॥ कूडागार शालामें पैसी, सहु ढांके तसु बार॥ एके देशे राखे दीवो, करें प्रकाश श्रपार ॥ दे॥३॥ तिण शालामें हुवे अजवाटुं,पण नवि बाहिर नासे॥ ते श्रालामें लेई मूके, तो तितरे प्रकाशे॥दे ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) नवि बाहेर नवि शाला मांहे, ते नर करे प्रकाश॥ ईम लेश वली सूंमले ढांके, तो तीतरो उजाश ॥देण ॥५॥ श्म लघु लघु ढांकणे ढांकतो जाय, दीप शी खा परमाणे, बेहडे त्रण ढांकणे करी ढांके, दीप चं पक सुप्रमाणे ॥ दे० ॥६॥ तो तीतरेंमें करे परका सा, नवि बाहिर किणगमें ॥ इंम जाणो परदेशी राजा, करम तणे परमाणे ॥दे०॥७॥ जीवतो जिण समय करी बांधे, न्हानीमहोटी काया ॥तेह असंख्य प्रदेश करीने, करेसचेतन राया॥दे॥॥तिणे करी सदहो रोंचवो साचो, जीवनें काया जूया ॥ रायपसे णी सूत्रनी साखें, प्रसन उत्तर दश इथा॥दे॥॥ ॥दोहा॥ ॥हवे परदेशी श्म जणे,सांनलोकेशी स्वामि॥ पहेली मति दादा तणी, हंति निचे श्राम ॥१॥ जीव काया जूदा नही, तेहिज जीव शरीर ॥ते वार पड़ी मुज बापनी, एहिज मति अति धीर॥२॥ मुज पण मति ने एहवी, नहीं जूश्रा जीवनें काय॥ तेहिज जीव काया अबे, ए निश्चे मन थाय ॥३॥ पुरुष परंपर वीयो, कुल निश्रायें धर्म ॥तेह दृष्टि नवि बोडीशु, ए जाणो हवे मर्म ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) ॥ ढाल बत्रीशमी ॥ राग गोडी ॥ सीमं धरस्वामी सांजलो रे ॥ ए देशी ॥ ॥ हवे केशी कहे सांजलो राजा, करीश घणो पश्चात्ताप ॥ लोह वाणीयानी परें जाणो, जिम लह्यो शोक संताप ॥ १॥ नरेसर सांजलो रे ॥ यो जिन धर्म विख्यात, गेडो कुमति मिथ्यात ॥ नरेसर ॥ लोह वाणीयो कुण ते स्वामी, कहे परदेशी राय ॥ मुनि कहे सुण दृष्टांत अनोपम, जिम निश्चल मन थाय ॥ नरे॥२॥ जिम केई वाणीया धनना श्र रथी, श्ररथ गवेषण हार ॥ श्ररथना लोनी श्ररथ ना वांडक, लेई नंम अपार ॥ नरे॥३॥नात पाणी संबल बहु ले, अटवी पेग एक ॥ तिण अटवीमें चलतां दीगे, लोह ागर सुविवेक ॥ नरे॥४॥ लोह लीधो तिण हरखित होई,श्रागें चाव्या जाम ॥ तरुश्रानो श्रागर एक दीगे, सहु कहे वाणीया श्राम ॥ नरे० ॥५॥देवाणु प्रिय ए तरूश्रानो, ढगलोअडे श्रनिराम ॥ थोडे तरूए अतिघणो लाने, लोह नार निःकाम ॥ नरे ॥६॥ लोह नार तिण गेडी स घलो, लीजें तरूश्रा जार ॥ तेह वात सुणीने लीधो, बोमी लोह असार ॥ नरे॥७॥ एक पुरुष तिणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) पुरुषां मांहे, लोह जार नवि मे ॥ सघला पुरुष कहे हवे तेहने, डोमि तुं कां हठ मांडे ॥ नरे॥॥ तरुथो लई तब पुरुष ते बोल्यो, पूरथी श्राण्यो एह ॥ देवाणु प्रिय हुं नहीं बांडं, गाढो बांध्यो बेद ॥ नरे ॥॥हवे तिण पुरुषनें सहु वली जांखे, हेतु युगति दृष्टांतें ॥ पण ते नवि माने नर मूरख, वली श्रागा चट्या खंतें ॥ नर ॥ १०॥ इंमत्रांबानो श्रागर श्राव्यो, तिहां पण ते विरतंत ॥ रूप्प सुवर्ण रयणा यर हीरा, पण तेणे नवी ग्रह्या अंत॥ नरे ॥११॥ बीजा पुरुष लई बहु हीरा, आव्या नगर उदास ॥ वेचीने धन लोधा बहु परें, नोगवे नोग विलास ॥ ॥ नरे० ॥ १२ ॥ गाय नेश गली बहु लीधा, मेव्या दासी दास ॥ श्राउ नूमी प्रासाद अनोपम, पूरे वं डित श्रास ॥ नरेण ॥१३॥ स्नान करी बली कर्म घणे रा साथें तरुणी बंद ॥ बत्रीश बझ पडे बहु नाटक, नोगवे नोग यानंद ॥ नरे॥१४॥ लोह वाणीयो लो हनें वेची, पामे अल्प ते मोल ॥ पश्चात्ताप करे धन खूटे, पामे उरक निटोल ॥ नरे० ॥१५॥ दीण महा उर्लन धन हीणो, चिंता सागर तोल ॥ लोग जोग वता पुरुष ते देखी, बोले एहवा बोल ॥नरे॥१६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) ढुं धन्य पापी धन हीलो, हरि सिरि लाज विही ॥ ही पूनमने दिन बजायो, मूंगा लक्षण दीण ॥ नरे० ॥ १७ ॥ जो हुं वचन मानत ति वेला, इणि परें पामत जोग ॥ हुं पण सुख संयोगें विहरत, ईम करे ते बहु शोग ॥ नरे० ॥ १८ ॥ ईणी परें तुं परदेशी राजा, पश्चा ताप अपार ॥ मत पामे ति पुरुष तणी परे, लोह मि श्यामति जार || नरे० ॥ १९ ॥ एटले प्रसन उत्तर या पूरा, सूत्र वचन ईग्यार || परदेशी राजा प्रति बूजयो, ईहां किणे दरख अपार ॥ नरे० ॥ २० ॥ ॥ ढाल तेत्री शमी | राग मारुणी ॥ रुक्मिणी राणी मनविलखाणी ॥ ए देशी ॥ ॥ परदेशी राजा श्राणंदे, गुरु वांदी इंम बोले रे ॥ पश्चात्तापक हुं नहीं होतुं, लोह पुरुषनी तोलें रे ॥१॥ प्रतिबूज्यो रे परदेशी राय, सदगुरु केशी संगे रे ॥ तिल करजो रे सह सदगुरु सेव, जिम लहो रंग छा नंगें रे ॥ प्रति० ॥ २ ॥ देवाणु प्रियनें पसवाडे, वांढुं सुवा स्वामी रे ॥ केवली जाषित धर्म अनोपम, सू धा सदगुरु पामी रे ॥ प्रति० ॥ ३ ॥ गुरु कहे देवाणु प्रिय जिमसुख, मकरो इहां प्रतिबंधो रे ॥ धर्म कथा कहे चित्र तणीपरें, ले श्रावक व्रत खंधो रे ॥ प्रति० For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) ॥४॥ जिहां नगरी सेतंबिका तिहां किए, राजा जब मन या रे ॥ केशी कुमर कहे परदेशी, ऐहवी वात तुं जाणे रे || प्रति० ॥ ५ ॥ केटले नेदें दुवे श्राचा रज, परदेशी कहे जाणु रे ॥ त्रय नेदें होवे याचा रज, हवे ते एम वखाएं रे || प्रति० ॥ ६ ॥ कलाचा रजने शिलपाचारज, धर्माचारज कहीयें रे ॥ गुरु कहे तुं जाणे परदेशी, इसी परें ए जस लहीयें रें ॥ प्रति० ॥ ७ ॥ हंता जाएं स्वामी ईणीपरें, कलाचार ज जे होवे रे ॥ शिल्पाचारज जे वली बीजो, स्नान करावी धोवे रे | प्रति० ॥ ८ ॥ चंदन लेप करीनें ज पर, मंगण वली सहु कीजें रे ॥ फूल पहेरावी जो जन दीजें, प्रीतिदानवली दीजें रे ॥ प्रति० ॥ ए ॥ जीवे त्यां लगें जोगवे जोगा, पूठें वृत्ति करीजें रे ॥ धरमाचारज जिहां देखीजें, वांदीने नम॑सीजें रे ॥ प्रति० ॥ १० ॥ सत्कारी सनमान करीजें, देव चैत्य सेवीजें रे ॥ कल्याण मंगल कारक गुरुने, शुद्ध श्रा हार तो दीजें रे ॥ प्रति० ॥ ११ ॥ श्रशन पान खादि मने स्वादिम, वेगें पडिलाजीजें रे || पडिहारू पीढ फलगने सय्या, एह निमंत्रणा कीजें रे ॥ प्रति० ॥ १२ ॥ गुरु कड़े जो तुं इषपरें जाणे, तोपण श्म मन For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) नावे रे ॥वांको वांको मुजणुं वरती, अखमावी श्म जावे रे ॥प्रति० ॥१३॥ ढाल थश्तेत्रीश इसी परें, सूत्र तणे अनुसारें रे ॥ कहे ज्ञानचंद श्म नरकें प डता, सदगुरु वेग उगारें रे ॥ प्रति ॥ १४ ॥ ॥ ढाल चोत्रीशमी॥राग मलार ॥वधावानी देशी॥ ॥परदेसी राजा नणे, तुमे सुणजो हो मोरा सद गुरु श्राम ॥ परदेशी हो जिन गत आदस्यो, वली लीधा हो श्रावकनां व्रत बार ॥पर॥ श्म मुज मति प्रजु उपनी, ढुं करशुं हो प्रनु एहवं काम ॥पर॥१॥ देवाणुप्रियशुं सही, जे वयोहो वांको वांको अपार ॥पर॥ ते मुज कालें खामतां, श्रेय थाशे हो वली हरख अपार ॥ पर ॥॥ अंतेउर परिवारशु, परिव रियो हो वांदी प्रजुना रे पाय ॥ विनय करीने वा मीशु, जिम श्राव्यो हो गयो तिण दिस राय ॥परण ॥३॥ हवे परदेशी रायजी, दिन उग्यो हो जब हुन परजात ॥ पर ॥ हरख्यो राजा श्रतिघणुं, विधि वं दन हो कोणिक जेम विख्यात ॥ पर॥४॥ तरुणा तेजी पाखस्या, मलपंता हो शणगास्या गज राज ॥ पर ॥ सजा कीधा रथ रंग शुं, वली वाजे हो वाजां अधिक दिवाज ॥ पर० ॥५॥ नयर समायुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) शोनतुं, शणगास्यां हो वली सघलां हाट ॥ पर०॥ ध्वज नेजा वली फरहरे, वली मलिया हो योध तणा बहु थाट पर॥६॥ कोणिकनी परें नीकट्यो, परदे शी हो राजा वंदन काज ॥ पर ॥ अंतेउर परिवा रद्यु, परवरियो हो चनविह सेन समाज ॥ पर ॥ ॥७॥पंचालिगम साचवी, गुरु वांदी हो पूरव श्ररथ विचार॥ विनय करीने खामणां, परदेशी हो मनशुद्ध वारंवार ॥ पर॥७॥हवे केशी गुरु रायनें, सूरिकता हो देवी प्रमुखने तेम ॥ पर महोटी परखद आगो, धर्म नांखे हो जीव दया बहु प्रेम ॥ पर०॥ ए॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे परदेशी रायजी, केशीसद्गुरु पास ॥ धर मसुणी वली मन धरी, पाम्यो हरख उदास ॥१॥ उव्या गुरु वांदी वली, केशी श्रमण कुमार ॥ नगर जावानें सज थया, गुरु कहे एम विचार ॥२॥ ॥ढाल पांत्रीशमी॥रागसारंगपगुमानी मीयां ए देशी॥ ॥पहेलां थक्ष रमणिक अनोपम, पनी मत थाजे विरूप रे ॥ परदेशी राजा॥जिम वनखंम हुवे नदृसा ला, श्खुपल वाडा सरूप रे ॥परदेशी राजा॥१॥ मि थ्या मति अंधकूप रे॥पर ॥ रहेजो श्रलगा नूप रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) पर० ॥ जाणी एह सरूप रे ॥ पर० ॥ २ ॥ कु ते वनखंग कहे परदेशी, रमणिक थइ रमणिक रे ॥ पर० ॥ श्रा ये गुरु कड़े सुण परदेशी, जिम वनखं सचिक रे॥ पर० ॥ ३ ॥ फूल्यो फल्यो वली हरीयो दीसे, तव रम पिक वनखं रे ॥ पर० ॥ जब पत्र फल फूल नहीं वली हरीयो, दीसे विरू ढंढ रे ॥ पर० ॥ ४ ॥ बीजे दृष्टांतें दवे नटशाला, गाये वाये जाम रे ॥ ॥ पर० ॥ नाचे हसे ने रमे बहु रामत, दीसे रम कि ताम रे ॥ पर० ॥ ५ ॥ गाये वाये नाचे नहीं कोश, तब विरुd नटशाल रे ॥ पर० ॥ त्रीजे दृष्टांत तो शेलडी वाटक, खाजे पीजे रसाल रे ॥ पर० ॥६॥ तव रमणिक दुवे इकुवाटक, ते विष दीसे विरूप रे ॥ पर० ॥ धान्य खलुं चोथें दृष्टांते, इणिपरें जाणो सरूप रे ॥ पर० ॥ ७ ॥ ति कारण परदेशी इणि प रें, कहीयें तुम राजान रे ॥ पर० ॥ मत थाय रम पिक थइनें, चार दृष्टांत समान रे || पर० ॥ ८ ॥ ॥ ढाल बत्रीशमी ॥ राग सिंधूडो मिश्र ॥ पुरि सादाणीह पासजिनेसरू ॥ ए देशी ॥ ॥ ते वार पढी हो परदेशी जणे, सुणजो केशी स्वामी || हुं नहीं था हो रमणिक होइनें, वली श्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) रमणिक विराम॥१॥ वैरागी सोनागी हो सद्गुरु सांजलो, जे कह्यां चार दृष्टांत ॥ हुँ नहीं थालं हो तिण परें स्वामीजी,धरम तणी बहु खंति॥ वैरागी० ॥२॥ सेतंबिका श्रादें हो गाम तो मुज घणां, सं ख्या सात हजार ॥ नाग हुँ करशुं हो स्वामीजी तेदना, इणीपरें चार प्रकार ॥ वैरा० ॥३॥ एक तो जाग हो देशु बल वाहने, एक तो जाग कोगर ॥ त्रीजो नाग हो देशुं श्णीपरें, अंतेउर परिवार ॥ वैराण ॥४॥ एके जागे हो शाला अतिवडी, करशुं कूडागार ॥ पुरुष घणेरा हो चाकर राखशुं, देश्मोल अपार ॥ वैरा० ॥ ५॥ चारे नेदें हो तिहां करावी ने, अशनादिक थाहार ॥श्रमण माहणहो जिस्कु पंथीया, देशं विविध प्रकार ॥ वैरा॥६॥णी परें वहेंची हो थर निश्चिंतशु, पालशुं शील श्राचार ॥ व्रत पच्चरकाण हो करशुं श्रतिघणां, पोषध विधि विस्तार ॥ वैरा ॥ ७॥ इणीपरें स्वामी हो विह रशं हं सही, जाव शब्द अधिकार ॥ श्रावक गुण हो सहु श्म जाणीय, जिणथी हुवे जवपार ॥ वैरा० ॥७॥णीपरें जांखी हो गुरुने रायजी, पहुता प५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रापणे गम ॥ हवे दिन उग्यां हो तिम करे राय जी, पूरवे जांख्यो जाम ॥ वैराण ॥ ए॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे परदेशी रायजी, श्रमणोपासक सार॥ हु उजीवाजीव बहु, जाण्या नेद विचार ॥१॥ निर तिचारें अतिजलां, वलि पाले व्रत बार ॥ चौदस श्राम पूनिमें, पौषध विधि विस्तार ॥२॥ हाम मीजी लगें धर्म वस्यो, शंका नहींय लगार ॥ पडि लाने वली साधुनें, सूजता शुद्ध आहार ॥३॥ जि ण दिनथी व्रत आदमु, तेह दिवसथी राय ॥ श्रादर न करे किहां कणे, न करे राज्य उपाय ॥४॥ बल वाहण कोगर बहु, पुर अंतेउर देस ॥ राग नहीं विण श्रादरे, विचरे इंम नरेश ॥ ५॥ ॥ ढाल साडत्रीशमी ॥ राग आशावरी॥ सेवो पास जिनेसर स्वामी ॥ ए देशी॥ ॥ तेवार पड़ी हवे सूरिकता, श्म करे चित्त वि चार रे ॥ जिण दिनथी परदेशी राजा, श्रावक व्रत ग्रयां बार रे ॥१॥ देखो स्वारथ रीति सगाई, शर ण नहीं हां कोय रे ॥ श्रीजिनधर्म विना जगाहें, चित्त विचारी जोय रे ॥ देखो॥२॥ तिण दिनथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) राजा देश अंतेउर, आदर न करे मुड रे ॥ तो को शस्त्र प्रयोगें मारि, अगनि मंत्र वली गुज रे ॥३॥ सूरिकंत कुमारने थापी, राज करुं हवे श्राप रे ॥ एम विचारि तेज्यो कुंवर, मनमां धरी बहु पाप रे ॥ देखो ॥४॥ सांजलो पुत्र कहे हवे देवी, जिणदिनथी तुज तात रे॥ हु श्रावक तेह दिवस थी, न करे राजनी वात रे॥दे॥५॥पुर अंतेजर नहीं को श्रादर, न करे माणस नोग रें॥ तिण का रण हवे तातने मारी, ले तुंराज्यनो जोग रे॥देखो ॥६॥ श्म करतां तुज श्रेय अडे पुत्र, वात सुणी हवे तेह रे ॥ सूरिकंत कुमार न बोले,आदर न करे एह रे ॥ देखो ॥ ७॥ राणी सूरिकंतानें इणि परें, उपनो चित्त विचार रे ॥ सूरिकंत कुमार पितानें, कहेशे तेह विचार रे॥ देखो ॥॥ राजा परदेशी ना दिन प्रत्ये, जिसने मरम अनेक रे ॥ अंतराजो ती मते विहरे, नहीं को चित्त विवेक रे॥देखो ॥ ए॥ तेवार पड़ी हवे सूरिकंता, अन्यदा किणे प्र स्ताव रे ॥ परदेशीनु बिज लश्ने कीधो एहवो नाव रे ॥ दे० ॥१॥शन पान खादिमनें स्वादिम, वस्त्र मक्ष अलंकार रे ॥ विष प्रयोग कीधा सहु राणी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) धिग संसार असार रे॥दे॥११॥ स्नान करी परदेशी राजा, जमवा बेग जाम रे॥ विष संयोग करीने श्राण्या, अशनादिक सहु ताम रे ॥ दे० ॥१२॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे परदेशी रायनें, अशनादिक श्राहार ॥ विष संयोगें उपनी, वेदना विविध प्रकार ॥१॥ ऊजलीने पहोली घj, कर्कश कडुई घोर ॥ कठिन पुःख जिहां अतिघणुं, पुतणी परें जोर ॥२॥ सदेतां जे अति दोहिली, पित्त ज्वर वली काय ॥ दाह वली श्रति ऊपनो, म विहरे हवे राय ॥३॥ ॥ ढाल आडत्रीशमी ॥ सुजाणसी दण लाखी ___णो जाय ॥ ए देशी ॥अथवा, रे बेटी नली रे जणी तुं श्राज ॥ ए देशी॥ ॥ तिवार पडी हवे रायजी रे, राणी ऊपर रेख॥ मने पण द्वेष करे नहीं रे, जिनवर धरम विशेष ॥१॥ विवेकी ॥ देखो उपशम सार, जिनवर धर्म विचार, विवेकी, करे अणसण विस्तार, विवेकी, पामे नव निस्तार, विवेकी, श्णपरे सुक अपार, कि वेकी, देखो उपशम सार॥२॥ए श्रांकणी ॥ जिहां पौषध शाला अडे रे, हवे श्रावे तिहां राय ॥ पौष Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६ए) धशाला पूंजीने रे, करे अणसण उपाय ॥ वि०॥दे० ॥३॥ वडी नीतिने लघुनीतिने रे, पूंजे धरती श्राप ॥ मान संथारो साथरे रे, मन नहीं को संताप ॥ विण ॥ दे ॥४॥ पालखी बेठा सही रे, पूरव साहामा राय ॥ करतल जोडी हायशुं रे, माथे अंजली गय ॥ वि० ॥ दे० ॥ ५ ॥ शिरसावर्त्त करी सही रे, वच न तो बोले श्राम ॥ नमोबुणं अरिहंतनेजी, पोहोता जे शिव गम ॥ वि०॥दे॥६॥ केशी गुरु प्रणमुं वली रे, गुरु महारा जगवंत ॥ तिहां रह्या शहाथी वेखजो रे, वंदना मुजा महंत ॥ वि० ॥ दे ॥७॥ णी पर वादी नावशु रे, इम कहे वचन विलास॥ पहेला पण प्रनु पासथी रे, व्रत लीधां उबास॥ वि० ॥ दे ॥ ॥ प्राणातिपात पञ्चकु सही रे, जाव प रिग्रह नेद ॥ क्रोध मान माया वली रे, लोजतणो सहुडेद ॥ वि० ॥ दे ॥ ए॥ पिङादोस कलहो सङ रे, अन्याख्यान पैशुन्न ॥ परपरिवाद पञ्चकु सही रे, रतिभरति नही मन ॥ वि०॥दे० ॥१०॥ माया मोस मिथ्यात्वनें रे, पञ्चकु वली सहु पाप॥जाव जी व लगें सही रे, बूंमा जोग संताप॥ वि०॥दे॥११॥ सर्व तर्जु श्रशनने पान जो रे, खादिम स्वादिम सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) र ॥ चविहार पञ्चकु सही रे, जाव जीव विचार॥ वि०॥ दे ॥१२॥जे मुज एह शरीर में रे, श्रति व हज एकंत ॥ रतन करंमक जिम सही रे, जिहां कि णे प्रेम महंत ॥ वि० ॥ दे० ॥ १३॥ तेपण वोसिरावं सही रे, बेले श्वासोश्वास ॥ईम संलेषण श्रादरी रे, राजा मन उदास॥वि०॥ दे॥१४॥श्रालो वली पडिकमी रे, पाम्या चित्त समाधि॥ कालें काल करी हवे रे, पाम्या सुख अंगाध ॥ विदे॥१५॥सोहम कल्पें शोजतोरे,सूरियाज विमान॥सूरियान थया दे वता रे, सुख पाम्या असमान ॥ विण ॥ दे॥१६॥ ॥दोहा॥ ॥ तेवार पड़ी हवे देवता, सूरियाज इण नाम ॥ पांचें पर्याप्तें करी, थया पर्याप्ता जाम ॥१॥ श्राहा रने शरीर वली, इंडियने आण पाण ॥ तेम मन ना षा जाणीयें, ए पर्यापति जाण ॥२॥ हवे श्रीवीर जिणंदजी, गौतम प्रतें कहे एम ॥ सूरियाने शकि श्म लही, जिनवर धर्मशुं प्रेम ॥३॥ ॥ ढालगणचालीशमी।फुलणानी ॥रागमारुणी ॥ ॥आउखुं हवे केटबुं रे, पू गोयम स्वामि ॥ सूरियान देवता तणो, तव बोल्या प्रज्जु थाम॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) जिनवररायजी रे, अरिहंत श्रीमहावीर ॥ सागर गं नीर, मेरुतणीपरें धीर ॥ जिनवररायजी रे॥॥चार पठ्योपम श्राउ रे, कहे ईम श्रीमहावीर ॥ किहां जाशे तिहाथी चवी, पूजे गौतम धीर ॥ जिन ॥३॥ माहावि देहमां जायशे रे, दीपता कुल श्रीमंत ॥ धण कंचण जिहां अतिघणां, दासी दास महंत ॥ जिन ॥४॥तिण कुलमां जपामशे रे, पुरुष तपो अवतार ॥ गर्नथकी माता पिता, होशे दृढ धर्म था चार ॥ जिन ॥५॥ तिण कुल जनम तो पामशे रे, सुंदर रूप श्राकार ॥ मात पिता करशे सही रे,जन म महोत्सव सार । जि०॥६॥ ज्ञाति सहु जमा मीने रे, देशे नाम उदार ॥ गर्नथकी माता पिता, हुवा दृढ धर्म अपार ॥ जि०॥७॥ सातिरेक पाठ वर्षनो रे, जापी मायनें ताय॥ कलाचारजनेश्रापशे, शीखवा कला उपाय ॥ जि॥॥ कलाचाये शीखा वीने रे, बहोतेर कला विज्ञान ॥ मात पिताने सोंप शे, देशे तसु बहु दान ॥ जि ॥ ए॥ तेवार पड़ी ते कुंघरू रे, होसे यौवन जाव ॥ बाल जावने डोक शे, जाणशे सकल स्वजाव ॥ जि ॥ १०॥ कला ब होत्तेर जाणसे रे, नाषा देश अढार॥ कुशल घणुं हो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) से तिहां पूरवपुण्य प्रकार ॥ जि० ॥ ११॥ नवे अंग नवला होशे रे, नाटक गीत विनोद ॥ चतुर घj थाशे तिहां, पामशे वर्ष प्रमोद ॥ जि ॥ १५ ॥स कल कला शोहामणो रे, बोलशे मीग बोल ॥हय गय रथ योधा घणुं,बहुत रलि रंगरोल ॥ जि॥१३॥ इस नणदुं विलसद् रे, सुंदररूप श्राकार ॥गजगति चालशे मलपतो, दिनदिन हरख अपार ॥ जि॥१४॥ समरथ होशे नोगमा रे, साहसिक दृढकाय ॥ कलाकु शल तसु जाणीने, तेहना मायने ताय॥ जि० ॥१५॥ ॥दोहा॥ ॥ विपुल अन्न जोगें करी, पाण जोगवली लयण॥ वस्त्र नोग वली नवनवा, जोग वली जे सयण ॥१॥ तिणे करी करशे निमंत्रणा, तेहना मायनें ताय ॥ पण ते कुमर न राचशे, जोग तणे उपाय ॥२॥ गृह नहीं थाये तिहां, करशे नहीं तसु संग ॥ मूर्षित नहीं होय जोगमा, प्ररव धर्म प्रसंग ॥३॥ जिम को पद्म शोहा मणो, उपनो पंक मजारि ॥ जल करी वृक्ष थयो घj, नवि लीपे तिण वारि ॥४॥ दृढ पश्ल पण श्णीपरें, उपज्यो काम विलास ॥ वृक्ष थयो जोगें करी, करशे संग न तास ॥ ५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) ॥ढाल चालीशमी ॥संतिप्रजु दीक्षा वरे, दीयो दान उदार रे साधु ॥ ए देशी ॥ राग केदारो गोडी ॥ ॥ज्ञाति मित्र संबंधीया, करशे नहीं तिहां रंग रे ॥ साधु ॥ तेहवा थविरने पासथी, केवल धर्मश्र जंग रे ॥ साधु ॥ १॥ बोध बीज लहेशे तिहां,था शे वली अणगार रे ॥ साधु ॥ पांचे समिति समि तो सही, तीन गुप्ति उदार रे ॥ साधु ॥ बोधण॥२॥ साधु तणे गुणे शोजतो, जाव शब्द अधिकार रे ॥ साधु ॥ तेजें करी अति दीपतो, अगनि तणी परें सार रे ॥ साधु ॥ बोध ॥३॥ तिणे जगवंतने वि हरता, श्णीपरें धर्म श्राचार रे ॥ साधु ॥ अनुत्तर झानने दरशनें, चारित्र शुफ विहार रे ॥ साधु ॥ बोध ॥४॥ अद्यव मदव लाघवें, खंती मुत्ति सार रे ॥साधु ॥अणुत्तर सत्यनें संयमें, सुचरित फल सुख कार रे ॥ साधु ॥ बोधण्॥५॥ मोक्ष मारग करीश्रा पर्ने, नावंताणीपरें नित्त रे॥साधु ॥अनुत्तर ज्ञान तो पामशे, केवल ज्ञान विचित्त रे॥साधु ॥ बोध ॥६॥ अरिहंत जिनवर केवली,थाशे ते तिणवार रे॥साधु॥ देव असुर नर लोकनो, होशे जाणणहाररे।साधु ॥ बोध ॥ ७॥ श्रगति गति थिति नाव जे, जाणशे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) सकल प्रकार रे ॥ साधु ॥ सर्व लोक सहु जीवना, सघला जाव विचार रे ॥ साधु ॥ बोध० ॥ ८॥ जाणता देखता विहरशे, केवली दृढ पइन्न रे ॥ साधु ॥ श् विहारें विरंदतां, घणां वरस धन्य धन्य रे ॥ साधु ॥ बोध || केवल पर्याय पालशे, जाणी श्रायुशेष रे ॥ साधु ॥ पच्चरकशे जात पाणीनें, अनशन करशे जिनेश रे ॥ साधु ॥ बोध० ॥१०॥ जेहने अरथें की जीयें, नग्न जाव केश लोच रे ॥ साधु ॥ बंजचेर वली पालीयें, स्नान नही वली सोच रे ॥ साधु ॥ बोध० ॥ ॥११॥ दात जिद कर नहीं, धरतुं नदी वली छत्र रे ॥ साधु ॥ वाणदी जिहां पहिरवी नहीं, शय्या नू मि विचित्र रे ॥ साधु ॥ बोध० ॥ १२ ॥ फलक शय्या क रवी जिदां, परघर पैसवो नित्त रे ॥ साधु ॥ सदबुं मान अपमाननुं, हीला वली बहु जत्तरे ॥ साधु ॥ बो० ॥ १३ ॥ खििसया ताडणा गरइणा, उंचा नी चा विरूप रे ॥ साधु ॥ उपसर्ग बावीश परिसदा, गाम कंटक सरूप रे ॥ साधु ॥ बो० ॥ १४ ॥ श्रहीया सीजें जिहां सदा, साधशे तेह अरथ रे ॥ साधु ॥ बहेले श्वासोवासमां, सीऊशे बूऊशे तब रे ॥ साधु ॥ बो० ॥ १५ ॥ मूकाशे कर्मोंथकी, लेदेशे सुख निर For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) वाण रे ॥ साधु ॥ अंत करशे सहु छःखनो, शेप रम कल्याण रे॥ साधु ॥ बो० ॥ १६॥ सेवनंते ईम कहे, गौतम मुनि गुणवंत रे ॥ साधु ॥ वांदी श्रीम हावीरने, धोरी धरम महंत रे ॥ साधु ॥वो ॥१७॥ संयम तपें करी जावता, आपण विविध प्रकार रे ॥ साधु ॥ विहरे साधु गुणें करी, पूर्वी एह विचार रे॥ ॥ साधु ॥ बो० ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ ए अधिकार सुणी सहु, धरजो धर्मश्राचार॥ जिनवर धर्म थकी सही, बेशो नव निस्तार ॥१॥ धन्य ते केशी मुनिवरु, धन्य ते सारथी चित्र॥धन्य परदेशी रायजी, धन्य जिनधर्म विचित्र ॥ ५ ॥ धन्य श्रीगौतम स्वामीजी, धन्य जिनवर महावीर ॥ जेहना वचनथकी सही, पामीजें जवतीर ॥३॥ ॥ ढाल एकतालीशमी ॥राग धन्याश्री॥ ॥ रायपसेणीय बीय उपंगथी, उभरी ए श्रधि कार ॥ परदेशी प्रबंध में ए रच्यो रंगशु, प्रसन्न उ त्तर सुविचार ॥१॥ जगत गुरु श्रीदया धर्म जयका र ॥ पामीय जवतणो पार ॥ जगण॥ समकित शुक आधार ॥ जग ॥ ए आंकणी ॥ गहन अरथडे श्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६) प्रवचन तणो, जाणीयें किण उपाय ॥ आपणी बुकि करी केवली जे कयु, साखीय श्रीजिनराय ॥ जग ॥२॥ मंदमति माही जोडंता मन नहीं, अधिको उठो कहेवाय ॥ ढाल तुक नेलतां श्रांकणी मेलतां, सूत्र थाशातना थाय ॥ जग ॥३॥ पण कस्यो श्रा ग्रह श्रतिघणो श्रावकें, राज नगर अधिकार ॥ तेणें आग्रह करी एह रचना रची,पामी हरख अपार॥ जग ॥ ४ ॥ सूत्रनें श्रादरी एह अरथ कह्यो, केल वी बुद्धिन काय ॥ तो पण बद्मस्थ केवली वचननो, किम लहे हेतु उपाय ॥ जग ॥५॥ तिण हवेजे हां अधिको उदो कह्यो, बहुश्रुत सहु मन लाय ॥ शुरू कर जो सह शोधीने शुजमति, पातक दूर प लाय ॥ जग ॥६॥ मिछामि पुक्कड में दीयो हरखजु, अरिहंत सिझनी साख॥ केवलज्ञानीय साधु सहु दे खजो, नाव शुरूँ कहुं नाष॥जगण॥॥दूर होजो सहु पातक माहरां,श्रधिको उगे कह्यो जेह ॥ निरा जे थई महोटानां गुण जोडतां, हवे बहुं तिण जव नेह ॥जगण॥॥धन्य शासन महावीरचं सेवीयें, जिहां लह्या एअधिकार॥ कहे ज्ञानचंद सदगुरु सेवतां, पा मीयें शिवसुख सार ॥ जग ॥ए ॥इति परदेसी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) देवश्व्यना उपनोगथीथता माग परीणांम वीषे बे वांणीआ पाडोशीनो दृष्टांत. एक शमये बे वाणीश्रा पाडोशी हता, तेमां एक धनवंत हतो अने बीजो धन हीण हतो. धनवंत वा रंवार निर्धनने उख देतो हतो, हवे ते नीरधन पो तानी गरीबाश्थी, तेनी शामे थवाने अशकत हतो तेथी बीजो कंश उपाय नही चालवाने लीधे ते धनवं तर्नु नवु मकान बंधातुं हतुं तेनी जीतमां कोई न जाणे तेम, पासे यावेली जीनजुवननी जुनी जीतमांथीनीक ली पडेलीइंट तथा पथ्थर वीगेरेनां खंड ते नांखतो ह तो. हवे तेमकांन ज्यारे तैयार थयु तेयारे ते नीरधने पेला. धनवंतने खरेखरी वात जाहेर करी उतां पण ते (धनवंत) बोल्यो के "अहो! एटलामांते शुं दोष सागवानो ?” एम बेदरकार पणाथी ते घरमा र हेवा लाग्यो. पड़ी ते धनवंतनुं थोडा शमयमांज वन अनि वीगेरेथी सर्व विनास पाम्यु. जे माटे कदेल पण जे केः-- ___ देरासरनां, मसाणना, वावनां, राजमंदीरना, मठ नां,पाषाण, इंट, काष्ट,एटलांवांना सरसव मात्र पण त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) जवां. सरसव मात्र पण पोते उपयोगमा लेवा नही. वली पण कहे जे के. ___थांजला, पीढीयां, पाटीया बारसांख एटलां पाषा णमय धर्मस्थानकमां सुखकारक होय , पण गृहस्थे पोताना घरमां कराववांनही पाषाणमयमां काष्ट, काष्ट मयमा पाषाण, थांगला देराशरमां के घरमा प्रयत्नथी (श्रवस्य) तजवा (एटले)घरमां के देराशरमां एम उ लट सुलट करवू नही. वली. ___ हल, गाडां,घाणी, अरहट्ट (रेंटीया चरखावीगेरे) कंटालावृदनांके पंचुबर, (वड पीपल पीपलो, उंबरो, काकवृद,) अने फुधवालांवृदनां उपर लखेलापदार्थ बनाववानही. वली पण बीजोरीनां, केलना,दाममनां, बेजातिनी जंबीरीनां, हलकुनां,श्रांबलीनां, बावलनां, बोरडीनां,घंतुरानां,(एटलां) वृदोजोपोतानां घरनी प डोशमा होए.अने जो तेनांमुल अथवा गया जेना घ रमांप्रवेश करे तेनां घरमा कुलनो नाश थाए माटे ए वृदो पोतानां घरमां वर्जवा. वली जो पूर्व दिशाए उचुंघरहोए तोधननो नाश करे दक्षिण दिशाए उचुं होए तो धन समृद्धी करे, पश्चिम दिशाए उचुं घर होय तोधिनी वृद्धि करे ,अने उतर दिशामां घर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) जो उंचं होय तो नाश करे. तथा गोलाकारवावं, जे मांदे खुणाखांचा घणापडताहोएथने तेथी, सांकडं होय,एक बेत्रण खुणापडताहोए, दक्षिण दिशा तरफ अने डानी दीशा तरफ लांबु होए, एवं घर वसावq नही.जेघरनांपोतानी मेले कमाड बंध थाए अनेपोता नीमेलेज उघडी पडतां होय ते अशुज जाणवां. चित्रा मण करेल कलशादिकशोनाजेनामुलध्वार उपरहोय तेसुखकारी समजवा (घरना श्रागलना नागउपरची त्रश्रेष्ट गणाय) दोथीथता शुन्नाशुन फलविषे. खजुरी, दामम, केल, कोहली, बीजोरी, एटलां दोजेनाघरनाथांगणामांउगेलाहोयते घरने मुलथी नाशकारक शमजवांजेमांथी बुध करे एवावृदो लक्ष्मी नाश करनार थायडे,कांटावाला वृदोशत्रुनो जय उप जावे,फलवालांवृदो बालकोनोनाश करे माटे ए वृ दोनां काष्ट पण बांधकामनां उपयोगमा लेवा नहीं वली कोश्शाशत्रमा एम कहे जे के घरना श्रागलना जागमा वडवृक्ष होय तोते सारोगणवो, अने जंबर वृ दघरथीजमणे नागेहोयतोसारोगणवो, पीपल वृद घरथी पश्चिम दिशायें होय तो शारो गणवो, अने घर श्री.उतर दिशा तरफ पीपरीवृक्ष होय तोशारी गणवी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) नीदानुं खावाथो थता अवगुण उपर ___ कापालीकनो इष्टांत. एकशम्य कोकापालीक जीदा मांगवानुं खप्पर हाथमां लश्स्कंघे कोली लटकावी.फरतो फरतो एक घांचीनी घाणी फरती हती तेयांजश्बेगे. एटलामा ते घांचीनो बलद कोलीमां मों घालीने रोटलाना टुकमा खावा मंडयोते देखी पेलो,कापालीक हा हा करतो उ व्योने तेना मोमांथी खंचाववा लाग्यो ते जोघांचीए कहीन,महाराजजीखने शीनूखडे ? के एटला टुकडा शारु ललचाइजश्ने पालोखंचाववा दोमोडो हवे का पालीक बोध्यो के, नीखने कंही नूख नथी, कारण मने टुकडागणाजडे नेजडशेपण था बलद नीखनो खा रखे एथालसु बने नहीं एटलाजमाटे ढुं हुंचा बुं. कारण के नीखनुं खानारनांगुडागली जायजे.अने जो एनीखनुंखाश्यालसु बने तो तु पणएने शानोखावा श्रापे तेथी बेवटे ए मुखी थश्मरी जाय तेटला माटेज मने मुख लागे. पण बीजुं का कारण नथी उपर ल खेलअवगुण जीवनुं खावाथी जरुर पेदा थायडे वास्ते नीदानुं कंश खाज नहीं. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- _