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( ४ )
सकल प्रकार रे ॥ साधु ॥ सर्व लोक सहु जीवना, सघला जाव विचार रे ॥ साधु ॥ बोध० ॥ ८॥ जाणता देखता विहरशे, केवली दृढ पइन्न रे ॥ साधु ॥ श् विहारें विरंदतां, घणां वरस धन्य धन्य रे ॥ साधु ॥ बोध || केवल पर्याय पालशे, जाणी श्रायुशेष रे ॥ साधु ॥ पच्चरकशे जात पाणीनें, अनशन करशे जिनेश रे ॥ साधु ॥ बोध० ॥१०॥ जेहने अरथें की जीयें, नग्न जाव केश लोच रे ॥ साधु ॥ बंजचेर वली पालीयें, स्नान नही वली सोच रे ॥ साधु ॥ बोध० ॥ ॥११॥ दात जिद कर नहीं, धरतुं नदी वली छत्र रे ॥ साधु ॥ वाणदी जिहां पहिरवी नहीं, शय्या नू मि विचित्र रे ॥ साधु ॥ बोध० ॥ १२ ॥ फलक शय्या क रवी जिदां, परघर पैसवो नित्त रे ॥ साधु ॥ सदबुं मान अपमाननुं, हीला वली बहु जत्तरे ॥ साधु ॥ बो० ॥ १३ ॥ खििसया ताडणा गरइणा, उंचा नी चा विरूप रे ॥ साधु ॥ उपसर्ग बावीश परिसदा, गाम कंटक सरूप रे ॥ साधु ॥ बो० ॥ १४ ॥ श्रहीया सीजें जिहां सदा, साधशे तेह अरथ रे ॥ साधु ॥ बहेले श्वासोवासमां, सीऊशे बूऊशे तब रे ॥ साधु ॥ बो० ॥ १५ ॥ मूकाशे कर्मोंथकी, लेदेशे सुख निर
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